history of chittodgarh in hindi|चित्तोड़गढ़ का इतिहास| चित्तोड़गढ़ की पूरी कहानी
नमस्कार दोस्तों!
history of Chittodgarh in hindi
: आज हम आपके लिए एक ऐसी जानकारी लाये है जो हमारे देश में हाल ही में बहुत प्रचलित थी. जी हाँ दोस्तों आज हम आपको बताने वाले है chittodgarh ka itihas. चित्तोडगढ का इतिहास बहुत ही रोमांचक है यह हमारे देश के महान वीरो की जन्मभूमि है. इस भूमि पर कई वीरो ने जन्म लिया और कई वीरांगनाओ ने अपनी आन बान शान के लिए इसमें अपने प्राण न्योछावर किये है.
कहा है चित्तोडगढ(where is chittodgarh)| location of chittodgarh
चित्तौड़गढ़ भारत देश के एक राज्य राजस्थान का एक शहर है. यह शहर 180 मीटर पहाड़ी पर बने महल के लिए प्रसिध्द है जो 691.9 एकड़ में फैला हुआ है. यह कितना पुराना है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है पर ऐसा कहा जाता है की यहाँ महाभारत काल में महाबली भीम अमर होने के रहस्य बारे में जाने के लिए इस जगह का दौरा किया था. इस किले से जुडी बहुत सी इतिहासिक घटनाये है. आज यह स्मारक पर्यटको के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.
ये राज्य शुरू से मौर्य एवं राजपूतो के अधीन में रहा है. यह राज्य मेवाड़ शशको के अधीन कब आया इसको लेकर राजपूतो की अलग अलग राय है.
चित्तौड़गढ़ का पूरा इतिहास(History of chittodgarh )
ऐसा माना जाता है चित्तौड़गढ़ का निर्माण 7वी शताब्दी में मौर्य वंश के शाशको ने करवाया था और इसका नाम भी मौर्य शाशक चित्रागंदा मोरी के बाद ही रखा गया था. चित्तौड़गढ़ 1568 तक मेवाड़ की राजधानी के रूप में देखा गया था उसके बाद उदयपुर को मेवाड़ की राजधानी बना दिया गया. ऐसा माना गया है की इसकी स्थापना सिसोदिया वंश के शाशक बप्पा रावल ने की थी.
Bappa raval को चित्तौड़गढ़ 8वी शताब्दी में सोलंकी राजकुमारी से विवाह करने पर दहेज़ के एक हिस्से के रूप में मिला था. उसके बाद बप्पा रावल के वंशजो ने इस पर राज किया. इतिहास के पन्नो के अनुसार इस किले पर 7वी शताब्दी से 1568 तक राजपूतो के सूर्यवंशी वंश ने राज किया. राजपूतो ने इस राज्य का परित्याग किया था क्योंकि 1567 में मुग़ल शाशक अकबर ने इस किले को घेरा था. उसके बाद अकबर ने इस किले को कई बार नष्ट भी किया. लम्बे समय बाद 1902 में इसकी फिर से मरम्मत करायी गयी. इतिहास में इस किले के कई बार टूटने और कई बार निर्माण की कहानिया है.
चित्तौड़गढ़ पर कब किसने हमला किया(who all attack on chittodgarh)
चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण तो कई बार हुए पर इस किले और राजपूतो के पराक्रम के आगे कोई टिक नहीं पाया. ऐसा कहा जाता है 7वी से शताब्दी 16वी शताब्दी के बीच इस राज्य को 3 बार लुटा गया.
सबसे पहले 1303 में अलाउद्दीन खिलजी राणा रतन सिंह को धोखे से हराकर चित्तौड़गढ़ को अपने कब्जे में लिया था.
उसके बाद 1534 में गुजरात के राजा बहादुर शाह ने इस किले को घेर महाराजा विक्रमजीत को परास्त किया था.
उसके बाद 1567 में मुगलों के बादशाह अकबर ने महाराणा प्रताप पर 3 बार आक्रमण करने के बाद इस किले पर अपना शाशन कायम किया था.
यदि ये घेराबंदी के समय को छोड़ दिया जाये तो बाकि के पुरे समय इस किले पर राजपूतो का शाशन रहा है. महाराणा प्रताप ने इस किले को छोड़ उदयपुर की स्थापना की थी. पर इन तीनो लड़ाईयो में राजपूतो ने हर तरीके से अपने राज्य को बचाने की कोशिश की थी. इस किले की रक्षा के लिए उन्होंने तीनो बार अपने कई राजपूत सैनिको को खोया. इन युद्ध में हारने के बाद राजपूती सैनिको की लगभग 16,000 से भी अधिक महिलाओ ने और उनके बच्चो ने जौहर कर अपने प्राणों का बलिदान दिया था.
चित्तौड़गढ़ का जौहर (what is jouhar| johar ka matalab)
चित्तौड़गढ़ पर कई बार आक्रमण किये गये. जब भी चित्तौड़गढ़ का राजा युद्ध में परास्त हुआ है तब तब वहां की वीरांगनाओ ने जौहर का रास्ता चुन अपनी आन बान शान की रक्षा की है. राजपूत वीरांगनाओ का इतिहास में ये बलिदान अतुल्य है.
सबसे पहले जब 1303 अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण किया था तब राणा रतन सिंह की पत्नी रानी पद्मावती ने युद्ध में अपने पति की जान चली जाने के कारण जौहर किया था. उसके बाद 1537 में रानी कर्णावती ने जोहर किया था.
इसीलिए ये महल हिम्मत, वीरता, राष्ट्रप्रेम और मेवाड़ के वीरो और उनकी महिलाओ और बच्चो के बलिदान का सर्वोच्च उदहारण है. इस राज्य के सैनिक, महिलाये, बच्चे या वहां के राजाओ ने कभी मुग़ल शाशको के सामने घुटने टेकने की बजाये अपनी जान की आहुति देना सही समझते थे.
विजय स्तंभ – (Vijay Stambha ka itihas)
चित्तौड़गढ़ के नाम कई जीत शामिल है और हर जीत पर वह के राजा कुछ न कुछ जरुरु किया करते थे. ऐसी ही एक जीत ने चित्तौड़गढ़ में विजय स्तम्भ की नीव रखी थी. जी हाँ हम बात कर रहे है चित्तौड़गढ़ में स्थित विजय स्तम्भ की, विजय स्तम्भ को चित्तौड़गढ़ का विजय का प्रतिक माना जाता है. राणा कुम्भ ने 1448 से 1458 के बीच मालवा के सुल्तान महमूद शाह प्रथम खिलजी पर हासिल कर चित्तौड़गढ़ में इस स्तम्भ की नीव रखी थी जिसे विजय स्तम्भ नाम दे दिया गया.
चित्तौड़गढ़ में विजय स्तम्भ का निर्माण उस युद्ध के लगभग 10 साल बाद शुरू किया गया था. विजय स्तम्भ 37.2 मीटर या 122 फिट ऊँचा है और 47 वर्ग फिट आधार पर बना है. वियज स्तम्भ में कुल 8 मंजिल है जिसमे 157 सीढिया है जहाँ से आप चित्तौड़गढ़ का पूरा सुन्दर नजारा देख सकते है.
चित्तौड़गढ़ एक ऐसी वीरभूमि है, जो पुरे भारत में शौर्य,बलिदान और देशभक्ति का एक गौरवपूर्ण उदाहरण है. यहाँ पर अनगिनत राजपूत वीरो ने अपने देश और धर्म की रक्षा के लिए अपने खून से नहाये है. यहाँ राजपूत महिलाए अपने गौरव और अस्तित्व की रक्षा के लिए अपने बच्चो के साथ जौहर की अग्नि में समा गयी. इन स्वाभिमानी देशप्रेमी योद्धाओं से भरी पड़ी यह भूमि पूरे भारत वर्ष के लिए प्रेरणा स्रोत बनकर रह गयी है. यहाँ का कण-कण हममें देशप्रेम की लहर पैदा करता है. यहाँ की हर एक इमारतें हमें एकता का संकेत देती हैं.