क्रांतिकारी मदन लाल ढींगरा का नाम आपने सुना ही होगा भारत के कुछ भूले हुए क्रांतिकारियों में उनका भी नाम उल्लेखनीय है. क्रांतिकारी मदनलाल को अंग्रेज अफसर विलियम हट कर्जन वायली की गोली मार कर हत्या करने के आरोप में 25 वर्ष की उम्र में फांसी पर चढ़ा दिया था. इस महान देशभक्त को अंतिम संस्कार के लिए देश की धरती भी नसीब ना हो पायी, देश आज भी इस युवा क्रांतिकारी को याद करता है.
मदनलाल ढींगरा का आरंभिक जीवन
ढींगरा का जन्म पंजाब प्रान्त के एक हिन्दू परिवार में सन् 1883 को हुआ था. पिता दित्तामल जी सिविल सर्जन थे और अंग्रेजों की चापलूसी करते थे परन्तु उनकी माताजी भारतीय संस्कार और हिन्दू धर्म को मानने वाली थी. एक बार जब स्वतंत्रता संग्राम से सम्बन्धी क्रांति के आरोप में मदनलाल को गिरफ्तार कर लिया गया तो परिवार ने उनसे नाता ही तोड़ लिया जिसके बाद मदनलाल को बहुत कठिन कार्य करने पड़े जिसकी उन्हें आदत नहीं थी.
जीवन यापन करने के लिए उन्होंने एक क्लर्क के रूप में कार्य किया, फिर एक तांगा चालक के रूप में और बाद में एक कारखाने में श्रमिक के रूप में भी काम किया. कारखाने में कार्य करते हुए श्रमिकों की स्थति को सुधरने के लिए उन्होंने एक संघ बनाने की कोशिश की लेकिन उन्हें वहां से बाहर निकाल दिया गया.
उन्होंने कुछ दिन मुंबई में काम किया उसके बाद अपने बड़े भाई की सलाह से सन् 1906 में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड चले गए वहां उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज में मैकेनिकल इंजिनियरिंग में प्रवेश मिल गया. विदेश में पढने के लिए उनके बड़े भाई और लन्दन में रहे रहे कुछ राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं की सहायता से उन्हें पढाई के लिए आर्थिक सहायता मिली थी.
राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर ढींगरा से काफ़ी प्रभावित थे, लन्दन में ढींगरा सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा के संपर्क में थे. माना जाता है कि ढींगरा को सावरकर ने ही अभिनव भारत नामक क्रांतिकारी संस्था का सदस्य बनाया और हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया. ढींगरा इंडिया हाउस में रहते थे इंडिया हाउस उस वक़्त भारतीय छात्रों का क्रांतिकारी क्रियाकलापों का केंद्र था. उस समय लोग कन्हाई लाल दत्त, काशी राम, सतिंदर पाल, खुदीराम बोस को मृत्युदंड दिए जाने से आक्रोशित थे. इतिहास में कई जगह यह बात स्पष्ट होती है कि इन्ही घटनाओं के कारण ढींगरा और सावरकर सीधे बदला लेने के लिए तैयार हुए.
इण्डियन नेशनल ऐसोसिएशन के वार्षिकोत्सव में भाग लेने के लिये 1 जुलाई सन् 1909 की शाम को भारी संख्या में भारतीय और अंग्रेज एकत्रित हुए जैसे ही भारत सचिव का राजनीतिक सलाहकार सर विलियम हट कर्जन वायली अपनी पत्नी के साथ हाल में घुसा ढींगरा ने उसके चेहरे पर पाँच गोलियाँ दाग दी जिनमें से चार बिलकुल ठीक निशाने पर लगी. बाद में ढींगरा ने स्वयं को भी गोली मारना चाही परन्तु उन्हें पकड़ लिया गया.
उन्हें पकड़ने के 16 दिन बाद ही उन्हें फ़ासी पर चढ़ा दिया गया उस वक़्त ढींगरा मात्र 25 वर्ष के थे. भारतीय इतिहास में मदनलाल मर कर भी अमर हो गए. धींगरा का स्मारक आज भी अजमेर रेलवे स्टेशन के ठीक सामने है.
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