चूहे वाली करणी माता का मंदिर बीकानेर | Karni Mata Temple History in Hindi

चूहे वाली करणी माता का मंदिर देशनोक,बीकानेर की पूरी जानकारी | Chuhe Wali Karni Mata Temple History, Story and Interesting Facts in Hindi

जब आप अपने घर में किसी चूहे को देखते हैं तो उसे भागने के लिए सारे उपाय सोच लेते हैं. चूहे पूरे घर में उत्पात मचाते हैं और चीजों का नुकसान भी करते हैं. लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा कि चूहे के नाम पर एक माताजी का मंदिर भी हो सकता हैं. इस मंदिर को लोग चूहों वाली माता का मंदिर से जानते हैं. जिसे करणी माता मंदिर व मूषक मंदिर के नाम से जाना जाता हैं. आइये जानते हैं मंदिर के इतिहास के बारे में.

करणी माता का मंदिर राजस्थान राज्य के बीकानेर जिले से 30 कि.मी दूर दक्षिण में देशनोक गांव में स्थित हैं. इस मंदिर का निर्माण 20 वी शताब्दी में राजा गंगासिंह के द्वारा किया गया था.

करणी माता मंदिर से जुडी कहानियां (Karni Mata Temple Stories in Hindi)

पहली कहानी

करणी माता का जन्म हिन्दू धर्म में चरण जाती में हुआ था. इनका विवाह किपोजी चरण से हुआ था, विवाह से कुछ समय बाद वह भक्तिमय जीवन जीना चाहती थी इसलिए उन्होंने अपनी छोटी बहन की शादी किपोजी से करवा दी थी. माता करणी का सौतेला बेटा एक तालाब में डूब कर मर गया था. उन्होंने यम देव की कड़ी तपस्या की, यम देव ने उनकी भक्ति से खुश होकर उनके बेटे को चूहे के रूप में पुनर्जीवित कर दिया.

दूसरी कहानी

एक कहानी यह भी है की एक बार 20 हजार सैनिकों ने इस स्थान पर आक्रमण कर दिया था. माता करणी ने अपनी देवीय शक्ति से उन सभी को चूहों में में परिवर्तित कर दिया और सभी को अपने मंदिर में सेवा के लिए रख लिया.

करणी माता मंदिर से जुड़े अन्य तथ्य (Interesting Facts about Karni Mata Temple)

करणी माता को साक्षात देवी जगदंबा का अवतार मना जाता हैं. करणी माता बीकानेर राजघराने की कूलमाता हैं. इनकी कृपा से ही बीकानेर और जोधपुर रियासत की स्थापना हुई. मंदिर प्रांगण में संगमरमर की नक्काशी, मुख्य द्वार लगे चांदी के बड़े बड़े किवाड़, माता का सोने का छत्र और चूहों के प्रसाद के लिए रखी चांदी की परात मुख्य आकर्षण का केंद्र हैं. इस मंदिर में 20 हजार से ज्यादा चूहे रहते है. मंदिर में प्रवेश करते ही जहां तक नजर जाती हैं वहा तक चूहे ही दिखाई देते हैं, इन चूहो को “काबा” नाम से जाना जाता हैं व करणी माता की संतान माना जाता हैं.

इतने चूहे होने के बावजूद मंदिर प्रांगण में कोई बदबू नहीं आती है और न ही चूहों का झूठा प्रसाद खाने से कोई व्यक्ति अभी तक बीमार हुआ हैं. मूर्ति के सामने पहुँचने के लिए भक्तों को अपने पैर उठाकर नहीं बल्कि घसीटकर आगे रखना होता हैं. चूहें पूरे मंदिर में धमा-चौकडी मचाते हैं व श्रधालुओ के शरीर पर कूदते करते रहते है.

सुबह पांच बजे मंगला आरती के समय चूहों का एकत्रीकरण देखने लायक होता हैं. इस मंदिर में सफ़ेद चूहे भी पाए जाते है, ऐसी मान्यता है कि यदि किसी भक्त को सफ़ेद चूहे के दर्शन होते हैं. तो उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है. माता के भोग के लिए रखे जाना वाला प्रसाद को पहले चूहे खाते है फिर भक्तो में बाँटा जाता हैं. भक्तो के ठहरने के मंदिर के पास धर्मशालाए भी हैं. वर्ष में दो बार चैत्र और आश्विन माह के नवरात्रों में यहाँ मेले का आयोजन होता हैं. पूरे देश भर से लोग यहाँ दर्शन के लिए आते हैं.

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