Indian Hockey Player and Captain Kishan Lal Biography, Olympics Career, Death in Hindi | किशन लाल का जीवन परिचय, संघर्ष, ओलंपिक में योगदान, और मृत्यु
हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल हैं. एक समय ऐसा था जब देश का हर नौजवान हॉकी खेलता था. इसकी खुमारी क्रिकेट से भी ज्यादा हुआ करती थी. इसके पीछे का कारण हैं उस समय कि भारतीय हॉकी टीम. आज़ादी के समय हॉकी के खेल में भारत का दबदबा रहता था. हॉकी में इस कामयाबी का श्रेय किशनलाल को दिया जाता हैं. किशन लाल भारतीय हॉकी के कप्तान हुआ करते थे.
किशनलाल हॉकी को देशभक्ति के साथ खेला करते थे. यह उनके ही हुनर का कमाल था कि पहली बार आज़ाद भारत की पहली टीम ने लन्दन की जमीन पर ओलम्पिक्स में गोल्ड मेडल अपने नाम किया था.
किशन लाल का बचपन (Kishan Lal’s Childhood)
किशन लाल का जन्म 2 फरवरी 1917 को हुआ था. किशन लाल का जन्म मध्य प्रदेश राज्य के महू जिले में हुआ था. किशनलाल ने भले ही 1948 में भारतीय टीम को ओलिंपिक हॉकी में गोल्ड दिलाया हो लेकिन वे बचपन में हॉकी नहीं खेलना चाहते थे. किशन लाल को पोलो गेम बताकर हॉकी की ओर आकर्षित किया गया था. उन्होंने 14 साल की उम्र ही हॉकी खेलना शुरू कर दिया था और अपने अंतिम समय तक खेला.
हॉकी के मैदान तक पहुँचने की कहानी (Kishan Lal Journey to Hockey Field)
किशन लाल 16 साल की उम्र में ही महू हीरोज़ की ओर से खेले थे. इसके बाद वह महू ग्रीन वाल्स और बाद में कल्याणमल मिल इंदौर के लिए भी खेले थे. 1937 में वे भगवत क्लब हॉकी टीम की ओर से खेले जहां पर एम.एन. जुत्शी ने उनके हुनर को पहचान कर उन्हें टीकमगढ़ के भगवत कप में खेलने के लिए आमंत्रित किया.
वर्ष 1941 में किशन लाल बी.बी. एंड सी.आई. रेलवे (वर्तमान पश्चिम रेलवे) से जुड़े. इस टीम ने बाद में 1948 ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीता.
अंतर्राष्ट्रीय सितारा बनने तक का सफ़र (Kishan Lal Career)
1947 में किशन लाल के हुनर को खेल जगत के लोग समझ चुके थे, इसी कारण उन्हें भारतीय हॉकी टीम का उप-कप्तान बनाया गया था. उप-कप्तान बनने के बाद वे भारतीय टीम के लिए पूर्व एशियाई देशो के खिलाफ खेले. सन 1948 में किशन लाल को भारतीय हॉकी टीम का कप्तान बना दिया गया था.
1948 के लन्दन ओलंपिक्स (London Olympics 1948)
एक विभाजित (बंटे हुए) राष्ट्र के साथ ही भारतीय नागरिक के रूप में भारत को नई ऊँचाइयों पर ले जाने के संघर्ष और भारतीय हॉकी टीम को ओलिंपिक में खिलाने की ज़िम्मेदारी साधारण नहीं थी. किशन लाल और भारतीय टीम को गोल्ड जीतते हुए, भारतीय ध्वज लहराते हुए सभी देखना चाहते थे. उन्हें भारतीय लोगों के समर्थन ने प्रेरित किया था.
आखिरकार भारतीय टीम ओलंपिक खेलने के लिए तैयार थी. भारतीय हॉकी टीम में बलबीर सिंह, लेस्ली क्लॉडियस और किशन लाल जैसे महान खिलाड़ी खेल रहे थे. इस टीम में मुंबई से 8 खिलाड़ी खेल रहे थे. 1948 ओलंपिक में भारत ऑस्ट्रिया, अर्जेंटीना, स्पेन और हॉलैंड को हराकर फाइनल में था. फाइनल में भारत ने ग्रेट ब्रिटेन को हराकर गोल्ड जीता. पहली बार एक स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर भारत ने ओलंपिक फाइनल जीता था.
अपने आप में एक महान खिलाड़ी
किशन लाल भारतीय हॉकी इतिहास में बेहतरीन राइट विन्गरों में से एक थे. राष्ट्रीय हॉकी टीम में उनके साथी खिलाड़ी उन्हें ‘दादा’ नाम से बुलाते थे. विक्टोरिया क्रॉस और परम वशिष्ठ सेवा मेडल के विजेता जियान सिंह ने किशन लाल के बारे में कहा था कि कई बार मैंने देखा की किशनलाल खेलते समय जब गोल की तरफ जाते थे. तब मुझे लगता था की गोल किशन लाल ही करेंगे. वे गोल न करने के बजाय गेंद को इनसाइड फॉरवर्ड या सेन्ट्रल फॉरवर्ड को गेंद पास कर के गोल को अंजाम देते थे
देश के सामने आया एक हीरो
क्लब खेलने से लेकर राष्ट्रीय टीम की कप्तानी करने तक के सफ़र में किशन लाल ने अपना हुनर कहीं भी नहीं खोया. वे जैसे अपने शुरूआती दौर में थे वैसे ही अपने करियर के अंत तक भी थे. हॉकी में अपने योगदान के लिए उन्हें 1966 में पद्म श्री अवार्ड दिया गया
मृत्यु (Kishan Lal Death)
22 जून 1980 को किशन लाल ने चेन्नई में आखिरी सांस ली. उस समय किशन लाल मुरुगप्पा गोल्ड कप में दूरदर्शन चैनल के विशेष कमेंटेटर माने जाते थे.
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