हिंदी व्याकरण के अनुसार वर्ण की परिभाषा, भेद और उदाहरण | Varn (Character) Definition, Type and Example in Hindi | Varn ki Paribhsha, Bhed aur Udaharan
उच्चारण तथा वर्तनी का परस्पर गहरा सम्बन्ध है. शुद्ध उच्चारण द्वारा ही शुद्ध लेखन संभव है. हिंदी भाषा लिखने के लिए शुद्ध उच्चारण तथा शुद्ध लेखन दोनों ही आवश्यक है. लेखन प्रकिया के लिए ध्वनि संकेतो अथवा देवनागरी लिपि चिन्हों तथा उनके उच्चारण का ज्ञान रहना अति आवश्यक है. उच्चारित ध्वनि संकेतो को जब लिपिबद्ध किया जाता है तो वे वर्ण का रूप धारण कर लेते है. प्रत्येक ध्वनि को वर्ण कहा जाता है. लिखित चिन्हों को वर्ण कहा जाता है. उच्चारित ध्वनियो में स्वर और व्यंजन दोनों शामिल है. वर्णमाला में स्वर और व्यंजन दोनों की व्यवस्था की जाती है. कभी-कभी उच्चारण तथा लेखन में भी अंतरपाया जाता है क्योंकि भाषा का उच्चारण किया जाने वाला रूप लगातार बदलता रहता है. भाषा का लिखित रूप अपरिवर्तनीय होता है. भाषा का यही लिखित रूप सदियों तक चलता रहता है.
वर्ण की परिभाषा (Varn Ki Paribhasha)
“हिंदी में वर्णों को अक्षर भी कहते है. ध्वनियो को व्यक्त करने वाले ये लिपि चिन्ह ही वर्ण कहलाते है.”
अथवा
“वर्ण भाषिक ध्वनियो के लिखित रूप होते है.”
अथवा
“मौखिक ध्वनियो को व्यक्त करने वाले चिन्हों को वर्ण कहते है.”
वर्णों के व्यक्तित्व समूह को वर्णमाला कहते है. वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई होती है. इसके आगे टुकड़े नहीं किये जा सकते है. मूल रूप में वर्ण वे चिन्ह होते है जो हमारे मुख से निकली हुई ध्वनियो के लिखित रूप होते है.
देवनागरी वर्णमाला (Devnagari Varnmala)
देवनागरी वर्णमाला में निम्नलिखित वर्ण है.
स्वर- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ
इन स्वरों को जब व्यंजनों के साथ प्रयुक्त किया जाता है. तो इनके स्थान पर इनके मात्रा – चिन्हों का प्रयोग किया जाता है. ये मात्राए निम्नलिखित है-
अ | आ | इ | ई | उ | ऊ | ऋ | ए | ऐ | ओ | औ |
– | ा | ि | ी | ु | ू | ृ | े | ै | ो | ौ |
अनुस्वार- अं
विसर्ग- अः
व्यंजन-
क, ख, ग, घ, ड. -(क वर्ग)
च, छ, ज, झ, ण. -(च वर्ग)
ट, ठ, ड, ढ. ण. -(ट वर्ग)
त, थ, द, ध, न. -(त वर्ग)
प, फ, ब, भ, म. -(प वर्ग)
य, र, ल, व, स, श, ष, ह
संयुक्त व्यंजन- श्र, त्र, ज्ञ,
हिंदी चिन्ह- हिंदी वर्णमाला में “अ” से “औ” तक ग्यारह स्वर है इनमे “अ” को छोड़कर शेष सभी के लिए मात्रा चिन्ह बनाए गए है क्योकि “अ” स्वर तो प्रत्येक व्यंजन में शामिल ही है.
स्वर (Swar)
जिन ध्वनियो के उच्चारण में श्वास वायु बिना किसी रूकावट के मुख से निकलती है उन्हें स्वर कहते है. हिंदी में निम्लिखित स्वर है.
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ
यद्यपि “ऋ” को स्वरों में स्वर माना जाता है किन्तु आजकल हिंदी में इसका उच्चारण “रि” के समान होता है. इसलिए “ऋ” को स्वरों की श्रेणी में शामिल नहीं किया गया है.
स्वरों के भेद (Types of Svar)
मुखाकृति के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण
अग्र स्वर- जिन स्वरों के उचारण में जीभ के आगे का भाग सक्रिय रहता है उन्हें अग्र स्वर कहते है. जैसे-
अ, आ, इ, ई, ए, ऐ.
पश्च स्वर- जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का पिछला हिस्सा सक्रिय रहता है. उन्हें पश्च स्वर कहते है. जैसे-
उ, ऊ, ओ, औ, आ.
संवृत स्वर- संवृत का अर्थ है कम खुला हुआ. जिन स्वरों के उच्चरण में मुख कम खुले उन्हें संवृत स्वर कहते है जैसे-
ई, ऊ.
अर्द्धसंवृत स्वर- जिन स्वरों के उच्चारण में मुख संवृत स्वर से थोडा अधिक खुलता है, वे अर्द्धसंवृत स्वर कहलाते है. जैसे-
ए, ओ.
विवृत स्वर- विवृत स्वर का अर्थ होता है- अधिक खुला हुआ. जिन स्वरों के उच्चारण में मुख अधिक खुलता है, वे विवृत स्वर कहलाते है. जैसे-
आ.
अर्द्धविवृत स्वर- विवृत स्वर में थोडा कम और अर्द्धसंवृत से थोडा अधिक मुख खुलने पर इन स्वरों का उच्चारण होता है. उन्हें अर्द्धविवृत स्वर कहते है. जैसे-
ऐ.
ओष्ठ के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण
वृताकार स्वर- इनके उच्चारण में होंठो का आकार गोल हो जाता है जैसे-
उ, ऊ, ओ, औ.
अव्रत्ताकार स्वर- इन स्वरों के उच्चारण में होंठ गोल न खुलकर अन्य किसी आकार में खुले, उन्हें अव्रताकार स्वर कहते है. जैसे-
अ, आ, इ, ई, ए, ऐ.
उच्चारण समय के आधार पर स्वरों को दो भागों में बाटा जा सकता है-
हस्व स्वर- जिन स्वरों के उच्चारण में एक मात्रा का समय अर्थात सबसे कम समय लगता है, उन्हें हस्व स्वर कहते है. जैसे-
अ, इ, उ.
दीर्घ स्वर– जिन स्वरों के उच्चारण में दो मात्राओ का अथवा एक मात्रा से अधिक समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते है. जैसे-
आ, ई, ऊ, ऐ, ओ, औ.
व्यंजन
जिन ध्वनियों का उच्चारण करते हुए हमारी श्वास- वायु मुख के किसी भाग से टकराकर बाहर आती है. उन्हें व्यंजन कहते है. हिंदी वर्ण माला में मूलतः 33 व्यंजन है.
स्वर- तंत्रियो के आधार पर व्यंजन दो प्रकार के है-
अघोष व्यंजन- इन व्यंजनों के उच्चारण के समय स्वर- तंत्रियापरस्पर इतनी दूर हट जाती है की पर्याप्त स्थान के कारण उनके बीच निकलने वाली हवा बिना स्वर तंत्रियो से टकराए और उनमे बिना कम्पन उत्पन्न किए बाहर निकल जाती है इसलिए इन्हें अघोष वर्ण कहते है.
सघोष व्यंजन- उच्चारण के समय दोनों स्वर तंत्रिया इतनी निकट आ जाती है की हवा स्वर तंत्रियो से रगड़ खाती हुई मुख विवर में प्रवेश करती है. स्वर- तंत्रियो के साथ रगड़ खाने से वर्णों में घोषत्व आ जाता है इसलिए इन्हें सघोष वर्ण कहते है.
प्राणत्व के आधार पर व्यंजन दो प्रकार के है-
अल्पप्राण– जिन ध्वनियों के उच्चारण में प्राण अर्थात वायु कम शक्ति से बाहर निकलती है, वे अल्पप्राण कहलाती है.
महाप्राण– जिन ध्वनियों के उच्चारण में अधिक प्राण अर्थात वायु अधिक शक्ति से बाहर निकलती है, वे महाप्राण कहलाती है.
व्यंजन के तीन भेद हैं-
- स्पर्श
- अंतःस्थ
- ऊष्म
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