पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के सुविचार
Pandit Shri Ram Sharma Acharya Quotes, Slogan, Thoughts in Hindi
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य अखिल भारतीय गायत्री परिवार ‘शांतिकुंज’ के संस्थापक थे. जिन्होने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज की भलाई और सांस्कृतिक व चारित्रिक उत्थान हेतु समर्पित किया. इसके साथ इन्होंने आधुनिक, प्राचीन विज्ञान एवं धर्म का समन्वय करके आध्यात्मिक नवचेतना को जगाने का कार्य किया. इन्हें वेदमूर्ति योगऋषि के रूप में जाना जाता है. इनके सुविचार हमे जीवन को सरल सुगम बनाने की प्रेरणा देते है. उनके ऐसे ही प्रेरणादायक विचार निम्न है.
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के सुविचार | Pandit Shri Ram Sharma Acharya Quotes in Hindi
चरित्र के उत्थान एवं आत्मिक शक्तियों के उत्थान के लिए इन तीनों सद्गुणों-होशियारी, सज्जनता और सहनशीलता का विकास अनिवार्य है.
अपना धर्म , अपनी संस्कृति अथवा अपनी सभ्यता छोड़कर दूसरों की नक़ल करने से कल्याण की संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं.
विचारों के अन्दर बहुत बड़ी शक्ति होती है. विचार आदमी को गिरा सकतें है और विचार ही आदमी को उठा सकतें है, आदमी कुछ नहीं हैं.
जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं, एक वे जो सोचते हैं पर करते नहीं,, दूसरे जो करते हैं पर सोचते नहीं.
यदि आप अपने दैनिक जीवन और व्यवहार में निरन्तर जागरुक, सावधान रहें, छोटी छोटी बातों का ध्यान रखें, सतर्क रहें, तो आप अपने निश्चित ध्येय की प्राप्ति में निरन्तर अग्रसर हो सकते हैं. सतर्क मनुष्य कभी गलती नहीं करता, असावधान नहीं रहता और कोई उसे दबा नहीं सकता.
Pandit Shri Ram Sharma Acharya Slogan in Hindi
कुविचारों और दुर्भावनाओं के समाधान के लिए स्वाध्याय, सत्संग, मनन और चिन्तन यह चार ही उपाय हैं.
आशावादी हर कठिनाई में अवसर देखता है पर निराशावादी प्रत्येक अवसर में कठिनाई ही खोजता है.
सज्जनता एक ऐसा दैवी गुण है जिसका मानव समाज में सर्वत्र आदर होता है. सज्जन पुरुष वन्दनीय है. वह जीवन पर्यंत पूजनीय होता है. उसके चरित्र की सफाई, मृदुल व्यवहार, एवं पवित्रता उसे उत्तम मार्ग पर चलाती हैं.
जल्दी सोना , जल्दी उठना शरीर और मन की स्वस्थता को बढ़ाता है.
सहनशीलता दैवी सम्पदा में सम्मिलित है. सहन करना कोई हँसी खेल नहीं प्रत्युत बड़े साहस और वीरता का काम है केवल महान आत्माएँ ही सहनशील होकर अपने मार्ग पर निरन्तर अग्रसर हो सकती हैं.
विनम्र रहिये , क्योंकि आप इस महान संसार की वस्तुतः एक बहुत छोटी इकाई हैं. शील दरिद्रता का, दान दुर्गति का, बुद्धि अज्ञान का और भक्ति भय का नाश करती है.
इस संसार में प्यार करने लायक़ दो वस्तुएँ हैं-एक दुख और दूसरा श्रम. दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता.
संपदा को जोड़-जोड़ कर रखने वाले को भला क्या पता कि दान में कितनी मिठास है.
मानसिक बीमारियों से बचने का एक ही उपाय है कि हृदय को घृणा से और मन को भय व चिन्ता से मुक्त रखा जाय.
मनुष्य कुछ और नहीं, भटका हुआ देवता है.
असफलता यह बताती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया गया.
शारीरिक गुलामी से बौद्धिक गुलामी अधिक भयंकर है.
जीवन में सफलता पाने के लिए, आत्म विश्वास उतना ही ज़रूरी है ,जितना जीने के लिए भोजन.
Pandit Shri Ram Sharma Acharya Thoughts in Hindi
अपनी गलतियों को ढूँढना , अपनी बुरी आदतों को समझना , अपनी आन्तरिक दुर्बलताओं को अनुभव करना और उन्हें सुधारने के लिए निरन्तर संघर्ष करते रहना यही जीवन संग्राम है.
कोई भी सफलता बिना आत्मा विश्वास के मिलना असंभव है.
जैसी जनता, वैसा राजा. प्रजातन्त्र का यही तकाजा.
सच्चा ज्ञान वह है , जो हमारे गुण, कर्म, स्वभाव की त्रुटियाँ सुझाने, अच्छाईयाँ बढ़ाने एवं आत्म निर्माण की प्रेरणा प्रस्तुत करता है.
राग और द्वेष , स्वार्थ और कुसंगत के जन्मदाता है
केवल वे ही असंभव कार्य को कर सकते हैं जो अदृष्य को भी देख लेते हैं.
मनुष्य की वास्तविक पूँजी धन नहीं, विचार हैं.
प्रज्ञा-युग के चार आधार होंगे – समझदारी, इमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी.
मनःस्थिति बदले, तब परिस्थिति बदले.
संकट या तो मनुष्य को तोड़ देते हैं या उसे चट्टान जैसा मज़बूत बना देते हैं.
Pandit Shri Ram Sharma Acharya Quotes in Hindi
रचनात्मक कार्यों से देश समर्थ बनेगा.
संसार का सबसे बडा दिवालिया वह है जिसने उत्साह खो दिया.
समाज के हित में अपना हित है.
पुण्यों में सबसे बड़ा पुण्य, परोपकार है.
सुख में गर्व न करें, दुःख में धैर्य न छोड़ें.
उसी धर्म का अब उत्थान, जिसका सहयोगी विज्ञान.
मानव के कार्य ही उसके विचारों की सर्व श्रेष्ठ व्याख्या है.
बड़प्पन अमीरी में नहीं, ईमानदारी और सज्जनता में सन्निहित है.
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के अनमोल विचार
धर्म से आध्यात्मिक जीवन विकसित होता है और जीवन में समृद्धि का उदय होता है.
जो बच्चों को सिखाते हैं, उन पर बड़े खुद अमल करें तो यह संसार स्वर्ग बन जाय.
आलस्य से बढ़कर अधिक घातक और अधिक समीपवर्ती शत्रु दूसरा नहीं
विनय अपयश का नाश करता हैं, पराक्रम अनर्थ को दूर करता है, क्षमा सदा ही क्रोध का नाश करती है और सदाचार कुलक्षण का अंत करता है.
जब तक व्यक्ति असत्य को ही सत्य समझता रहता है, तब तक उसके मन में सत्य को जानने की जिज्ञासा उत्पन्न नहीं होती है.
बुद्धि को निर्मल, पवित्र एवं उत्कृष्ट बनाने का महामंत्र है गायत्री मंत्र.
अवसर तो सभी को जिन्दगी में मिलते हैं, किंतु उनका सही वक्त पर सही तरीके से इस्तेमाल कुछ ही कर पाते हैं.
किसी का भी अमंगल चाहने पर स्वयं पहले अपना अमंगल होता है.
आत्मा की आवाज़ को जो सुनता है. सत्य मार्ग पर सदा ही चलता है .
दूसरों की परिस्तिथि में हम अपने को रखें, अपनी परिस्थिति में दूसरों को रखें और फिर विचार करें की इस स्तिथि में क्या सोचना और करना उचित है ?
सारी दुनिया का ज्ञान प्राप्त करके भी जो स्वयं को नहीं जानता उसका सारा ज्ञान ही निरर्थक है.
जो शिक्षा मनुष्य को धूर्त, परावलम्बी और अहंकारी बनाती हो वह अशिक्षा से भी बुरी है.
हमारी शिक्षा तब तक अपूर्ण रहेगी, जब तक उसमें धार्मिक विचारों का समावेश नहीं किया जाएगा.
मुस्कुराने की कला दुखों को आधा कर देती है.
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