रोशन सिंह का जीवन परिचय | Roshan Singh History Biography, Birth, Education, Earlier Life, Death, Role in Independence in Hindi
“जिंदगी जिन्दा-दिली को जान ऐ रोशन, वरना कितने ही यहाँ फ़ना होते है.”
– Roshan Singh
बिंदु (Points) | जानकारी (Information) |
नाम (Name) | रोशन सिंह |
जन्म (Date of Birth) | 22 जनवरी, 1892 |
जन्म स्थान (Birth Place) | नबादा, उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम (Father Name) | ठाकुर जंगी सिंह |
माता का नाम (Mother Name) | कौशल्या देवी |
पेशा (Occupation ) | क्रांतिकारी |
शिक्षा (Education) | ज्ञात नहीं |
मृत्यु (Death) | 19 दिसंबर 1927 |
दोस्तों, आज हम महान क्रांतिकारी रोशन सिंह का जीवन परिचय आपको बताने जा रहे है. हस्ते हस्ते अपनी जान की कुर्बानी देने वाले रोशन सिंह ने भारत स्वतन्त्रता संग्राम की लढाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.
प्रारम्भिक जीवन | Roshan Singh Early Life
ठाकुर रोशन सिंह का जन्म 22 जनवरी, 1892 को उत्तर प्रदेश के गाँव नबादा में हुआ था. इनके पिता जी का नाम ठाकुर जंगी सिंह था और माता जी का नाम कौशल्या देवी था. पांच भाई बहनों में वे सबसे बड़े थे. इनका परिवार आर्य समाज से जुड़ा हुआ था. इसी कारण उनके ह्रदय में देश प्रेम की भावना बचपन से ही थी.
जीवन सफ़र | Roshan Singh Life Journey
रोशन सिंह अपनी युवा अवस्था में ही अंग्रेज़ो के विरुद्ध लढे जाने वाले आंदलनों में सक्रीय हिस्सा लेते थे. महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गए ‘असहयोग आंदोलन’ में भी उन्होंने बढचढ कर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ अपना योगदान दिया जिसमे उन्होंने उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर और बरेली ज़िले के ग्रामीण क्षेत्र में जाकर असहयोग आन्दोलन के प्रति लोगो को जागरूक किया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ आवाज़ उठाई थी.
इसी दौरान पुलिस द्वारा किये गए रोक की वजह से उन्होंने एक पुलिस अफसर की राइफल चीन ली और उसी राइफल से पुलिस अफसरों के ऊपर गोलीबार की शुरुआत की. इस वजह से सारे पुलिस अफसर वहासे निकल गए लेकिन, उसके बाद उन्हें इस किये की सजा भुगदनी पड़ी थी. उनपर बरेली गोली-काण्ड को लेकर मुकदमा चढ़ाया गया और उन्हें दो साल की सजा सुना दी गयी.
सेंट्रल जेल में सजा के दौरान उनकी मुलाक़ात श्री पंडित रामदुलारे त्रिवेदी से हुई, जिन्हे असहयोग आन्दोलन के फलस्वरूप 6 महीने की सजा सुनाई गयी थी. वर्ष 1922 में हुए चौरी-चौरा कांड की वजह से गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन पीछे ले लिया गया था. इससे देश में जो परिस्थितियाँ निर्माण हुई थी उसके कारण श्री ठाकुर साहब ने भी राजेन्द्र नाथ लाहिडी़, श्री रामदुलारे त्रिवेदी व श्री सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य आदि के साथ शाहजहाँपुर शहर के आर्य समाज पहुँच कर श्री राम प्रसाद बिस्मिल से गम्भीर मन्त्रणा की जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित कोई बहुत बडी़ क्रान्तिकारी पार्टी बनाने की रणनीति तय हुई. इस रणनीति में ठाकुर रोशन सिंह को पार्टी में शामिल किया गया था.
दो दलों की विचारधारा में मतभेद होने के कारण 1922 में कांग्रेस दो हिस्सों में बट गयी. उसके बाद नयी पार्टी का जन्म हुआ जिसका नाम ‘स्वराज’ रखा गया. मोतीलाल नेहरू और देशबन्धु चितरंजन दास और अन्य लोग इस पार्टी के समर्थक थे. इस पार्टी के पास अच्छी खासी दौलत थी. और दूसरी तरफ, क्रान्तिकारी पार्टी थी, जिन्हे संगठन चलाने केलिए पैसे की बेहद जरूरत थी. क्रांतिकारी पार्टी ने अपने संगठन में पैसो की कमी को पूरी करने केलिए डकैती का रास्ता अपनाया. यह एक मिशन बना लिया और इसका नाम ‘एक्शन’ रखा गया.
25 दिसंबर 1924 को क्रिस्मस के दिन पीलीभीत जिले के एक गाँव बमरौली में एक खण्डसारी व सूदखोर के यहाँ पहली डकैती डाली गयी. इस डकैती में ४००० रुपये और कुछ सोने-चाँदी के जे़वरात लूट लिए गए. इस दौरान मोहनलाल पहलवान नामक एक आदमी का ठाकुर रोशन सिंह की राइफल से देहांत हो गया. मोहनलाल पहलवान की मौत का जिम्मेदार ठाकुर को ठहराया गया. इसके सजा के तौर पर उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी.
आखिरी खत | Roshan Singh last Letter
6 दिसंबर 1927 को रोशन सिंह ठाकुर ने इलाहाबाद में रहने वाले अपने एक मित्र को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने लिखा कि,
“इस सप्ताह के भीतर ही फाँसी होगी. ईश्वर से प्रार्थना है कि वह आपको मोहब्बत (प्रेम) का बदला दे. आप मेरे लिये रंज (खेद) हरगिज (बिल्कुल) न करें. मेरी मौत खुशी का बाइस (कारण) होगी. दुनिया में पैदा होकर मरना जरूर है. दुनिया में बदफैली (पाप) करके अपने को बदनाम न करे और मरते वक्त ईश्वर की याद रहे;यही दो बातें होनी चाहिये और ईश्वर की कृपा से मेरे साथ ये दोनों बातें हैं. इसलिये मेरी मौत किसी प्रकार अफसोस के लायक नहीं है.
दो साल से बाल-बच्चों से अलग रहा हूँ. इस बीच ईश्वर भजन का खूब मौका मिला. इससे मेरा मोह छूट गया और कोई वासना बाकी न रही. मेरा पूरा विश्वास है कि दुनिया की कष्ट भरी यात्रा समाप्त करके मैं अब आराम की जिन्दगी जीने के लिये जा रहा हूँ. हमारे शास्त्रों में लिखा है कि जो आदमी धर्म युद्ध में प्राण देता है उसकी वही गति होती है जो जंगल में रहकर तपस्या करने वाले ऋषि मुनियों की. “
पत्र के आखिरी चरण में उन्होंने अपना यह शेर भी लिखा था:
जिन्दगी जिन्दा-दिली को जान ऐ रोशन!
वरना कितने ही यहाँ रोज फना होते हैं.
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