तिलका मांझी का जीवन परिचय |
Tilka Manjhi Biography, History, Birth, Education, Life, Death, Role in Independence in Hindi
दोस्तों, आज हम तिलका मांझी का जीवन परिचय जानेंगे. तिलका मांझी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले स्वतंत्रता सेनानी थे. बिहार के घने जंगलों में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सर्वप्रथम तिलका मांझी ने जंग छेड़ी थी. 1857 की क्रांति से लगभग 80 साल पुरानी यह बात है. इसलिए, वास्तव में तिलका मांझी को प्रथम स्वतन्त्रता सेनानी माना जाता है. तो चलिए, इस लेख में तिलका मांझी का जीवन परिचय विस्तार से जानते है.
नाम | तिलका मांझी |
वास्तविक नाम | जबरा पहाड़िया |
जन्मतिथि | 11 फरवरी, 1750 |
जन्मस्थान | तिलकपुर, बिहार |
पिता | सुंदरा मुर्मू |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
प्रारम्भिक जीवन | Tilka Manjhi Early Life
तिलका मांझी का जन्म 11 फरवरी, 1750 को बिहार के सुल्तानगंज में ‘तिलकपुर’ नामक गाँव में एक संताल परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम सुंदरा मुर्मू था. उनका वास्तविक नाम ‘जबरा पहाड़िया’ ही था. तिलका मांझी यह नाम उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा दिया गया था. पहाड़िया भाषा में ‘तिलका’ का अर्थ है गुस्सैल और लाल-लाल आंखों वाला व्यक्ति. वे ग्राम प्रधान थे, इसलिए उन्हें मांझी भी कहा गया. क्योकि, पहाड़िया समुदाय में ग्राम प्रधान को मांझी कहकर पुकारने की प्रथा है.
योगदान | Tilka Manjhi Contribution
उन्होंने हमेशा से ही अंग्रेज़ो को अपने जंगलों की मूल्यवान संपत्ति को लूटते, उनके क्षेत्र के आदिवासियों को परेशान करते देखा था. तिलका ने धीरे धीरे अंग्रेज़ो के खिलाफ जंग छेड़ना शुरू कर दिया था. अंग्रेज़ो के खिलाफ लढ़ने केलिए लोगों को एकजुट करने का कार्य इन्होने किया है.
1771 से 1784 तक उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध लंबी लड़ाई लड़ी. इन्होंने 1778 ई. में पहाड़िया सरदारों से मिलकर रामगढ़ कैंप पर कब्जा करने वाले अंग्रेजों को खदेड़ कर कैंप को मुक्त कराया था. 1784 में इन्होने ने क्लीवलैंड की ह्त्या की थी. उसके बाद आयरकुट के नेतृत्व में तिलका की गुरिल्ला सेना पर हमला किया गया था जिसमें कई लड़ाके मारे गए और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. कहते हैं उन्हें चार घोड़ों में बांधकर घसीटते हुए भागलपुर लाया गया था. तिलका की लाल आँखे देख अंग्रेज़ घबरा गए थे. डरते हुए अंग्रेज़ो ने भागलपुर के चौराहे पर स्थित एक विशाल वटवृक्ष पर उन्हें लटकाकर उनको मौत के घाट उतारा था. कहते है, तिलका उर्फ़ जबरा पहाड़िया ने फांसी पर चढ़ने से पहले गीत गाया था – हांसी-हांसी चढ़बो फांसी ……!
तिलका ने अपने जीते जी अंग्रेज़ो को चैन की नींद नहीं लेने दी. अंग्रेज़ो को भारत से निकालने का उनका प्रयास सफल रहा. हालाँकि, तिलका मांझी के इतिहास का वर्णन बड़े पैमाने पर उपलब्ध नहीं है, लेकिन उनके यह प्रयास अंग्रेज़ो को सबक सिखाने में कामियाब रहे. तिलका मांझी के प्रयासों को दिल से सलाम.
साहित्य में तिलका मांझी
- बांग्ला की सुप्रसिद्ध लेखिका महाश्वेता देवी ने तिलका मांझी के जीवन और विद्रोह पर बांग्ला भाषा में एक उपन्यास ‘शालगिरर डाके’ की रचना की है. यह उपन्यास हिंदी में ‘शालगिरह की पुकार पर’ नाम से अनुवादित और प्रकाशित हुआ है.
- हिंदी के उपन्यासकार राकेश कुमार सिंह ने अपने उपन्यास ‘हूल पहाड़िया’ में तिलका मांझी को जबरा पहाड़िया के रूप में चित्रित किया है.
- तिलका मांझी के नाम पर भागलपुर में तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय नाम से एक शिक्षा का केंद्र स्थापित किया गया है.
नोट:- यह एक रहस्य है, जिसे कई लेखको ने अपने विवरण में तिलका मांझी को संताल बताया है और कुछ उन्हें पहाड़िया भी कहते है, जबकि इसके कहीं भी लिखित दस्तावेज उपलब्ध नहीं है. जब तक कोई लिखित या सही दस्तावेज नहीं मिल जाता तब तक यह एक विवाद ही रहेगा कि तिलका मांझी या जबरा पहाड़िया कौन थे या वे किस समुदाय से थे. हमने वही जानकारी दी है जिसके बारे कई बड़े लेखक बताते है, पर हमारा इरादा आपकी या किसी भी समुदाए की भावनाओं को ठेस पहुचाना नहीं है. जैसे ही कोई सही पुख्ता जानकारी हमे मिलेगी हम इस लेख को जरुर संशोधित करेंगे, दिल से देशी पर बने रहने के लिए आपको धन्यवाद !
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Wo santhal ny the wo pahadiya community se belong krte the pahle puri research kijye uske bad koi post daliye 😡
यह एक रहस्य है, जिसे कई लेखको ने अपने विवरण में तिलका मांझी को संताल बताया है और कुछ उन्हें पहाड़िया भी कहते है, जबकि इसके कहीं भी लिखित दस्तावेज उपलब्ध नहीं है. जब तक कोई लिखित या सही दस्तावेज नहीं मिल जाता तब तक यह एक विवाद ही रहेगा कि तिलका मांझी या जबरा पहाड़िया कौन थे.