गणगौर के पर्व की पूजा विधि, गीत, महत्व और बनाये जाने वाले पकवान की सूची | Gangaur Festival Puja Vidhi, Mahatva, Geet and Sweet List in Hindi
राजस्थानी मारवाड़ियों का गणगौर पूजा पर्व मनाने में जुटी महिलाओं का साज-बाज अब आपको सिर्फ राजस्थान में ही नहीं यूपी, बिहार, झारखंड, असम, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश समेत पूरे भारत में देखने को मिलता है. अब इसे परंपरा का विस्तार कहे या आस्था “गणगौर पूजा” भारत के प्रमुख त्यौहारों में शुमार हो चुका है और उसी श्रद्धा भक्ति और उत्साह से मनाया जाता है. होली के दूसरे दिन से शुरू यह पर्व पूरे 16 दिन तक मनाया जाता है. पर्व चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को समाप्त होता है. इस पर्व पर कुंवारी कन्याएं व विवाहित महिलाएं शिवजी (ईसर) व पार्वती (गणगौर) की पूजा करती है. पूजा करते हुए दूब से पानी के छींटे देते हुए गीत गाती है. जहां कुंवारी लड़कियां इस व्रत को मनपसंद वर पाने की कामना से करती है, तो वहीं विवाहित महिलाएं इसे पति की दीर्घायु की कामना के लिए करती है.
खनकती चूड़ियां और पायल की आवाज.
लहराते होटों से झरते राजस्थानी गीतों के बोल,
यही तो है गणगौर की पहचान.
गणगौर की पूजा (Gangaur ki Puja Vidhi)
गणगौर माता को सजाकर 16 दिन तक दूध और सिंदूर से उनकी पूजा होती है 16 दिन बाद सारी महिलाएं इकट्ठे होकर घुघरी बनाती है और सबके घरों में बांटकर आती है. गणगौर पूजा में 16 अंक का विशेष महत्व होता है काजल, रोली, मेहंदी से 16-16 बिंदिया गणगौर के गीत गाते हुए लगाते हैं. गणगौर को चढ़ने वाले प्रसाद फल व सुहाग की सामग्री 16 के अंक में चढ़ाई जाती है वही पूजा भी 16 दिनों की होती है. ईसर गौरव को शिव पार्वती का प्रतीक मानकर उनकी पूजा अर्चना की जाती है इसलिए इसे शिव और गौरी की आराधना का पर्व कहा जाता है. अखंड सौभाग्य और पीहर, ससुराल की समृद्धि की कामना से जुड़ा गणगौर पूजन एक जरूरी वैवाहिक रस्म के रूप में प्रचलित है. नई नवेली दुल्हन जब अपने पति की मनुहार करती है कि उसे गणगौर पूजने जाने दे तो उस भाव को लेकर यह प्यारा सा लोक गीत गाया जाता है.
भंवर म्हाने खेलन दो गणगौर
खेलन दो गणगौर भंवर म्हाने पूजन दो गणगौर
खेलन दो गणगौर भंवर म्हाने पूजन दो दिन चार
ओ जी म्हारी सग़ी रे नण्द रा बिन्द
पिया जी म्हाने खेलन दो गणगौर
प्यारा घना लागो सा मंनडे में भावो सा म्हारा पिया जी जे2
खेलन दो गणगौर आलिजा म्हारा म्हाने पूजन दो गणगौर
ओ जी म्हारी सहेल्या जोवे बाट आलिजा खेलन दो गणगौर
पिया जी म्हाने पूजन दो गणगौर
गणगौर पर गीत का महत्व (Importance of Geet on Gangaur)
इस पर्व पर प्रार्थना स्वरुप गाने के लिए हर रिश्ते को संबोधित करने वाले मर्मस्पर्शी गीत बने हैं. गणगौर की पूजा में मन के हर भाव को शब्द देने वाले लोकगीतों की लंबी सूची है अलग-अलग अवसरों पर मन को छूने वाले अलग-अलग लोकगीत गाए जाते हैं असल में देखा जाए तो यह गीत ही गणगौर पूजन के मंत्र है. जिनमें महिलाएं के भाव झलक पड़ते हैं तभी तो यह त्यौहार की पूजा अर्चना के अलावा स्त्रीत्व के भी कहीं खुशहाल रंग समेटे हैं.
गणगौर के मिष्ठान (Sweets on Gangaur)
गणगौर का उत्सव घेवर के बिना अधूरा है खीर, चूरमा, पूरी, मठरी से इस ईसर गणगौर को पूजा जाता है आटे और बेसन के घेवर बनाए जाते हैं और गणगौर माता को चढ़ाए जाते हैं गणगौर पूजन का स्थान समूह में किसी एक स्थान अथवा घर में किया जाता है गणगौर की पूजा में गाए जाने वाले लोकगीत इस अनूठे पर्व की आत्मा होते हैं.
महिलाओं का उत्सव (Festival of Woman Celebration)
गणगौर उत्सव स्त्रियों का ही शुभ माना जाता है. असल में गणगौर के बहाने महिलाएं एक- दूसरे से मिलती है और अपने अपने सुख-दुख बाँटती है. साथ ही रोजमर्रा के जीवन से कुछ अलग दिन बिताती है. गणगौर शिव- पार्वती के प्रेम में मित्रों की तरह की ग्रहस्त जीवन की परिकल्पना की आकांक्षाओं का चित्र है. इस पूजा में कन्या और विवाहित स्त्रियां मिट्टी के ईसर और गौर बनाती है उनको सुंदर पोशाक पहन आती है श्रृंगार कर आती है और खुद भी संवरती है. कहते हैं इस दिन भगवान शिव और पार्वती ने समस्त स्त्रियों को सौभाग्य का वरदान दिया था यही वजह है कि सभी महिलाएं पूरी शिद्दत से गणगौर की पूजा करती है.
आधुनिक पीढ़ी भी रंग में रंगी
पुरानी पीढ़ियों से मिले रीति-रिवाजों को आज आधुनिक पीढ़ी भी अपना रही है यही वजह है कि विदेशों में नौकरी करने पहुंचे आज के बच्चे भी अपने परिवारों से सीखें रीति रिवाजों को मिलो दूर भी उत्साह से निभा रहे हैं.
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