शहंशाह-ए-क़व्वाली नुसरत फ़तेह अली खान का जीवन परिचय | Nusrat Fateh Ali Khan Biography(Birth, Career, Qawwali and Awards)
हम आज उस दौर में जी रहे है जहां पर म्यूजिक के बिना हमारा जीवन अधूरा सा लगता है. आज के जो म्यूजिक कलाकार है उन्होंने अपनी मखमली आवाज़ से सभी का दिल जीत रखा है. भारत में कई मशहूर गीतकारो ने गीत फिल्मो के माध्यम से पेश किये है जैसे की किशोर कुमार, मुकेश, आर.डी.बर्मन, मोहम्मद रफ़ी जैसे और भी कई सितारे है जिन्होंने फिल्म जगत से म्यूजिक देकर उन्हें लाइव परफॉरमेंस में भी बदला है.
भारत देश विदेश के कलाकारों के लिए एक बहुत ही बड़ा मंच है, यहाँ पर बाहर से कई गीतकार आ चुके है जिन्होंने अपनी छाप छोड़ रखी है. जैसे राहत फ़तेह अली खान, आतिफ असलम, गुलाम अली, अदनान सामी, फवाद खान बॉलीवुड में गा चुके है. इनमें से कुछ तो अभी भी बॉलीवुड फिल्मो के लिए गाते है पर कुछ ऐसे भी है जो कि कुछ समय ही गाकर वापस अपने देश में लौट गए लेकिन उनका विश्व में बहुत बड़ा नाम है, चलिए बात करते है उनमे से एक है उस्ताद नुसरत फ़तेह अली खान के बारे में
भारत में आज के समय में लोग मॉडर्न म्यूजिक को बहुत पसंद करते है. इसीलिए पुराने ट्रेडिशनल म्यूजिक को पसंद नहीं किया जाता है. उन्होंने 1970 के दशक से 1990 के दशक में कव्वालियाँ गाई. पर आज के दौर में उनकी क़व्वालियों को पसंद नहीं किया जाता है. इसी कारण से इक्कीसवी सदी के कुछ लोग उन्हें जानते ही नहीं है.
नुसरत फ़तेह अली खान जन्म और प्रारंभिक जीवन (Nusrat Fateh Ali Khan Birth and Intial Career)
उस्ताद नुसरत फ़तेह अली खान का जन्म 13 अक्टूबर 1948 को पकिस्तान के पंजाब प्रान्त के फैसलाबाद शहर में हुआ था. नुसरत फ़तेह अली खान का असली नाम था परवेज़ फ़तेह अली खान. उनके पिता फ़तेह अली खान भारत के मशहूर कव्वाल थे. नुसरत साहब का खानदान पिछले 600 सालों से क़व्वाली गाते आ रहा था. नुसरत साहब ने पहले अपने पिता से तबला सिखा बाद में उन्होंने अपने चाचा सलामत अली खान से हारमोनियम का ज्ञान लिया. नुसरत 16 साल के थे जब उनके पिता की मौत हो गयी थी. उन्होंने अपने पिता के श्रद्धांजलि कार्यक्रम में आयोजित क़व्वाली प्रोग्राम में पहली बार लोगो के सामने आकर क़व्वाली गाई.
नुसरत के पिता उन्हें कव्वाल नहीं बनाना चाहते थे. वे समझते थे की क़व्वाली मे उनका दर्जा एक छोटे आदमी के जैसा होता है. वे नुसरत साहब को डॉक्टर बनाना चाहते थे. नुसरत को अपने पिता की मौत के लगभग 10 दिन बाद एक सपना आया जिसमे फ़तेह अली खान साहब नुसरत से कहते है की तुम्हे आगे जा कर कव्वाल बनना है और क़व्वाली पढनी है. फिर उन्होंने अपने चाचा सलामत अली खान और मुबारक अली खान के साथ छोटे पैमाने पर क़व्वाली गाना शुरू कर दिया.
इसे भी पढ़े : सत्येंद्र नाथ बोस का जीवन परिचय
नुसरत फ़तेह अली खान और क़व्वाली (Nusrat Fateh Ali Khan Qawwali Career)
अपने चाचा मुबारक अली खान की मौत के बाद नुसरत अपने परिवार के मुख्य कव्वाल बन गए थे. उनकी पार्टी का नाम तब “नुसरत फ़तेह अली खान, मुजाहिद मुबारक अली खान कव्वाल एंड पार्टी” था. नुसरत फ़तेह अली खान का नाम तब परवेज़ फ़तेह अली खान था जब वे गुलाम-घौस-समदानी के पास गए वहां नुसरत की कला के बारे में जान कर गुलाम-घौस-समदानी ने उन्हें नुसरत नाम दिया था. नुसरत नाम का अर्थ होता है विजय, जीत. उन्होंने कहा था की नुसरत एक दिन बहुत ही बड़ा कव्वाल बनेगा और परिवार का नाम दुनिया में रोशन करेगा.
“हक़ अली अली मौला अली अली” नामक क़व्वाली ने नुसरत का नाम पाकिस्तान सहित दुनिया के सामने ला कर रखा. उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उस समय उनके नाम गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में सबसे ज्यादा 125+ क़व्वालियों के गाने का रिकॉर्ड था. उनके साथ उनके भाई फर्रुख फतेह अली खान और कई चचेरे भाई भी गाते या बजाते थे. उनके साथ दिलदार हुसैन नाम के तबला वादक तबला बजाते थे. नुसरत को दुनिया के सामने लाने और उन्हें मशहूर बनाने में अगर किसी का सबसे बड़ा हाथ पीटर गेब्रियल का है, पीटर गेब्रियल ने कैनेडियन गिटारिस्ट माइकल ब्रूक से कहा की आप नुसरत के साथ कुछ प्रोग्राम में अपने गिटार की आवाज़ दे दीजिये.
नुसरत फ़तेह अली खान के अवार्ड्स (Nusrat Fateh Ali Khan Awards)
नुसरत फ़तेह अली खान को सन 1987 में उनके प्रदर्शन से प्राइड ऑफ़ पकिस्तान का अवार्ड मिला था. उसके बाद नुसरत ने सन 1989 में पहली बार विदेश में कार्यक्रम करना शुरू कर दिए. नुसरत का नाम संगीत जगत के बड़े गीतकारो में आने लग गया था. उन्हें शहंशाह-ए-क़व्वाली नाम से भी जाना जाने लगा नुसरत ने बॉलीवुड में भी कुछ गाने गए है जिनका नाम है अफरीन आफरीन, दुल्हे का सेहरा छोटी सी उमर,प्यार नहीं करना. इन गानों में से नुसरत का सबसे बढ़िया गाना और जाना पहचाना गाना था दुल्हे का सेहरा. ये गाना धड़कन फिल्म में फिल्माया गया था.
नुसरत सन 1990 के बाद ज्यादातर विदेशो में ही गाते थे उन्होंने राहत फ़तेह अली खान को 6 साल की उम्र से गायन और हारमोनियम बजाना सिखा दिया था. राहत ने नुसरत साहब के साथ 9 साल की उम्र में पहली बार एक क़व्वाली गायी थी.
नुसरत फ़तेह अली खान की मृत्यु(Nusrat Fateh Ali Khan Death)
1997 में नुसरत एक कॉन्सर्ट के लिए लन्दन गए थे पर उनकी तबियत उस समय गंभीर थी पर उन्होंने अपना आखिरी कॉन्सर्ट रद्द करने के बजाय स्ट्रेचर पर करा उस कॉन्सर्ट के कुछ ही दिनों बाद नुसरत साहब की मौत 16 अगस्त 1997 में कार्डियक अरेस्ट के कारण लन्दन में ही हुई.
इसे भी पढ़े : रितु पांडे का जीवन परिचय
इसे भी पढ़े : महेंद्र सूरी का जीवन परिचय