राष्ट्रीय एकता और अखंडता पर निबंध हिंदी में | Essay on National Unity in Hindi | Rashtriya Ekta Aur Akhandta Par Nibandh | Rashtriya Ekta ka Mahatva
प्रस्तावना
भारत अनेक धर्मों, जातियों और भाषाओं का देश है. धर्म, जाति एवं भाषाओं की दृष्टि से विविधता होते हुए भी भारत में प्राचीन काल से ही एकता की भावना विद्यमान रही है. जब कभी किसी ने उस एकता को खंडित करने का प्रयास किया है. भारत का एक एक नागरिक सजग हो उठता है. राष्ट्रीय एकता को खंडित करने वाली शक्तियों के विरुद्ध आंदोलन आरंभ हो जाता है. राष्ट्रीय एकता हमारे राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है और जिस व्यक्ति को अपने राष्ट्रीय गौरव का अभिमान है. वह नर नहीं नर पशु है.
जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है.
वह नर नहीं नर पशु निरा है और मृतक समान है.
राष्ट्रीय एकता से अभिप्राय
राष्ट्रीय एकता का अभिप्राय हैं संपूर्ण भारत की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और वैचारिक एकता. हमारे कर्म-कांड, पूजा-पाठ, खान-पान, रहन-सहन और वेशभूषा में अंतर हो सकता है. इनमें अनेकता भी हो सकती है किंतु हमारे राजनीतिक और वैचारिक दृष्टिकोण में एकता है. इस प्रकार अनेकता में एकता ही भारत की प्रमुख विशेषता है. एकता भावनात्मक शब्द है जिसका अर्थ है एक होने का भाव. देश का सामाजिक, सांस्कृतिक, भूगोल तथा साहित्यिक दृष्टि से एक होना ही एकता का वास्तविक अर्थ है.
भारत में अनेकता के विविध रूप
भारत जैसे विशाल देश में अनेकता का होना स्वभाविक ही है. धर्म के क्षेत्र में हिंदू, मुसलमान, सिख, इसाई, जैन, बौद्ध, पारसी आदि विविध धर्म के लोग यहां निवास करते हैं. एक-एक धर्म में भी अवांतर भेद हैं जैसे हिंदू धर्म के अंतर्गत वैष्णव, शैव, शाक्त आदि भेद है. मुसलमान में भी शिया, सुन्नी आदि भेद हैं. सामाजिक दृष्टि से विभिन्न जातियां, उप जातियां, गोत्र आदि विविधता के सूचक हैं. सांस्कृतिक दृष्टि से खान पान, वेशभूषा, पूजा पाठ आदि की भिन्नता मैं भी अनेकता है. साहित्यिक दृष्टि से शोभा, भौगोलिक स्थिति, ऋतु परिवर्तन आदि में भी पर्याप्त भिन्नता दृष्टिगोचर होती है. इतनी विविधताओं के होते हुए भी भारत अत्यंत प्राचीन काल से एकता के सूत्र में बंधता आ रहा है.
राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता
राष्ट्र की आंतरिक शक्ति तथा सुव्यवस्था और बाह्य सुरक्षा की दृष्टि से राष्ट्रीय एकता की परम आवश्यकता होती है. भारतवासियों में यदि जरा सी भी फूट पड़ेगी तो अन्य देश हमारी स्वतंत्रता को हड़पने के लिए तैयार बैठे हैं. जब जब हम असंगठित हुए हैं, हमें आर्थिक और राजनीतिक रूप से इसकी कीमत चुकानी पड़ी है. अतः देश की स्वतंत्रता की रक्षा और राष्ट्र की उन्नति के लिए राष्ट्र की एकता का होना परम आवश्यक है.
राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधाएं
राष्ट्रीय एकता की भावना का अर्थ मात्र यह नहीं है कि हम एक राष्ट्र से सम्बद्ध हैं. राष्ट्रीय एकता के लिए एक दूसरे के प्रति भाईचारे की भावना आवश्यक है. आजादी के समय हमने सोचा था कि पारंपरिक भेद दो समाप्त हो जाएगा किंतु सांप्रदायिकता, क्षेत्रीयता, जातीयता, अज्ञानता और भाषागत अनेकता ने अब तक पूरे देश को आक्रांत कर रखा है.
राष्ट्रीय एकता को विभिन्न कर देने वाले निम्न कारण है-
साम्प्रदायिकता
राष्ट्रीय एकता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा सांप्रदायिकता की भावना है. सांप्रदायिकता एक ऐसी बुराई है जो मानव मानव में फूट डालती है, समाज को विभाजित करती है. दुर्भाग्य से सांप्रदायिकता की बीमारी का जितना इलाज किया गया वह उतना ही अधिक बढ़ता गया. स्वार्थी राजनीतिज्ञ संप्रदाय के नाम पर भोले भाले लोगों को परस्पर लड़ा कर अपना ही स्वार्थ पूरा कर रहे हैं. जिससे देश का वातावरण विषैला होता जा रहा है. सांप्रदायिक सद्भाव की दृष्टि से सभी धर्मों में सेवा, परोपकार, सत्य, प्रेम, समता, नैतिकता, अहिंसा, पवित्रता आदि गुण समान रूप से मिलते हैं. जहां भी द्वेष, घृणा और विरोध है, धर्म नहीं है. राष्ट्रवादी शायर इकबाल ने कहा है-
“मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिंदी है हम वतन है हिंदुस्तान हमारा.”
अंग्रेजों ने फूट डालो राज्य करो नीति के अंतर्गत ही भारत विभाजन कराया और पाकिस्तान तथा हिंदुस्तान के बीच सदैव के लिए वैमनस्य का बीज बो दिया. राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधने के लिए सांप्रदायिक विद्वेष, स्पर्धा, ईर्ष्या आदि राष्ट्र विरोधी भावनाओं को मन से त्याग कर परस्पर सांप्रदायिक सद्भाव रखना होगा. सांप्रदायिक सद्भाव का अर्थ है कि हिंदू, मुसलमान, ईसाई, सिख, पारसी, जैन, बौद्ध आदि सभी भारत भूमि को अपनी मातृभूमि मानकर साथ रहे और सद्भाव के साथ रहे. यह राष्ट्रीय एकता के लिए अनिवार्य एवं आवश्यक है.
सांप्रदायिक सद्भाव और सौहार्द बनाए रखने के लिए सभी भारतवासियों को प्रेम से रहना चाहिए. सभी धर्मात्मा की शांति के लिए विभिन्न उपाय करते हैं. सभी धर्म समान है कोई छोटा बड़ा नहीं है. मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च सभी पूजा के स्थल है. इन सभी स्थानों पर आत्मा को शांति मिलती है. हमारे लिए सभी पूजा स्थल पूजा पूज्य और पवित्र है.
सांप्रदायिक कटुता को दूर करने के लिए हमें परस्पर सभी धर्मों का आदर करना चाहिए. सभी भारतवासी परस्पर भाई बन कर रहे. धर्म ग्रंथों के वास्तविक संदेश को समझे,उनका स्वार्थ पूर्ण अर्थ ना निकालें. विभिन्न धर्मों के आदर्शों का संग्रह किया जाए. प्राथमिक तथा माध्यमिक कक्षाओं में उनके अध्ययन की विधिवत व्यवस्था की जाए.
भाषागत विवाद
भारत बहुभाषी राष्ट्र है. विभिन्न प्रांतों की अलग-अलग बोलियां और भाषाएं हैं. प्रत्येक व्यक्ति अपनी भाषा को श्रेष्ठ और उसके साहित्य को महान मानता है. इस आधार पर भाषा का विवाद खड़े हो जाते हैं और राष्ट्र की एकता तथा अखंडता भंग होने के खतरे बढ़ जाते हैं. यदि कोई व्यक्ति अपनी मातृभाषा के मोह के कारण दूसरी भाषा का अपमान तथा अवहेलना करता है, तो वह राष्ट्रीय एकता पर प्रहार करता है.
प्रांतीयता अथवा प्रादेशिकता की भावना
प्रांतीयता अथवा प्रादेशिकता की भावना भी राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती है. कभी कभी किसी अंचल विशेष के निवासी अपने पृथक अस्तित्व की मांग करते हैं. ऐसी मांग करने से राष्ट्रीय एकता काथा अखंडता का विचार ही समाप्त हो जाता है. क्षेत्र विशेष के विकास के लिए हमें स्वयं प्रयास करना चाहिए तथा शांतिपूर्वक सरकार के उस क्षेत्र के विकास के लिए दृढ़ता से आग्रह करना चाहिए. यह आदर्श ही हमारे राष्ट्रीय एकता का आधार है.
जातिवाद
भारत में जातिवाद सदैव प्रभावी रहा है. प्रत्येक जातीय अपने को दूसरी जाति से उच्च समझती है. कर्म पर आधारित वर्ण व्यवस्था टूटी और जाति प्रथा के कहर के रूप में उभरी. जातिवाद ने भारतीय एकता को बुरी तरह प्रभावित किया. आजादी के बाद अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लिए हर स्तर पर आरक्षण की नीति का आर्थिक दृष्टि से दुर्बल सवर्ण जातियों ने कड़ा विरोध किया. इस विवाद पर लोगों ने तोड़फोड़, आगजनी, अराजकता फैला कर राष्ट्रीय एकता को प्रभावित किया. इस प्रकार जातिवाद राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधक है.
राष्ट्रीय एकता बनाए रखने के उपाय
वर्तमान परिस्थितियों में राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने के लिए निम्नलिखित उपाय हैं-
सर्वधर्म समभाव
सभी धर्मों के आदर्श एवं श्रेष्ठ माते समान दिखाई देती है. सभी धर्मों का समान रूप से आदर करना चाहिए. धार्मिक अथवा सांप्रदायिक आधार पर किसी भी धर्म को ऊंचा-नीचा या बड़ा छोटा नहीं समझना चाहिए.
समिष्ट हित की भावना
हम अपनी स्वार्थ भावनाओं को भूलकर समिष्ट हित का भाव विकसित कर ले तो धर्म, क्षेत्र, भाषा और जाति के नाम पर ना सोचकर समूचे राष्ट्र के नाम पर सोचेंगे. अलगाववादी भावना के स्थान पर राष्ट्रीय भावना का विकास होगा जिससे अनेकता रहते हुए भी एकता की भावना सदृद होगी.
एकता का विश्वास
भारत में अनेकता में ही एकता का निवास होता हैं. हमें समाज में ऐसे प्रयास करना चाहियें कि सभी नागरिक प्रेम और सद्भाव द्वारा एक-दुसरे में अपने प्रति विश्वास जमा सके.
शिक्षा का प्रसार
शिक्षा से हमारा मन उदार तथा दृष्टीकोण व्यापक बनता हैं. भारत में अशिक्षा के कारण लोग भावावेश में बह जाते हैं. बच्चों के मन में प्रारंभ से ही सभी धर्मों, भाषाओं और जातियों के प्रति सम्मान हो. छात्रों को राष्ट्रभाषा के साथ-साथ एक प्रादेशिक भाषा भी सीखनी चाहियें.
राजनीतिक वातावरण की स्वच्छता
स्वतंत्रता से पूर्व अंग्रेजों ने तथा स्वतंत्रता के बाद राजनेताओं ने जातीय द्वेष तथा धार्मिक फूट डालने का कार्य किया हैं. किसी विशेष सम्प्रदाय का मसीहा बनकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं. ऐसे स्वार्थी राजनेताओं का बहिष्कार होना चाहियें. इस प्रकार राजनीतिक वातावरण स्वच्छ होने से एकता का भाव सुद्रढ़ होगा.
उपसंहार
आज विकास के साधन बढ़ रहे हैं, भौगोलिक दूरियाँ कम हो रही हैं किन्तु आदमी और आदमी के बीच दूरी बढ़ती जा रही हैं. हम सभी को मिलकर राष्ट्रीय एकता के लियें प्रयास करना चाहियें. ऐसा करने पर भारत एक सबल राष्ट्र बनेगा.
इसे भी पढ़े :