अरविन्द घोष का जीवन परिचय | Aurobindo Ghosh, History, Birth, Education, Life, Death, Role in Independence in Hindi
“लक्ष्यहीन जीवन हमेशा एक परेशान जीवन होता है. प्रत्येक व्यक्ति का एक उद्देश्य होना चाहिए. लेकिन यह मत भूलो कि आपके उद्देश्य की गुणवत्ता आपके जीवन की गुणवत्ता पर निर्भर करेगी. आपका उद्देश्य उच्च और व्यापक, उदार और उदासीन होना चाहिए; यह आपके जीवन को अपने और दूसरों के लिए अनमोल बना देगा. जो भी आपके आदर्श हैं, यह पूरी तरह से महसूस नहीं किया जा सकता है जब तक कि आप अपने आप में पूर्णता का एहसास नहीं करते हैं.”
– Arbind Ghosh
दोस्तों, आज के इस लेख में हम अरविन्द घोष का जीवन परिचय आपको बताने जा रहे है. अरविन्द घोष एक महान स्वतंत्रता सेनानी, कवि एवं दार्शनिक थे. इस लेख में उनके जन्म से लेकर मृत्यु तक, उनके जीवन से जुड़े तथ्य बारिकाई से जानते एवं समज़ते है. तो चलिए शुरुआत करते है –
प्रारम्भिक जीवन | Aurobindo Ghosh Early Life
अरविन्द घोष का जन्म 15 अगस्त 1872 को, कलकत्ता, भारत में हुआ. उनके पिता का नाम कृष्ण धनु घोष था, जो एक डॉक्टर थे और उनकी माता स्वर्णलता देवी थी, जो एक धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी. आपको बता दें, उनके पताजी भारतीय संस्कृति के चहक नहीं थे, वे ईसाई धर्म को प्रार्थमिकता देते थे. इस वजह से उन्होंने अपने बच्चों का दाखिला अंग्रेजी स्कूल में कराया था.
उनके नाना जी श्री राज नारायण बोस एक बंगाली साहित्यिक थे, जिनकी रचनाएँ अद्वितीय मानी जाती है. वर्ष 1879 में उच्च शिक्षा केलिए अरविन्द और उनके भाई को इंग्लैंड भेज दिया गया. मात्रा 18 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने आय.सी.एस जैसी कठिन परीक्षा को पास किया और फिर उन्हें कैंब्रिज में दाखिला मिल गया. इसके साथ ही उन्होंने अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, ग्रीक एवं इटैलियन भाषाओँ में भी निपुणता प्राप्त की थी.
आपको बता दें, उनके पताजी भारतीय संस्कृति के चहक नहीं थे, वे ईसाई धर्म को प्रार्थमिकता देते थे. इस वजह से उन्होंने अपने बच्चों का दाखिला अंग्रेजी स्कूल में कराया था. महज पांच साल की उम्र में अरविन्द को दार्जिलिंग के लोरेटो कान्वेंट स्कूल में भेजा गया. उसके बाद सिर्फ दो साल बाद उन्हें उनके भाई के साथ इंग्लैंड भेज दिया गया. इंग्लैंड में उन्होंने सेंट पॉल स्कूल, लंदन से अपनी शिक्षा पूरी की. उसके बाद 1890 में 18 साल की उम्र में उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में दाखिला मिल गया.
जीवन सफ़र | Aurobindo Ghosh Life Journey
कैंब्रिज में पढाई के दौरान उन्हें भारतीय सिविल सर्विसेज की परीक्षा केलिए आवेदन किया और 1890 में यह परीक्षा अच्छे नंबर से उत्तीर्ण भी की. लेकिन, वह घुड़सवारी के एक आवश्यक इम्तेहान में सफल नहीं हो पाए थे, इसलिए उन्हें भारत सरकार की सिविल सेवा में प्रवेश की अनुमति नहीं मिली.
1893 में अरविन्द घोष भारत वापस लौट आये. इसके बाद उन्होंने उपप्रधानाचार्य के तौर पर बड़ौदा के एक राजकीय विद्यालय में कार्य शुरू किया. बड़ौदा के महाराजा द्वारा उन्हें बहुत सन्मान प्राप्त हुआ. 1893 से 1906 तक उन्होंने संस्कृत, बंगाली साहित्य, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान का विस्तृत रूप से अध्यन किया. 1906 में बंगाल के विभाजन के बाद उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और पहली नौकरी के मुकाबले कम वेतन में बंगाल के नेशनल कॉलेज में नौकरी करने लगे.
इस समय भारत में स्वतन्त्रता संग्राम की आग तेज़ी से फ़ैल रही थी. देश के प्रति प्रेम ने उन्हें स्वतन्त्रता संग्राम में हिस्सा लेने केलिए मजबूर कर दिया. और वे क्रांतिकारी आंदलनों में सक्रीय हिस्सा लेने लगे थे. कईबार उन्होंने आंदलनों का नेतृत्व भी किया. अरविन्द घोष भारत की राजनीति को जागृति करने वाले मार्गदर्शकों में से एक थे. उनके द्वारा अंग्रेजी दैनिक ‘वन्दे मातरम’ पत्रिका का प्रकाशन किया गया. उन्होंने ब्रिटिश वस्तुओं, न्यायालय के बहिष्कार का निर्भीक होकर समर्थन किया.
‘अलीपुर षडयन्त्र केस’ में नेतृत्व के कारण उन्हें 1908 में चालीस युवकों के साथ उन्हें एक साल केलिए गिरफ्तार कर लिया गया. इस षड़यन्त्र में अरविन्द को शामिल करने के लिये सरकार की ओर से जो गवाह तैयार किया था उसकी एक दिन जेल में ही हत्या कर दी गयी. इनके पक्ष में प्रसिद्ध बैरिस्टर चितरंजन दास ने केस को आगे बढ़ाया. 6 मई 1909 को फैसला सुनाया गया, जिसमें अरविन्द घोष को उनके सारे अभियोगों से मुक्त घोषित किया गया. 30 मई 1909 को अरविन्द घोष का एक प्रभावशाली व्याख्यान हुआ जो इतिहास में उत्तरपाड़ा अभिभाषण के नाम से प्रसिद्ध हुआ. 5 दिसंबर 1950 को अरविन्द घोष का देहांत हो गया.
रचनात्मक विशेषताएँ | Aurobindo Ghosh Literature features
1914 में अरविन्द घोष ने आर्य नामक दार्शनिक मासिक पत्रिका का प्रारम्भ किया. उसके बाद साढ़े छह सालों तक उन्होंने जो रचनाएँ रची उनमे धारावाहिक के माध्यम में आयी. जिनमें, निम्नलिखित रचनाएँ मौजूद थी –
- गीता का वर्णन,
- वेदों का रहस्य,
- उपनिषद,
- द रेनेसां इन इंडिया,
- वार एंड सेल्फ डिटरमिनेसन,
- द ह्यूमन साइकिल,
- द आइडियल ऑफ़ ह्यूमन यूनिटी और द फ्यूचर पोएट्री
मुख्य ग्रन्थ –
- दिव्य जीवन
- सावित्री (पद्यानुवाद)
- योग-समन्वय
- श्रीअरविन्द अपने विषय में
- माता
- भारतीय संस्कृति के आधार
- वेद-रहस्य
- केन एवं अन्यान्य उपनिषद्
- ईशोपनिषद
- गीता-प्रबंध
महत्वपूर्ण कृतियाँ –
- द मदर
- लेटर्स ऑन योगा
- सावित्री
- योग समन्वय
- दिव्य जीवन
- फ्यूचर पोयट्री
- योगिक साधन
- “वंदे मातरम”
- कारा काहिनी (जेलकथा)
- धर्म ओ जातीयता (धर्म और राष्ट्रीयता)
- अरबिन्देर पत्र (अरविन्द के पत्र)
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