“इंकलाब जिंदाबाद साम्राज्यवाद का नाश हो दुनिया के मजदूर एक हो”.
बटुकेश्वर दत्त का जीवन परिचय | Batukeshwar Dutt Biography, History, Birth, Education, Life, Death, Role in Independence in Hindi
दोस्तों, आज के इस लेख में हम बटुकेश्वर दत्त का जीवन परिचय आपको बताएंगे. बटुकेश्वर दत्त भारत के एक महान स्वतन्त्रता सेनानी रहे है. 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह के साथ केन्द्रीय विधानसभा में बम विस्फोट किया और उनके साथ गिरफ्तार हो गए. बाद में उन्हें उम्र कैद की सजा भुकतनी पड़ी थी. इस महान क्रांतिकारक को आज़ादी के बाद सन्मान प्राप्त नहीं हुआ, परिणामतः उनके आखिरी दिन बहुत बिकट परिस्थिति में गुजरे. आइये, आज बटुकेश्वर दत्त का जीवन परिचय विस्तार से जानते है.
नाम | बटुकेश्वर दत्त |
जन्मतिथि | 18 नवम्बर 1910 |
जन्मस्थान | ‘बर्दवान’ पश्चिम बंगाल |
पिता | गोष्ठ बिहारी दत्त |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
प्रारम्भिक जीवन | Batukeshwar Dutt Early Life
बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवम्बर 1910 को बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ. इनका बचपन बंगाल प्रांत के वर्धमान जिला अंतर्गत खण्डा और मौसु में बीता. यही उन्होंने अपनी प्रार्थमिक शिक्षा पूरी की. वे बचपन में खेल-खुद में अव्वल थे. उसके बाद उन्होंने पी॰पी॰एन॰ कॉलेज कानपुर से स्नातक किया.
वर्ष 1924 में इनकी भगत सिंह से मुलाक़ात हुई. एक समय गंगा में बाढ़ आ गयी थी, जिस वजह से जनता को बड़ी हानि का सामना करना पड़ा था. इस समय दत्त और भगत सिंह ने मिलकर पीड़ितों की सेवा की थी. देश प्रेमी बटुकेश्वर दत्त हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए और भगत सिंह और उनके साथियों के साथ कार्य करने लगे. इसी दौरान उन्होंने बम बनाना भी सिख लिया.
बटुकेश्वर दत्त और भगतसिंह का असेम्ब्ली में बम फेंकना
वर्ष 1924 में केंद्रीय विधानसभा, औद्योगिक विवाद से सम्बंधित एक बिल पास करने वाली थी. इस बिल के तहत मजदूरों को हानि होने वाली थी, इसलिए हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्यों ने इस बिल का विरोध किया. हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्यों की तरफ से एक योजना बनाई गयी. यह योजना ऐसी थी कि, जब यह बिल पास हो उस समय इसका विरोध बम फेंककर किया जाए और साथ ही यह भी महत्वपूर्ण निश्चय किया कि जो सदस्य इस कार्य के लिए नियुक्त किए जाएंगे वे यहां से भागेंगे नहीं बल्कि स्वेच्छा से गिरफ्तार होकर अदालत में बयान द्वारा यह स्पष्ट करेंगे कि यह कार्य किस लक्ष्य को लेकर किया.
यह योजना कोई साधारण योजना नहीं थी, बल्कि स्वेच्छा से मृत्युदंड को निमंत्रित करने जैसी थी. यह कार्य हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन द्वारा बटुकेश्वर दत्त और विजय कुमार सिन्हा को सौपा गया. इस समय सुखदेव ने बटुकेश्वर दत्त को ये कार्य करने से बचाने की कोशिश की थी. लेकिन, भगत सिंह ने अपनी तरफ से पूरा सहयोग किया और उन्होंने कहाँ था कि, वे जरूर बम फेंकने जायेगे. फिर आखिरी में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त का जाना निश्चय हुआ.
8 अप्रैल 1926 को बिल पास होने के समय भगत सिंह द्वारा एक बम और बटुकेश्वर दत्त द्वारा दूसरा बम फेंका गया. इस समय उस स्थान पर सिर्फ तीन-चार व्यक्ति उपस्थित थे, जिनमें अध्यक्ष विट्ठल भाई पटेल, मोतीलाल नेहरू, पंडित मदन मोहन मालवीय तथा जिन्ना मौजूद थे. भगत सिंह ने सर शूटर पर गोली चलाई किंतु वह डेस्क के नीचे छिप गए. इसके बाद भगत सिंह और दत्त ने जोर जोर से नारेबाजी शुरू की – ‘इंकलाब जिंदाबाद साम्राज्यवाद का नाश हो दुनिया के मजदूर एक हो’. साथ ही दोनों ने लाल रंग के घोषणा पत्र भी भवन में फेंक दिए.
इस घटना के आधे घंटे बाद पुलिस इन्हे पकड़ने आयी, योजना के मुताबिक़ तबतक वे दोनों उसी स्थान पर स्थित थे. कार्य सफल होने की संतुष्टि उनके मन में थी, इसलिए वे दोनों हस्ते हस्ते पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गए. सीआईडी अधिकारी ने इस षड्यंत्र के विषय में कुछ पता लगाना चाहा किंतु उनको इसमें कोई सफलता ना मिली. इस घटना का कोई सुराग पुलिस के हातों नहीं लगा. परिणामतः अंग्रेज सरकार की पुलिस घबरा गई, और दिल्ली में कोलकाता से तत्काल विशेष पुलिस बुलाई गई. जेल में दोनों के साथ दुर्व्यवहार और कठोरता का बर्ताव प्रारंभ हो गया, और इन्हे अलग अलग गन्दी कालकोठरीओ में बंद किया गया.
न्यायालय का फैसला | Batukeshwar Dutt
7 मई 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को दिल्ली की अदालत में उपस्थित किया गया. अदालत में आते ही दोनों ने बड़े जोरों से इंकलाब जिंदाबाद साम्राज्यवाद का नाश हो इत्यादि नारे लगाए. इसके पश्चात अदालत ने बताया कि पुलिस ने दफा 307 हत्या करने का प्रयत्न और विस्फोटक कानून की धारा 3 लगाई है.
इसके बाद 2 दिन तक बयान चलते रहे और तीसरे दिन मैजिस्ट्रेट द्वारा दोनों को अपनी सफाई पेश करने का मौका दिया गया, लेकिन दोनों ने बयान देने से इनकार कर दिया. दोनों ने कहाँ कि, हमें जो कुछ कहना है वह सेशन जज की अदालत में कहेंगे. 4 जून 1929 को दिल्ली जेल में ही सेशन जज की अदालत लगी और नीचे की अदालत में जो बयान सरकारी गवाहों ने दिए थे फिर बयान यहां दिए गए. इसके बाद सिंह और दत्त ने अंग्रेजी में संयुक्त वक्तव्य दिया. दोनों के इस अंग्रेजी बयान ने ‘दूध का दूध और पानी का पानी’ कर दिया.
निधन | Batukeshwar Dutt Death
बटुकेश्वर दत्त के आखिरी दिन काफ़ी मुश्किल तथा पीड़ा में बीतें. आपको जानकर आश्चर्य होगा, आज़ादी के बाद इन्हे सरकार और जनता दोनों तरफ से कोई आदर या सन्मान प्राप्त नहीं हुआ. बटुकेश्वर दत्त जी ने देश की आजादी के लिए 15 साल से ज्यादा का समय जेल में बिताया था और जब यह भारत आजाद हुआ तो उनके पास में कोई रोजगार भी नहीं था. उन्होंने जगह-जगह सड़कों पर सिगरेट बेचकर अपना गुजारा किया.
पटना में बसों के लिए नौकरी निकली थी और जब दत जी वहां के कमिश्नर के सामने पेश हुए तो उनसे कहा गया कि आप अपना स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र लेकर आइए. यह बात राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद जी तक पहुंची, उस वक्त राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद जी ने दत्त से क्षमा मांगी थी. लेकिन, जानकर हैरानी होगी, इसके बाद भी उनके जीवन में कोई बदलाव नहीं आया. 1964 में वे बीमार पड़ गए और उन्हें पटना के किसी अस्पताल में भर्ती किया गया था. इस समय वे टी.बी और कैंसर से ग्रस्त थे.
जब बटुकेश्वर दत्त जी अस्पताल में भर्ती थे तो उसने भगत सिंह की माता जी उनसे मिलने आई थी. उस समय के पंजाब के मुख्यमंत्री बटुकेश्वर दत्त जी से मिलने अस्पताल पहुंचे थे तब बटुकेश्वर दत्त जी ने आंखों से टपकते आंसुओं के साथ कहा कि, ‘मेरी अंतिम इच्छा यही है कि मेरा अंतिम संस्कार मेरे मित्र भगत सिंह की समाधि के पास में ही किया जाए’ . फिर 20 जुलाई 1965 को दत्त का निधन हो गया और उनकी आखिरी इच्छा का सन्मान करते हुए उनका अंतिम संस्कार हुसैनीवाला में सुखदेव, भगत सिंह, राजगुरु की समाधियों के निकट किया गया.
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बहुत अच्छी जानकारी के लिये धन्यवाद । भारत के महान सपूत को शत शत नमन