रीतिकाल महाकवि भिखारीदास का जीवन परिचय
Bhikhari Das Biography, Poems, Books, Death In Hindi
प्राचीन युग मे हिंदी साहित्य में महाकवि भिखारीदास रीतिकाल के श्रेष्ठ कवि है. इन्होंने अनेक काव्य ग्रंथों की रचना की. इन्होंने मूलतः संस्कृत एवं ब्रजभाषा में अपने काव्यों की रचना की. उस समय श्रृंगार रस ही प्रचलित था इसलिए भिखारीदास ने भी अपने काव्य ग्रंथ श्रृंगार एवं सौन्दर्य प्रेम से परिपूर्ण लिखे. इन्होंने प्रतापगढ़ के राजा पृथ्वीसिंह के दरबार मे काव्य पाठ किया. काव्यांगों के निरूपण में भिखारीदास को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया जाता है क्योंकि इन्होंने छंद, रस, अलंकार, रीति, गुण, दोष शब्दशक्ति आदि सब विषयों का विस्तृत प्रतिपादन किया है.
बिंदु (Points) | जानकारी (Information) |
नाम (Name) | भिखारीदास |
जन्म (Date of Birth) | 1721 ई० |
आयु | — |
जन्म स्थान (Birth Place) | टेंउगा, प्रतापगढ़ (उत्तरप्रदेश) |
पिता का नाम (Father Name) | कृपालदास श्रीवास्तव |
काव्य भाषा | ब्रजभाषा, संस्कृत |
पत्नी का नाम (Wife Name) | ज्ञात नहीं |
कर्म भूमि | प्रतापगढ़ |
मृत्यु (Death) | आरा, बिहार |
प्रसिद्ध काव्य | काव्यनिर्णय |
प्रारंभिक जीवन एवं परिवार
कवि भिखारीदास का जन्म प्रतापगढ़ के निकट टेंउगा नामक स्थान में 1721 ई० में हुआ. इनका जन्म कायस्थ परिवार में हुआ था. इनके पिता कृपालदास श्रीवास्तव एवं पितामह वीरभानु थे. इन्होंने अपनी शिक्षा में अलंकार, छंद, रस एवं साहित्यिक ज्ञान प्राप्त किया. भिखारीदास युवावस्था के समय से ही काव्य की रचना करने लगे थे. इस समय ये प्रतापगढ़ के सोमवंशी राजा पृथ्वीसिंह के भाई बाबू हिंदूपतिसिंह के आश्रय में रहे. कवि के पुत्र अवधेश लाल और पौत्र गौरीशंकर थे, जिनके अपुत्र मर जाने से वंश परंपरा खंडित हो गई.
रीतिकाल के कवि भिखारीदास का काव्य | Bhikhari Das Poems
महाकवि भिखारीदास का काव्य काल 1785 से लेकर संवत 1807 तक माना जाता है. क्योंकि 1807 में राजा पृथ्वीपति को दिल्ली के वज़ीर सफदरजंग द्वारा छल से मार दिया गया और इन्होंने 1807 के बाद कोई काव्य नही लिखा. भिखारीदास ने अपने काव्य काल मे छंद, दोहे एवं अलंकार से परिपूर्ण अनेक काव्य रचनाएं लिखी. 1803 में इनके द्वारा ‘काव्यनिर्णय’ की रचना की गई जो बहुत लोकप्रिय हुई. जो आजतक काव्यप्रिय लोगो मे लोकप्रिय है.
महाकवि भिखारीदास ने निम्न ग्रंथो की रचना की-
- रससारांश संवत – रससारांश 1799
- छंदार्णव पिंगल – छंदार्णव पिंगल संवत 179
- काव्यनिर्णय – काव्यनिर्णय संवत 1803
- श्रृंगार निर्णय – श्रृंगारनिर्णय संवत 1807
- नामप्रकाश कोश – नामप्रकाश कोश संवत 1795
- विष्णुपुराण भाषा – विष्णुपुराण भाषा दोहे चौपाई में
- छंद प्रकाश,
- शतरंजशतिका,
- अमरप्रकाश -संस्कृत अमरकोष भाषा पद्य में
कवि भिखारीदास के काव्य “श्रृंगार निर्णय” की कुछ पंक्तियां
केसरिया पट कनक-तन, कनका-भरन सिंगार.
गत केसर केदार में, जानी जाति न दार.
कौनु सिंगार है मोरपखा, यह बाल छुटे कच कांति की जोटी.
गुंज की माल कहा यह तौ, अनुराग गरे परयौ लै निज खोटी॥
‘दास बडी-बडी बातें कहा करौ, आपने अंग की देखो करोटी.
जानो नहीं, यह कंचन सी तिय के तन के कसिबे की कसोटी॥
नैनन को तरसैऐ कहां लौं, कहां लौं हियो बिरहाग में तैऐे
एक घरी न कं कल पैऐ, कहां लगि प्राननि को कलपैऐे
आवै यहै अब ‘दास विचार, सखी चलि सौतिहु के घर जैऐ.
मान घटेतें कहा घटिहै, जु पै प्रान-पियारे को देखन पैऐ॥
मोहन आयो इहां सपने, मुसकात और खात विनोद सों बीरो.
बैठी हुती परजंक पै हौं उठी मिलिबे उठी मिलिबे कहं कै मन धीरो॥
ऐसे में ‘दास बिसासनी दसासी, जगायो डुलाय केवार जंजीरो.
झूठो भयो मिलिबो ब्रजराज को, ए री! गयो गिरि हाथ को हीरो॥
कवि भिखारीदास की भाषा–शैली:-
कवि भिखारीदास ने ब्रजभाषा एवं संस्कृत में अपने काव्यों की रचना की है. उन्होंने अपने काव्य में साहित्यिक और परिमार्जित भाषा को समाहित किया है. श्रृंगार रस ही उस समय का मुख्य विषय था. इसकारण उन्होंने भी अपने अधिकतर काव्य श्रृंगार रस में लिखे. इनका ‘श्रृंगारनिर्णय’ अपने ढंग का अनूठा काव्य है. इनके काव्य के उदाहरण मनोहर और सरस है तथा भाषा में कोई शब्दाडंबर नहीं है.
मृत्यु | Bhikhari Das death
कवि भिखारीदास की मृत्यु बिहार की आरा के भभुआ नामक गाँव मे हुई.
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