गोपाल कृष्ण गोखले की जीवनी, राजनीतिक’ सफ़र, कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में, परिवार, मृत्यु | Gopal Krishna Gokhale Biography, Political Career, As congress president, Family and Death in Hindi
गोपाल कृष्ण गोखले भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और नेता थे. उन्हें नरम दल ने नेता के रूप में भी याद किया जाता हैं, उन्होंने 1906 में वह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने.
बिंदु (Points) | जानकारी (Information) |
पूरा नाम (Full Name) | गोपाल कृष्ण गोखले |
जन्म दिनांक (Date of Birth) | 9 मई 1866 |
जन्म स्थान (Birth Place) | कोथलुक, महाराष्ट्र |
पिता (Father Name) | कृष्णराव श्रीधर गोखले |
माता (Mother Name) | वलुबाई गोखले |
पत्नी (Wife Name) | सावित्रीबाई |
राष्ट्रीयता (Nationality) | भारतीय |
कार्य (Major Work) | भारतीय शिक्षण प्रणाली में महत्वपूर्ण योगदान |
धर्म (Religion) | हिन्दू |
मृत्यु (Death) | 19 फरवरी 1915 |
मृत्यु स्थान (Death Place) | मुंबई, महाराष्ट्र |
गोपाल कृष्ण गोखले का प्रारंभिक जीवन (Gopal Krishna Gokhale Early Life)
गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म रत्नगिरि जिले के कोथलुक में पिता कृष्ण राव और माता वलुबाई के घर महाराष्ट्र में हुआ था. उनके पिता गरीब किन्तु स्वाभिमानी ब्राह्मण थे, पिता की असामयिक मृत्यु ने गोखले जी को समय से पहले ही कर्मठ बना दिया था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा राजाराम हाई स्कूल जो कि कोथापुर में स्थित है से प्राप्त की. सन 1884 में अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए वह बंबई चले गए. इसके बाद उन्होंने पूना के फर्ग्यूसन कॉलेज में इतिहास और राजनीतिक अर्थव्यवस्था पढ़ाना शुरू किया. सन 1902 में वह इसी कॉलेज के प्रिंसिपल बने.
उनके गुरु महादेव गोविंद रानाडे एक प्रसिद्ध विद्वान थे. रानाडे ने 1905 में “सर्वेंट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी” की स्थापना में गोखले की मदद की. इस समाज का मुख्य उद्देश्य भारतीयों को सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित करना था और अपने देश की सेवा करने के लिए प्रशिक्षित करना था. गोखले जी ने गुरु रानाडे जी के साथ त्रैमासिक जर्नल में “सार्वजनिक” नाम से भी काम किया.
निजी जीवन (Gopal Krishna Gokhale Personal Life)
उन्होंने सन 1880 में सावित्रीबाई से शादी कर ली. सावित्रीबाई एक क्रोधित स्त्री थीं और जन्म से ही बीमारी से पीड़ित थीं. इसके बाद सन 1887 गोखले जी ने दूसरा विवाह किया. परन्तु उनकी दूसरी पत्नी की मृत्यु 1900 में हो गई इसके बाद गोखले जी ने पुनर्विवाह नहीं किया. उनकी दूसरी पत्नी से उन्हें दो बेटियाँ थीं.
उनकी शिक्षा की तरफ अधिक रूचि थी इसलिए उन्होंने सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी बनाई और शिक्षा पर अधिक जोर दिया. पढ़ाई में अच्छे प्रदर्शन के लिए उन्हें सरकार से 20 रुपये की छात्रवृत्ति मिलनी शुरू हुई. शिक्षा की जरुरतो को समझते हुए कई लोगो को शिक्षा के लिए प्रेरित किया. उनका यह मानना था कि यदि आपको स्स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनाना है तो शिक्षा और जिम्मेदारियों का ज्ञान होना बहुत जरुरी है. उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाई और आयोग के समक्ष भी शिक्षा की मांग रखी.
राजनीतिक जीवन (Political Career)
गुरु रानाडे की सलाह को मानकर गोपाल कृष्ण गोखले ने 1889 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बने. इसमें वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ सक्रिय रूप से जुड़ गए और कुछ वर्षों तक संयुक्त सचिव रहे. इसके बाद सन 1905 में वे कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए. उच्च शिक्षा ने गोखले जी को स्वतंत्रता, लोकतंत्र और संसदीय प्रणाली के महत्व को समझाया.
सन 1895 में गोखले जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, पूना में “रिसेप्शन कमेटी” के सचिव बने. इस सत्र से गोखले जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक प्रमुख चेहरा बन गए .इसके बाद कुछ समय के लिए गोखले जी बॉम्बे विधान परिषद के सदस्य बने, जहां उन्होंने तत्कालीन सरकार के खिलाफ बात की थी. सन 1901 में उन्होंने भारत के गवर्नर जनरल की इम्पीरियल काउंसिल में भी कार्य शुरू किया था. नमक के करों को कम करने में भी उन्होंने मदद की.
अपनी राजनीतिक गतिविधियों के अलावा सामाजिक सुधार के साथ गोखले जी ने 1905 में “सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी” की स्थापना की उससे उन्होंने कई गरीब लोगो की मदद की. उन्होंने अछूतों या नीची जाति पर हिंदुओं के साथ दुर्व्यवहार का विरोध किया और दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले गरीब भारतीयों की मदद भी की. जब उन्होंने ‘सर्वेन्ट ऑफ़ सोसायटी’ की स्थापना की तो कई कार्य करने की शपथ ग्रहण की जैसे-
- वह अपने देश की सेवा करेंगे और जरूरत पड़ने पर अपने प्राण भी न्योछावर कर देंगे.
- प्रत्येक भारतवासी को अपना भाई मानेंगे और देश में भाईचारा की भावना को बढ़ाएँगे.
- इसके बाद वे कभी भी देश सेवा में व्यक्तिगत लाभ को नहीं देखेंगे.
- जाति के आधार पर हो रहे समाज में भेदभाव को कम करना.
- किसी से झगड़ा नहीं करेंगे और एक सामान्य जीवन बताएँगे.
- देश का संरक्षण करेंगे तथा देश के उद्देश्यों को पूरा करने में अपना योगदान देंगे.
ईमानदार व्यक्ति (Gopal Krishna Gokhale : A Honest Man)
गोपाल कृष्ण गोखले के पिताजी की मृत्यु जल्द हो जाने के बावजूद भी उन्होंने ईमानदारी का मार्ग नही छोड़ा और हर काम को ईमानदारी और निष्ठा से किया. जिसके आधार पर गोखले जी ने आगे चलकर चार सिद्धांतों की घोषणा की-
- सत्य के लिए लड़ो
- अपनी भूल की सहज स्वीकृति
- लक्ष्य के प्रति निष्ठा
- नैतिक आदर्शों के प्रति आदरभाव
गोपाल कृष्ण गोखले की मृत्यु (Gopal Krishna Gokhale Death)
कई वर्षो की कड़ी मेहनत से गोपाल कृष्ण गोखले ने भारत के हित में बहुत बड़ी सेवा प्रदान की. लेकिन दुर्भाग्य से अत्यधिक परिश्रम और परिणामस्वरूप थकावट से उन्हें मधुमेह और हृदय अस्थमा हो गया और 19 फरवरी 1915 को इस महान नेता का निधन हो गया.
दोस्तों यदि आप इस विषय पर स्पीच (भाषण) देना चाहते है तो इस इस लेख का उपयोग किया जा सकता है.
इसे भी पढ़े :