जयप्रकाश नारायण का जीवन परिचय
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जयप्रकाश नारायण एक समाज – सेवक थे जिन्हे “जे.पी.” अथवा “लोकनायक” के नाम से भी जाना जाता है. राजनीति में उनके असाधारण योगदान के लिए उन्हें 1988 में भारत सरकार द्वारा मरणोपरांत “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया था. इसके अतिरिक्त उन्हें समाज सेवा के लिए 1965 में “मैग्सेसे पुरस्कार” प्रदान किया गया था. जयप्रकाश नारायण विचार के पक्के और बुद्धि के सुलझे हुए व्यक्ति थे. बिहार के पटना के हवाई अड्डे का नाम भी उनके नाम से रखा गया है. दिल्ली सरकार का सबसे बड़ा अस्पताल “लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल” भी उनके नाम पर है. लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी ने भारतीय जनमानस पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है. चलिए इस महापुरुष की जीवनी समझने का प्रयास करते है.
जयप्रकाश नारायण का जीवन परिचय | Jay Prakash Narayan Biography in Hindi
बिंदु (Points) | जानकारी (Information) |
नाम (Name) | जयप्रकाश नारायण |
उपनाम (Other Name) | जे.पी, लोकनायक |
जन्म (Date of Birth) | 11/10/1902 |
आयु | 77 वर्ष |
जन्म स्थान (Birth Place) | बलिया, उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम (Father Name) | हरसू दयाल |
माता का नाम (Mother Name) | फूलरानी देवी |
पत्नी का नाम (Wife Name) | ज्ञात नहीं |
पेशा (Occupation ) | समाज सेवक, स्वतंत्रता सेनानी |
बच्चे (Children) | ज्ञात नहीं |
मृत्यु (Death) | 08/10/1979 |
मृत्यु स्थान (Death Place) | पटना |
भाई-बहन (Siblings) | 3 भाई बहन |
अवार्ड (Award) | भारतरत्न |
जन्म और प्रारंभिक जीवन (Birth and Early Life)
जयप्रकाश नारायण जी का जन्म 11 अक्टूबर, 1902 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के सिताब दियारा के एक कायस्थ परिवार में हुआ. इनके पिताजी का नाम “हरसू दयाल” और माता का नाम “फूलरानी देवी” था. वो अपनी माता-पिता की चौथी संतान थे. इनके पिता स्टेट गवर्नमेंट के कैनल विभाग में कार्यरत थे. इन्हें चार वर्ष तक दांत नहीं आया, जिससे इनकी माताजी इन्हें “बऊल जी” कहती थीं.
जयप्रकाश नारायण की शिक्षा | Jay Prakash Narayan Education
पटना में अपने विद्यार्थी जीवन में जयप्रकाश नारायण ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया. वे बिहार विद्यापीठ में शामिल हो गये, जिसे युवा प्रतिभाशाली युवाओं को प्रेरित करने के लिए डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और डॉ. अनुग्रह नारायण सिन्हा द्वारा स्थापित किया गया था. स्कूली दिनों में नारायणजी को पढ़ने का बहुत शौक था. उन्होंने छोटी उम्र में ही कई बड़ी किताबे पढ़ ली. इसी दौरान उन्होंने सरस्वती, प्रभा और प्रताप जैसी पत्रिकाए, मैथिलीशरण गुप्त और भारतेंदु हरिश्चंद्र जैसे बड़े लेखकों की रचनाए इनके आलावा उन्होंने श्रीमदभगवदगीता श्री कृष्ण के अनमोल वचन का अध्ययन किया. उन्होंने “द प्रेजेंट स्टेट ऑफ़ हिन्ची इन बिहार” शीर्षक से एक निबंध लिखा. इस निबंध को एक निबंध प्रतियोगिता में ‘बेस्ट एसे अवार्ड’ प्राप्त हुआ था. इस तरह इनका स्कूली दिनों में तेज़ी से बौद्धिक विकास हुआ.
वे 1922 में उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गए, जहाँ उन्होंने 1922-1929 के बीच कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय-बरकली, विसकांसन विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र का अध्ययन किया और एम.ए. की डिग्री हासिल की. पढाई के साथ साथ वे खेतों, कंपनियों, रेस्त्रां में काम करके पैसे भी कमाते थे. अमेरिका में पढाई के दौरान वे मार्क्स के समाजवाद से बेहद प्रभावित हुए थे. उनकी माताजी की तबियत ठीक न होने के कारण वे भारत वापस आ गये और पी.एच.डी पूरी नहीं कर पाए थे.
जीवन सफ़र (Jay Prakash Narayan Life Story)
1929 में जब वे अमेरिका से लौटे, उस वक्त भारतीय स्वतंत्रता संग्राम तेजी पर था. जयप्रकाशजी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सहभाग लेने का निश्चय किया, क्योंकि इन्हें मौलाना की एक गरज सुनाई पड़ी, जिसे उन्होंने पटना में ध्वनित किया था. मौलाना जी ने कहा था कि “नौजवानों अंग्रेज़ी का त्याग करो और मैदान में आकर ब्रिटिश हुकूमत की ढहती दीवारों को धराशायी करो और ऐसे हिन्दुस्तान का निर्माण करो, जो सारे आलम में खुशबू पैदा करे”. उसी काल में उनका सम्पर्क जवाहरलाल नेहरू जी से हुआ. 1932 में गांधी, नेहरू और अन्य महत्वपूर्ण कांग्रेसी नेताओं के जेल जाने के बाद, उन्होंने भारत में अलग-अलग हिस्सों में संग्राम का नेतृत्व किया.
समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना
1932 में उन्हें भी मद्रास में गिरफ्तार कर लिया गया. यहाँ उनकी मुलाकात मीनू मसानी, अच्युत पटवर्धन, एन.सी.गोरे, अशोक मेहता, एम.एच. दांतवाला, चार्ल्स मास्करेन्हास और सी.के.नारायण स्वामी जैसे उत्साही कांग्रेसी नेताओं से हुई. जेल में इनके द्वारा की गयी चर्चाओं ने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी को जन्म दिया. 1948 में उन्होंने कांग्रेस के समाजवादी दल का नेतृत्व किया और बाद में गांधीवादी दल के साथ मिलकर समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की.
1948 में, उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और कांग्रेस-विरोधी अभियान शुरू किया. 1952 में, उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया. 1954 में, उन्होंने अपना जीवन विशेष रूप से विनोबा भावे के भूदान यज्ञ आंदोलन के लिए समर्पित किया, जिसने भूमिहीनों को भूमि पुनर्वितरण की मांग की. 1959 में उन्होंने गाँव, जिले, राज्य और संघ परिषदों के चार स्तरीय पदानुक्रम के माध्यम से एक “भारतीय राजनीति के पुनर्निर्माण” के लिए तर्क दिया.
वे इंदिरा गांधी की प्रशासनिक नीतियों के विरुद्ध थे. उन्होंने सामाजिक परिवर्तन के एक कार्यक्रम की वकालत की जिसे उन्होंने सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार के खिलाफ 1974 में “सम्पूर्ण क्रांति” का करार दिया. 1975 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की जिसके अंतर्गत जे.पी. सहित ६०० से भी अधिक विरोधी नेताओं को बंदी बनाया गया. जेल में जे.पी. की तबीयत और भी खराब हुई. 7 महीने बाद उनको मुक्त कर दिया गया. 1977 जेपी के प्रयासों से एकजुट विरोध पक्ष ने इंदिरा गांधी को चुनाव में हरा दिया.
सम्मान और पुरस्कार (Honors and Awards)
- वर्ष 1998 में उन्हें मरणोपरान्त भारतरत्न से सन्मानित किया गया.
- एफ आई ई फाउण्डेशन के द्वारा उन्हें राष्ट्रभूषण सम्मान से सन्मानित किया गया.
- वर्ष 1965 में रमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
- 2001 में, भारत सरकार द्वारा जे. पी. नारायण जी की याद में एक डाक टिकट जारी की.
- वर्ष 2002 में, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जयप्रकाश नारायण के जन्मदिवस पर एक रुपए का सिक्का जारी किया गया.
जयप्रकाश नारायण की मृत्यु
जेल में बंद रहने के कारण उनकी तबियत अचानक ख़राब हो गई और 12 नवम्बर 1976 को उन्हें रिहा कर दिया गया. और उन्हें मुंबई के जसलोक अस्पताल में जांच के लिए ले जाया गया. उनकी किडनी ख़राब हो गई थी, जिसके बाद वह डायलिसिस पर ही रहे और अंत में 8 अक्टूबर 1979 को पटना में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया.
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