कृष्णनाथ की जीवनी, जन्म, मृत्यु, प्रमुख रचनाएँ और साहित्य | Krishna Nath Biography Biography, Birth, Death and Literature in Hindi
कृष्णनाथ एक अच्छे पत्रकार थे, वह राजनीति, पत्रकारिता, अध्यन की प्रकिया से गुजरते हुए बौद्ध-दर्शन की ओर चल पड़े थे और उन्होंने बौद्ध दर्शन पर काफ़ी कुछ लिखा है. वे अर्थशास्त्र के विद्वान हैं और काशी विद्यापीठ में इसी विषय के प्रोफ़ेसर भी रहे थे. अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं पर उनकी काफी अच्छी पकड है. उनका नई पीढ़ी के साहित्यकारों में एक विशेष स्थान है. उनके लिखे गघ काव्य के कारण पाठकों के ह्रदय में उनका सदैव स्थान रहेगा एवं दलित और जनजातियो के चित्रण में हमेशा विशेष रूप में याद किये जाएँगे.
जन्म और मृत्यु
कृष्णनाथ जी का जन्म 1934 में वाराणसी के उत्तर प्रदेश में हुआ था. उन्होंने विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए. किया एवं उनको संस्कृत, हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान था. वह इन भाषा के शब्दों का प्रयोग करके अपने लिखे लेख को सजाने का काम करते. उनका वर्ष 2016 में स्वर्गवास हो गया था.
जीवन परिचय
कृष्णनाथ का काशी हिंदू विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए. के बाद उनका झुकाव समाजवादी आंदोलन और बौद्ध दर्शन की ओर हो गया, बौद्ध दर्शन से और पत्रकारिता से उनका जुड़ाव रहा है. हिंदी की साहित्यिक पत्रिका कल्पना के संपादक मंडल में वे कई साल रहे थे.
भारतीय और तिब्बती आचार्यों के साथ बैठकर उन्होंने नागार्जुन के दर्शन और वज्रयानी परंपरा का अध्ययन शुरू किया. भारतीय चिंतक जिद्दू कृष्णमूर्ति ने जब बौद्ध विद्वानों के साथ चिंतन-मनन शुरू किया, तब कृष्णनाथ भी बौद्ध विद्वानों में शामिल थे.
कृष्णनाथ ने अपने जीवन में काफी कुछ किया है. इसके बावजूद कृष्णनाथ जी की सृजन-आकांक्षा पूरी नहीं हुई. इसलिए वे यायावर हो गए. एक यायावरी तो उन्होंने वैचारिक धरातल पर की थी दूसरी सांसारिक अर्थ में. उन्होंने हिमालय की यात्रा शुरू की और उन स्थलों को खोजना और खंगालना शुरू किया जो बौद्ध-धर्म और भारतीय तत्त्व से जुड़े हैं फिर जब उन्होंने इस यात्रा को शब्दों में बाँधना शुरू किया तो यात्रा-वृत्तांत जैसी विधा अनूठी विलक्षणता से भर गई.
कृष्णनाथ जहाँ भी यात्रा करते हैं वहाँ वे सिर्फ़ पर्यटक नहीं होते बल्कि एक खोजकर्ता की तरह वहाँ का अध्ययन करते चलते हैं. पर वे शुष्क अध्ययन नहीं करते बल्कि उस स्थान विशेष से जुड़ी स्मृतियों को उघाड़ते थे. ये वे स्मृतियाँ होती हैं जो इतिहास के प्रवाह में सिर्फ स्थानीय होकर रह गई हैं, लेकिन जिनका संपूर्ण भारतीय लोकमानस से गहरा रिश्ता रहा है. पहाड़ के किसी छोटे-बड़े शिखर पर दुबककर बैठी वह विस्मृत-सी स्मृति मानो कृष्णनाथ की प्रतीक्षा कर रही हो कि वे आएँ, उसे देखें और उसके बारे में लिखकर उसे जनमानस के पास ले जाएँ.
रचनाएँ
कृष्णनाथ जी की रचनाएँ में सजीवता और गम्भीरता को साफ देखा जा सकता है. वह निबंध और यात्रा वृतांतों को लिखने के लिए विवरणात्मक शैली का प्रयोग किया करते थे. उनकी लिखी कई सारी रचनाएँ स्पष्टता से लिखी गई है, उन्ही रचनाएँ में से कुछ रचनाएँ इस प्रकार है-
प्रमुख रचनाएँ: लद्दाख में राग-विराग, किन्नर धर्मलोक, स्पीति में बारिश, पृथ्वी परिक्रमा, हिमालय यात्रा, अरुणाचल यात्रा, बौद्ध निबंधावली. जैसी हिंदी और अंग्रेज़ी में कई पुस्तकों का संपादन किया है.