लाचित बोड़फुकन की जीवनी, जन्म, परिवार
Lachit Barphukan Biography, Age, Career, Family, Education, Caste, Parents in Hindi
लाचित बोड़फुकन जिनका पुरा नामचाउ लासित फुकनलुंग है, जो कि अहोम साम्राज्य के एक सेनापति और बरफूकन थे। वे सन् 1671 में हुई सराईघाट की लड़ाई में अपनी नेतृत्व-क्षमता के लिए जाने जाते हैं, जिसमे उन्होंने असम पर पुनः अधिकार प्राप्त करने के लिए रामसिंह प्रथम के नेतृत्व वाली मुग़ल सेना का प्रयास विफल कर दिया। आज भी असम में उनको एक वीर योद्धा की उपाधि प्राप्त है और उनकी जयंती पर लाचित दिवस मनाया जाता है। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के सर्वश्रेष्ठ कैडेट को लाचित मेडल से सम्मानित किया जाता है।
जन्म, परिवार और मृत्यु
लाचित बोड़फुकन फुरेलुंग अहोम धर्म में 24 नवंबर1622 को सेंग-लॉन्ग मोंग, चराईदेव(Charaideo) में जन्मे थे। उनके पिता का नाम सेंग कालुक मो-साई(Seng Kaluk Mo-Sai) एवं उनकी माता का नाम कुन्दी मरान(Kundi Maran) था। लाचित उनके परिवार में चौथे पुत्र थे। उन्होंने मानविकी शास्त्र और सैन्य कौशल की शिक्षा प्राप्त की जिसके बाद उनको अहोम स्वर्गदेव के ध्वज वाहक (सोलधर बरुआ) का पद और निज-सहायक के समतुल्य पद सौंपा गया। यह दोनों पद उनके समय में महत्वाकांक्षी कूटनीतिज्ञ या राजनेता के लिए पहला महत्वपूर्ण कदम माना जाता था।
लाचित बोड़फुकन अहोम राजा चक्रध्वज सिंह की शाही घुड़सवार रक्षक दल के अधीक्षक (घोड़ बरुआ) और रणनैतिक रूप से महत्वपूर्ण सिमुलगढ़ किले के प्रमुख पदों पर आसीन रहे। राजा चक्रध्वज सिंह ने उनके काम करने की निष्ठा और उनकी बहादुरी को देखते हुए उनको गुवाहाटी के शासक मुग़लों के विरुद्ध अभियान में सेना का नेतृत्व करने के लिए चयन किया और राजा ने लाचित बोड़फुकन को उपहार स्वरूप सोने की मूठ वाली एक तलवार (हेंगडांग) और पारंपरिक वस्त्र प्रदान की।
राजा के कहने पर लाचित बोड़फुकन ने सेना एकत्रित की और 1667 की गर्मियों तक गुवाहाटी को जीतने की तैयारियां पूरी कर लीं।लाचित ने मुग़लों के कब्ज़े से गुवाहाटी पुनः प्राप्त कर ली और सराईघाट की विजय के लगभग एक वर्ष बाद प्राकृतिक कारणों से लाचित बोड़फुकन की 25 अप्रैल 1672 मृत्यु हो गई।
नाम | लाचित बोड़फुकन |
पूरा नाम | नामचाउ लाचित फुकनलुंग |
जन्म | 24 नवंबर1622 |
जन्म स्थान | सेंग-लॉन्ग मोंग, चराइडो, असम |
पिता का नाम | सेंग कालुक मो-साई |
माता का नाम | कुन्दी मरान |
शिक्षा | मानविकी शास्त्र और सैन्य कौशल |
जाति | फुरेलुंग अहोम |
पद | ध्वज वाहक, निज-सहायक, शाही घुड़सवार रक्षक दल के अधीक्षक, सिमुलगढ़ किले के प्रमुख और सेनाध्यक्ष |
मृत्यु | 25 अप्रैल 1672 |
सराईघाट की विजय कहानी
लाचित बोड़फुकन की सेना से पराजित होने के बाद, मुगल सेना ब्रह्मपुत्र नदी के रास्ते ढाका से गुवाहाटी, असम की ओर बढ़ने लगीं। रामसिंह के नेतृत्व वाली मुग़ल सेना में 5,000 बंदूकची, 15,000 तीरंदाज़, 30,000 पैदल सैनिक, 18,000 तुर्की घुड़सवार, और 1,000 से अधिक तोपों के अलावा नौकाओं का विशाल बेड़ा था। परंतु इतनी विशाल सेना होने के बावजूद भी मुग़ल सेनापति राम सिंह लड़ाई के पहले चरण में असमिया सेना के विरुद्ध कोई भी सफलता पाने में विफल रहे।
मुग़ल सेनापति जब सैन्य बल से जीत हासिल नहीं कर पा रहा थे, तब सेनापति ने लाचित के खिलाफ षड़यंत्र किया। सेनापति ने अहोम शिविर की ओर एक पत्र भेजा, जिसमें लिखा था कि लाचित को एक लाख रूपये दिये गए है। यह पत्र अहोम राजा चक्रध्वज सिंह के पास पहुंचा, जिसके बाद राजा को लाचित बोड़फुकन की निष्ठा और देशभक्ति पर संदेह होने लगा। तब प्रधानमंत्री दुश्मनों की यह चाल समझ गए और राजा को यह समझाया कि यह लाचित के विरुद्ध एक चाल है।
सराईघाट के युद्ध का अंतिम समय था जब मुगलों ने अपनी पूरी ताकत के साथ सराईघाट में नदी से आक्रमण किया। उस आक्रमण से असमिया सैनिक लड़ने की इच्छा खोने लगे और कुछ सैनिक पीछे हट गए। तब लाचित गंभीर रूप से बीमार थे परंतु उन्होंने हार नहीं मानी और नाव में सवार हुए और सात नावों के साथ मुग़ल बेड़े की ओर बढ़े। तब उन्होंने सैनिकों से कहा, “यदि आप भागना चाहते हैं, तो भाग जाएँ मुझे मेरे महाराज ने एक कार्य सौंपा है और इसे में पूरा करके ही रहूँगा। मुग़लों को मुझे बंदी बनाकर ले जाने दीजिए। आप महाराज को सूचित कीजिएगा कि उनके सेनाध्यक्ष ने उनके आदेश का पालन करते हुए अपनी आखरी सांस तक युद्ध किया”। लाचित बोड़फुकन और असमिया सेना ने मुगल सेना को हरा कर सराईघाट का युद्ध जीत लिया।
लाचित दिवस
लाचित बोड़फुकन के पराक्रम और सराईघाट की लड़ाई में असमिया सेना की विजय की याद में हर साल लाचित बोड़फुकनकी जयंती पर संपूर्ण असम राज्य में प्रति वर्ष 24 नवम्बर को लाचित दिवस मनाया जाता है।
लाचित बोड़फुकन के बारे में कुछ पंक्तियाँ
लप-लपाती “लाचित” की तलवार
बहा रहा खून का धारा था
देख मुगल के सैनिक भी
रण छोड़ कर भागा था
सुन जिसकी शौर्य गाथा,
रक्त उबलने लगता है।
एक मृत व्यक्ति का भी,
हृदय धड़कने लगता है।
आज भी समस्त पूर्वोत्तर,
गुणगान जिसका गाता है।
नतमस्तक हो जाते वीर ,
जब नाम लाचित का आता है
400वीं जयंती भारत के प्रधानमंत्री के शब्द
साल 2022 में जब लाचित बोड़फुकन की 400वीं जयंती पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाचित बोड़फुकन के बारे में कहा था- “हमारे देश में कई ऐसे वीर भी रहे है, जिन्होंने कभी भी किसी की गुलामी को नहीं स्वीकारा, हमारे देश में हमेशा वीरो की कहानियाँ को छुपाया गया है। हमारे देश में सिर्फ गुलामी का नहीं अपितु वीरो का इतिहास भी है”।
प्रधानमंत्री जी ने लाचित बोड़फुकन को पूर्वोत्तर का शिवाजी कहकर एक नया नाम दिया है।