लाला हरदयाल का जीवन परिचय | Lala Har Dayal History Biography, Birth, Education, Earlier Life, Death, Role in Independence in Hindi
इस लेख में हम लाला हरदयाल का जीवन परिचय साझा करने जा रहे है. लाला हरदयाल एक प्रखर स्वातंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने विदेश में रहने वाले भारतीयों को देश की आजादी की लडाई में योगदान के लिये प्रेरित किया. भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में लाला हरदयाल का महत्वपूर्ण योगदान रहा है.
प्रारम्भिक जीवन | Lala Har Dayal Early Life
नाम | लाला हरदयाल |
जन्मतिथि | 14 अक्टूबर 1884 |
जन्मस्थान | दिल्ली (भारत) |
पिता | गौरी दयाल माथुर |
माता | भोली रानी |
लाला हरदयाल का जन्म 14 अक्टूबर 1884 को दिल्ली के पंजाबी परिवार में हुआ. उनके पिता का नाम गौरी दयाल माथुर था, जो एक जिला अदालत में पाठक के रूप में कार्यरत थे. उनकी माता का नाम भोली रानी था. वह अपने माता-पिता की छठी संतान थे.
कैम्ब्रिज मिशन स्कूल से उन्होंने स्कूली पढाई पूर्ण की. उसके बाद सेंट स्टीफन कॉलेज, दिल्ली से संस्कृत में बैचलर की डिग्री हासिल की और साथ ही पंजाब यूनिवर्सिटी से उन्होंने संस्कृत में मास्टर की डिग्री भी हासिल की थी. 1905 में संस्कृत में उच्च-शिक्षा के लिए ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से उन्होंने 2 शिष्यवृत्ति मिली.
लंदन में श्यामजी कृष्ण वर्मा ने देशभक्ति का प्रचार करने के लिये “इण्डिया हाउस” की स्थापना की थी. 1907 में अंग्रेजी शिक्षा पद्धति को पाप समझकर “भाड़ में जाये आई०सी०एस०” कह कर उन्होंने आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय तत्काल छोड़ दिया. इसके बाद लन्दन में देशभक्त समाज स्थापित कर असहयोग आन्दोलन का प्रचार करने लगे. कुछ साल विदेश में रहकर 1908 में वे भारत लौट आये.
योगदान | Lal Har Dayal Contribution
लाहौर में युवाओं के मनोरंजन के लिए एक क्लब था जिसका नाम ‘ यंग मैन क्रिश्चयन एसोसियेशन’ था. किसी कारण उनकी क्लब के सचिव से बहस हो गयी. लाला हर दयाल जी ने जल्दबाजी में तुरंत ही ‘यंग मैन इण्डिया एसोसियेशन’ की स्थापना की.
भारत लौटने के बाद वे सबसे पहले पुणे जाकर लोकमान्य तिलक से मिले. उसके बाद अचानक से उन्होंने पटियाला पहुँच कर गौतम बुद्ध के समान सन्यास ले लिया. वे अपने सभी निजी पत्र हिन्दी में ही लिखते थे किन्तु दक्षिण भारत के भक्तों को सदैव संस्कृत में उत्तर देते थे. लाला जी हमेशा एक बात किया करते थे – “अंग्रेजी शिक्षा पद्धति से राष्ट्रीय चरित्र तो नष्ट होता ही है राष्ट्रीय जीवन का स्रोत भी विषाक्त हो जाता है. अंग्रेज ईसाइयत के प्रसार द्वारा हमारे दासत्व को स्थायी बना रहे हैं.”
1908 में लाला जी के आग्नेय प्रवचनों के परिणामस्वरूप विद्यार्थी कॉलेज और सरकारी कर्मचारी अपनी-अपनी नौकरियाँ छोड़ने लगे थे. ब्रिटिश सरकार इन्हे गिरफ्तार करना चाहा लेकिन, वे पेरिस केलिए निकल गए. पेरिस में ‘वन्दे मातरम’ इस मासिक का सम्पादन करने लगे थे.
पेरिस में इन्होने अपना प्रचार-केन्द्र बनाना चाहा था, लेकिन इनके रहने, खाने पिने का इंतजाम न हो पाया. इसलिए वे विवश होकर पहले अल्जीरिया गये, बादमे कुछ ही दिनों में अमेरिका चले गए. अमेरिका में होनोलूलू के समुद्र तट पर एक गुफा में रहकर आदि शंकराचार्य, काण्ट, हीगल व कार्ल मार्क्स आदि का अध्ययन करने लगे.
1912 में वे स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में हिन्दू दर्शन तथा संस्कृत के ऑनरेरी प्रोफेसर नियुक्त हुए. इसी दौरान जर्मनी और इंग्लैण्ड में भयंकर युद्ध शुरू हुआ. लाला जी ने विदेश में रह रहे सीखो को भारत लौट जाने केलिए प्रेरित किया. उनके प्रभाव से लगभग दस हज़ार सिख भारत लौटे. परिणामतः उन्हें गिरफ्तार किया गया. लाला चलाखी से स्विट्ज़रलैण्ड चले गये और जर्मनी के साथ मिल कर भारत को स्वतन्त्र करने के प्रयास करने लगे. जिस समय जर्मनी हारने लगा तो वे चुप चाप स्वीडेन चले गए.
मृत्यु | Lala Har Dayal Death
4 मार्च 1938 को विदेश में ही लाला जी का देहांत हो गया. लाला जी जीवित रहते हुए भारत नहीं लौट सके. उनके बचपन के मित्र लाला हनुमन्त सहाय जब तक जीवित रहे, तब तक कहते रहे कि, हरदयाल की मृत्यु स्वाभाविक नहीं थी, उन्हें विष देकर मारा गया.
रचनाएँ | Lala Har Dayal Literature
- थॉट्स ऑन एड्युकेशन
- युगान्तर सरकुलर
- राजद्रोही प्रतिबन्धित साहित्य (गदर, ऐलाने-जंग, जंग-दा-हांका)
- सोशल कॉन्क्वेस्ट ओन हिन्दू रेस
- राइटिंग्स ऑन हरदयाल
- फ़ॉर्टी फ़ोर मन्थ्स इन जर्मनी एण्ड टर्की
- स्वाधीन विचार
- लाला हरदयाल जी के स्वाधीन विचार
- अमृत में विष
- हिन्ट्स फ़ॉर सेल्फ़ कल्चर
- ट्वेल्व रिलीजन्स एण्ड म‘ओडर्न लाइफ़
- ग्लिम्प्सेज़ ऑफ़ वर्ल्ड रिलीजन्स
- बोधिसत्त्व डॉक्ट्राइन्स
- व्यक्तित्व विकास (संघर्ष और सफलता)
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