गीतकार, लेखक, कवि गुलज़ार का जीवन परिचय
Gulzar (Lyricist) Biography, Films, Poem, Family, Awards, Songs In Hindi
गुलजार एक महान लेखक, कवि एवं हिदी सिनेमा के प्रसिद्ध गीतकार है. हिंदी साहित्य में इन्होंने अनेक कविताएं, नाटक, गीत एवं लघुकथाओं की रचना की है. इसके अतिरिक्त हिंदी फिल्मों में इन्होंने गीतकार,कवि, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक का कार्य किया है. वर्तमान ने गुलजार हिंदी फिल्मों के सर्वश्रेष्ठ गीतकार है. 2009 में उनके द्वारा लिखे गीत जय हो के लिये उन्हे सर्वश्रेष्ठ गीत का ‘ऑस्कर पुरस्कार’ मिल चुका है.
गीतकार गुलजार का जीवन परिचय | Gulzar biography (Lyricist) in Hindi
गुलज़ार का जन्म 18 अगस्त 1936 को भारत के झेलम जिला पंजाब के दीना गाँव में हुआ. जो अब पाकिस्तान में है. उनका वास्तविक नाम सम्पूर्ण सिंह कालरा है. बाद में ये ‘गुलजार’ नाम से कविता एवं गीत लिखने लगे. गुलज़ार अपने पिता की दूसरी पत्नी की इकलौती संतान हैं. उनकी माँ उन्हें बचपन में ही छोङ कर चल बसीं थी. गुलजार के नौ भाई-बहन है जिसमे वो चौथे नम्बर के है. बंटवारे कर समय गुलजार का परिवार भारत आ गया.
बिंदु (Points) | जानकारी (Information) |
नाम (Name) | सम्पूर्ण सिंह कालरा |
उपनाम | ‘गुलजार’ |
जन्म (Date of Birth) | 18 अगस्त 1936 |
आयु | 84 वर्ष |
जन्म स्थान (Birth Place) | दीना गांव, झेलम, पंजाब(पाकिस्तान) |
पिता का नाम (Father Name) | मक्खन सिंह कालरा |
माता का नाम (Mother Name) | सुजान कौर |
पत्नी का नाम (Wife Name) | राखी गुलजार (अभिनेत्री) |
पेशा (Occupation ) | लेखक, कवि, गीतकार, फ़िल्म निर्देशक |
बच्चे (Children) | पुत्री: मेघना गुलजार (फ़िल्म निर्देशक) |
भाई-बहन (Siblings) | ज्ञात नहीं |
अवार्ड (Award) | पद्म भूषण |
वे काम की तलाश में मुंबई आकर वर्ली में एक गैरेज में काम करने लगे. कविता उनका शौक था. यहां खाली समय मे वे कविता लिखते थे. फिल्मों में उन्होंने बिमल राय, हृषिकेश मुख़र्जी और हेमंत कुमार के सहायक के तौर पर काम शुरू किया. तथा बिमल राय की फ़िल्म बंदनी के लिए गुलज़ार ने अपना पहला गीत लिखा. 1973 में इनकी की शादी तलाकशुदा अभिनेत्री राखी गुलजार से हुई. लेकिन उनकी बेटी के पैदा होने के बाद ही यह जोड़ी अलग हो गयी.
गीतकार गुलजार कार्यक्षेत्र
गीतकार गुलजार ने हिन्दी सिनेमा में अपने करियर की शुरुआत 1963 में बतौर गीतकार के रूप में एस डी बर्मन की फिल्म “बंधिनी” से की. इस फ़िल्म के लिए उन्होंने “मोरा गोरा अंग लईले” नामक गीत लिखा. इसके बाद फिल्म ‘खामोशी’ (1969) के गीत “हमने देखी है उन आँखों की महकती खुशबु” के कारण उन्हें प्रसिद्धि मिली. उन्होंने वर्ष 1971 में फिल्म ‘गुड्डी: के लिए दो गाने लिखे. जिनमें से एक “हमको मन की शक्ति देना” एक प्रार्थना थी. जिसे आज भी भारत के कई स्कूलों में गाया जाता है.
वर्ष 1968 में गुलजार ने फिल्म ‘आशीर्वाद’ का संवाद लेखन किया. इसके बाद 1971 में उन्होंने ‘में मेरे अपने’ फ़िल्म से निर्देशन (डायरेक्टर) का कार्य शुरू किया. 1972 में उन्होंने संजीव कुमार के साथ फ़िल्म ‘कोशिश’ से निर्देशन तथा पटकथा का कार्य किया. इन्होंने प्रसिद्ध गज़ल गायक जगजीत सिंह की एल्बम मारसीम (1999), और कोई बात चले (2006) के लिए गज़लें लिखी हैं. इसके साथ लेखक गुलजार ने एलिस इन वंडरलैंड, गुच्चे, हैलो जिंदगी, पोटली बाबा की, आदि जैसी कई टीवी श्रृंखलाओं के लिए संवाद और गीत लिखे हैं. तथा इन्होंने छोटे पर्दे पर दूरदर्शन के कार्यक्रम ‘जंगल बुक’ के लिए प्रसिद्ध गीत “चड्डी पहन के फूल खिला है” को भी लिखा है.
गुलजार का काव्य लेखन | Gulzar Shayari
गुलजार ने गीतों के साथ कई कविताओं की भी रचना की. उनकी कविता की भाषा मुल रूप से उर्दू और पंजाबी रही है. लेकिन उन्होंने हिन्दी की कई बोलियों में भी कविताएं लिखी है, जैसे खड़ीबोली, ब्रजभाषा, मारवाडी और हरियाणवीं इत्यादि. उनकी अधिकतर कविताएं त्रिवेणी शैली में है. इनकी कविताओं को 3 संकलन में प्रकाशित किया गया है – रात पश्मीना की, चांद पुखराज का और पंद्रह पांच पचहत्तर.
गुलजार की रचनाएं
लेखन :
- चौरस रात (लघु कथाएँ, 1962)
- जानम (कविता संग्रह, 1963)
- एक बूँद चाँद (कविताएँ, 1972)
- रावी पार (कथा संग्रह, 1997)
- रात, चाँद और मैं (2002)
- रात पश्मीने की
- खराशें (2003)
बतौर निर्देशक (डायरेक्टर) फिल्में | Gulzar Films
- मेरे अपने (1971)
- परिचय (1972)
- कोशिश (1972)
- अचानक (1973)
- खुशबू (1974)
- आँधी (1975)
- मौसम (1976)
- किनारा (1977)
- किताब (1978)
- अंगूर (1980)
- नमकीन (1981)
- मीरा (1981)
- इजाजत (1986)
- लेकिन (1990)
- लिबास (1993)
- माचिस (1996)
- हु तू तू (1999)
गुलजार की कविता ‘वक्त को आते न जाते न गुज़रते देखा!‘-
वक़्त को आते न जाते न गुजरते देखा,
न उतरते हुए देखा कभी इलहाम की सूरत,
जमा होते हुए एक जगह मगर देखा है.
शायद आया था वो ख़्वाब से दबे पांव ही,
और जब आया ख़्यालों को एहसास न था.
आँख का रंग तुलु होते हुए देखा जिस दिन,
मैंने चूमा था मगर वक़्त को पहचाना न था.
चंद तुतलाते हुए बोलों में आहट सुनी,
दूध का दांत गिरा था तो भी वहां देखा,
बोस्की बेटी मेरी ,चिकनी-सी रेशम की डली,.
लिपटी लिपटाई हुई रेशम के तागों में पड़ी थी.
मुझे एहसास ही नहीं था कि वहां वक़्त पड़ा है.
वक़्त को आते न जाते न गुजरते देखा!
पुरस्कार एवं सम्मान | Gulzar Awards
- पद्म भूषण सम्मान – 2004
- साहित्य अकादमी पुरस्कार – 2003 ‘धुआं’
- ऑस्कर अवॉर्ड (सर्वश्रेष्ठ गीत) – 2009 में फ़िल्म ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ के गीत ‘जय हो’ के लिए
- ग्रैमी पुरस्कार- 2010 में गीत ‘जय हो’ के लिए
- दादा साहब फाल्के सम्मान – 2013
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