नाना साहेब का जीवन परिचय | Nana Sahib History Biography, Birth, Education, Earlier Life, Death, Role in Independence in Hindi
नाना साहेब, जो बालाजी बाजीराव के नाम से भी जाने जाते थे. वे मराठा साम्राज्य के शासक थे तथा शिवाजी के सहायक थे. उनके शासनकाल में महाराष्ट्र का खुप विकास हुआ था. अंग्रेज़ो को भारत से खदेड़ने में भी इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है. तो चलिए नाना साहेब का जीवन परिचय विस्तार से जानते है.
प्रारम्भिक जीवन | Nana Sahib Early Life
नाम | नाना साहेब |
जन्मतिथि | 19 मई 1824 |
जन्मस्थान | वेणुग्राम, बिठूर जिला, महाराष्ट्र |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म | हिन्दू |
पिता | नारायण भट्ट |
माता | गंगा बाई |
भाई | रघुनाथ और जनार्धन |
पत्नी | सांगली के राजा की बहिन |
पुत्र | शमशेर बहादुर |
नाना साहिब का जन्म 19 मई, 1824 को महाराष्ट्र में बिठूर जिले के वेणुग्राम में हुआ. उनका मूल नाम ‘धोंडूपंत’ था. इनके पिता पेशवा बाजीराव द्वितीय के सगोत्र भाई थे. पेशवा ने बालक नानाराव को अपना दत्तक पुत्र स्वीकार किया था. और उन्होंने ही उनकी शिक्षा-दीक्षा का ध्यान रखा. बचपन में उन्होंने हाथी, घोड़े की सवारी, तलवार चलाना सिख लिया. इसके अलावा उन्हें कई भाषाएँ सिखाई गयी. सन् 1851 को पेशवा का स्वर्गवास हो गया.
नानाजी ने ब्रिटिश सरकार के पास पेशवाई पेंशन के चालू कराने की माँग की, लेकिन कई प्रयासों के बाद भी उनकी मांग का स्वीकार नहीं किया गया. इस वजह से उनके मन में अंग्रेज़ो के खिलाफ द्वेष पैदा हो चूका था और वह अंग्रेज़ो को भारत से भगाने केलिए राजनीतियाँ रचने लगे.
योगदान | Nana Sahib Contribution
अंग्रेज़ो के भारत में बढ़ते वर्चस्व के कारण नाना साहिब परेशान थे. लार्ड डलहौजी ने देश के ज्यादातर हिस्सों को अपने कब्जे में लेने के लिए “डॉक्ट्रिन ऑफ़ लेप्स” की नीति लागू की जिसके अंतर्गत भारतीय शासकों के अपने दत्तक पुत्र को उनका उतराधिकारी नही माना गया,और वहाँ पर अंग्रेजों का शासन मानने का आदेश दिया गया. इस तरह ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बहुत से राज्य हडप लिए जिनमें झांसी,अवध और नागपुर शामिल थे.
बाजीराव पेशवा को आठ लाख रुपये पेंशन के रूप में दिए जाते थे. लेकिन, जब उनकी मृत्यु के बाद, तब अंग्रेज़ो ने उनके परिवार को यह पेंशन देना बंद कर दिया था. इतना ही नहीं उन्होंने नाना साहब को उनका उत्तराधिकारी मानने से भी इंकार कर दिया. यह नाना साहिब को बर्दाश नहीं हुआ और उन्होंने अंग्रेज़ो के खिलाफ रणनीति बनाना शुरू कर दिया था.
4 जून 1857 को कानपुर में सैन्य विद्रोह हुआ था. कानपुर को अंग्रेजों से जीतने के बाद नान साहिब ने खुदको कानपूर का पेशवा घोषित कर दिया. नाना साहिब ने कानपुर के कलेक्टर चार्ल हीलरसन को अपने पक्ष में ले लिया और यह योजना बनाई कि, अगर कानपुर में सैन्य विद्रोह होता है तो वो 15000 सैनिकों के साथ उनकी मदद करेंगे. लेकिन, उसके साथ साथ उन्होंने कानपूर पर भी कब्जा कर लिया.
1857 की क्रान्ति में कानपूर में अंग्रेजों को बंदी बनाकर रखा गया, यह क्रांतिकारियों का अंग्रेजों के खिलाफ लिया गया सबसे बड़ा सफल विद्रोह था. लेकिन, 16 जुलाई 1857 को जनरल हेवलॉक ने कानपूर को वापिस कब्जे में ले लिया था.
निधन | Nana Sahib Death
नाना साहिब के मृत्यु का कोई ठोस सबूत नहीं मिल पाया है. एक मत के अनुसार नाना साहिब की मृत्यु 81 वर्ष की आयुमें 1906 को हुयी थी. दूसरे मत के अनुसार अजीमउल्लाह खान की एक डायरी मिली थी जिसके अनुसार उनकी मृत्यु 102 साल की उम्र में गोमती नदी के किनारे हुई थी.
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