पंडित रवि शंकर की जीवनी, परिवार (पिता, पत्नी और बच्चे) और करियर
Pandit Ravi Shankar Biography, Family (Father, Wife, Children), Career, awards, Facts in Hindi
पंडित रविशंकर एक भारतीय संगीतकार और कंपोजर थे, जिन्हें पूरी दुनिया में भारतीय शास्त्रीय वाद्ययंत्र सितार को लोकप्रिय बनाने के लिए जाना जाता है. पश्चिम में ये और भी लोकप्रिय थे. ऐसा कहा जाता है कि रविशंकर के संगीत में आध्यात्मिक शांति छिपी थी, जो सुनाने वाले के दिल में उतरती थी. 90 साल की उम्र में भी उनमें संगीत का जुनून जरा भी कम नहीं हुआ था. एक इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि आप 91 साल की उम्र में भी जवान व्यक्ति जैसा जोश कहा से लाते है तो उन्होंने कहा, ‘ भले ही मेरा शरीर 91 साल का हो गया है पर मेरा मन अभी भी जवान है ‘. चलिए जानते है इस जोशीले और महान संगीतकार के बारे में शुरू से…
पंडित रविशंकर की जीवनी | Pandit Ravi Shankar Biography in Hindi
रवि शंकर का जन्म 7 अप्रैल, 1920 को बनारस में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता श्याम शंकर चौधरी शुरुआत में अंग्रेजों के अधीन एक स्थानीय बैरिस्टर के रूप में सेवा करते थे, उसके बाद वे एक वकील के तौर पर लंदन में काम करने चले गए. युवा रविशंकर का लालन-पालन उनकी मां ने ही किया. रविशंकर 8 साल की उम्र तक अपने पिता से नहीं मिले थे और फिर वे अपने बड़े भाई के साथ रहने लगे. उनके बड़े भाई उदय शंकर उस समय के एक प्रसिद्ध नर्तक थे, शंकर ने संगीत का अध्ययन किया और 1930 में, अपने भाई के नृत्य मंडली के सदस्य के रूप में शामिल हो गये. उन्होंने 10 साल की उम्र से इस नृत्य मंडली के साथ अमरीका और यूरोप के कई दौरे किए और एक नर्तक के रूप में कई यादगार प्रदर्शन दिए.
बिंदु(Points) | जानकारी (Information) |
नाम (Name) | पंडित रविशंकर |
जन्म (Birth) | 7 अप्रैल, 1920 |
मृत्यु (Death) | 11 दिसंबर, 2012 |
पेशा (Profession) | संगीतकार |
पत्नी का नाम (Wife Name) | सुकन्या राजन |
पिता का नाम (Father Name) | श्याम शंकर चौधरी |
माता का नाम (Mother Name) | ज्ञात नहीं |
मूल निवास स्थान (Home Town) | बनारस, उत्तरप्रदेश |
वर्तमान स्थान (Current City) | —- |
शिक्षा (Education) | — |
उम्र (Age) | 92 वर्ष |
मृत्यु स्थान (Death Place) | — |
भाई-बहन(Siblings) | उदय शंकर |
धर्म (Religion) | हिन्दू |
अवॉर्ड (Award) | पद्म भूषण |
रवि शंकर को अपने जीवन में सितार से काफी सालो बाद परिचित हुए थे, जब वह 18 वर्ष के थे. यह सब कोलकाता में एक संगीत कार्यक्रम में शुरू हुआ जहां उन्होंने अमिया कांति भट्टाचार्य को शास्त्रीय वाद्य यंत्र बजाते हुए सुना. उनके प्रदर्शन से शंकर इतने प्रभावित हुए कि, उन्होंने ने फैसला किया कि उन्हें भी भट्टाचार्य के गुरु, उस्ताद इनायत खान से कैसे भी सितार सीखना ही होगा और यही वो पल था जब उनके जीवन में सितार आया और शंकर के साथ तब तक रहा जब तक उन्होंने अंतिम सांस नहीं ली.
पंडित रविशंकर का सितार के साथ शुरुआती सफ़र | Starting Career Of Pandit Ravi Shankar
अपने गुरु, उस्ताद इनायत खान के नेतृत्व में सितार बजाना सीखने के बाद, वह मुंबई चले गए, जहाँ उन्होंने इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन के लिए काम किया. वहाँ शंकर ने 1946 तक बैले के लिए संगीत की रचना की, उसके बाद 1950 में, रविशंकर को नई दिल्ली रेडियो स्टेशन ऑल-इंडिया रेडियो (AIR) के निर्देशक बनने का मौका मिला, और इस पद को उन्होंने 1956 तक संभाला. AIR में अपने समय के दौरान, शंकर ने ऑर्केस्ट्रा के लिए मिश्रित सितार, पश्चिमी शास्त्रीय वाद्ययंत्र और भारतीय वाद्ययंत्रो के साथ कई धुनों की रचना की. इसके अलावा, इस अवधि के दौरान, उन्होंने अमेरिकी मूल के वायलिन वादक येहुदी मेनुहिन के साथ भी संगीत का प्रदर्शन और लेखन शुरू किया.
वर्ष 1953 में, उन्होंने सोवियत संघ में प्रदर्शन किया उसके बाद 1956 में, उन्हें प्रदर्शन के लिए पश्चिम में जाना पड़ा. पश्चिम के एडिनबर्ग फेस्टिवल और रॉयल फेस्टिवल हॉल जैसे प्रमुख कार्यक्रमों में उन्होंने बेहतरीन संगीत का प्रदर्शन दिया जिसके फलस्वरूप भारत के बाहर भी प्रशंसा होने लगी और वह दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गये.
1954 में, रविशंकर ने सोवियत संघ में अपना गायन दिया दिया. 1956 में, उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी यूरोप में अपने संगीत की मधुरता का पदार्पण किया. साथ ही उनकी लोकप्रियता में मदद करने के वाला वह अंक भी था जो, प्रसिद्ध भारतीय फिल्म निर्देशक, सत्यजीत रे के लिए रविशंकर ने लिखा था. पहले से ही पश्चिमी दुनिया में भारतीय संगीत के एक राजदूत रहे, शंकर ने 1960 के दशक में इस भूमिका को बखूभी निभाया. उस दशक में लोगो ने मोंटेरे पॉप फेस्टिवल में शंकर के प्रदर्शन को देखा, जिसने उनकी प्रसिद्धि को और अधिक बढ़ा दिया.
पंडित रविशंकर का राजनितिक करियर | Pandit Ravi Shankar Political Career
1986 में, भारतीय संगीत में उनके महान योगदान के लिए, उन्हें तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा राज्यसभा के लिए नामित किया गया था. उन्होंने 12 मई 1986 से 11 मई 1992 तक भारतीय संसद के उच्च सदन के सदस्य के रूप में कार्य किया
जॉर्ज हैरिसन के साथ एसोसिएशन | Association with George Harrison
जून 1966 में,लंदन में एक कार्यक्रम के चलते प्रसिद्ध बैंड बीटल्स के सदस्य जॉर्ज हैरिसन से रविशंकर की मुलाकात हुई. हैरिसन शंकर से खूब प्रभावित हुए और उससे मित्रता की, फिर हैरिसन खुद ने रविशंकर से सितार का पाठ लेना शुरू किया. इस मित्रता ने तुरंत शंकर और भारतीय संगीत को पश्चिम में अभूतपूर्व लोकप्रियता दिलाई. हैरिसन ने अपने प्रसिद्ध बैंड बीटल्स में सितार की शुरुआत की, जिसने राग ‘ रॉक ‘ के रूप में जाने जाने वाले संगीत की एक नई शैली को जन्म दिया. बाद में हैरिसन ने रविशंकर के निर्माता के रूप में काम करना शुरू दिया. वह हैरिसन ही थे जिन्होंने खुद पंडित रविशंकर को “द गॉडफादर ऑफ वर्ल्ड म्यूजिक” के रूप में संबोधित किया था. हैरिसन से 23 साल बड़े शंकर ने अपने रिश्ते को पिता और एक बेटे के रिश्ते की तरह बताया था.
पंडित रविशंकर की निजी ज़िदगी | Pandit Ravi Shankar Personal Life
1941 में, रविशंकर ने अन्नपूर्णा देवी नाम की महिला से शादी की. शादी के एक वर्ष बाद रविशंकर के पहले बच्चे शुभेंद्र शंकर का जन्म हुआ.
1940 के दशक से, रविशंकर का कमला शास्त्री नामक एक नर्तकी के साथ प्रेम संबंध था और यह उनकी शादी के लिए घातक साबित हुआ जो सबकुछ ख़त्म कर गया.
1981 में, उन्होंने कमला शास्त्री के साथ अपने रिश्ते को तोड़ दिया और न्यू-यॉर्क की एक कॉन्सर्ट निर्माता सू जोन्स के साथ एक नया संबंध शुरू कर दिया.
1986 में, यह रिश्ता भी समाप्त हो गया. उसके बाद रविशंकर ने सुकन्या राजन नाम की महिला से शादी की. इस दंपत्ति की एक बेटी है जिसका नाम अनुष्का शंकर है.
वर्ष 1992 में, रविशंकर के बेटे शुभेंद्र शंकर की निमोनिया से मृत्यु हो गई. अपने बेटे की मृत्यु के बाद, रविशंकर कुछ ज्यादा आध्यात्मिक हो गए और इस हादसे के बाद से उन्होंने नॉन-वेज खाना छोड़ दिया.
पंडित रवि शंकर को मिले चुनिन्दा अवार्ड्स | Pandit Ravi Shankar Awards
इस प्रसिद्ध सितार वादक को चौदह डॉक्टरेट और डिसिकोट्टम सहित दुनिया भर से कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं.
- संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार : 1962 में, उन्हें भारत के संगीत, नृत्य और नाटक के राष्ट्रीय अकादमी द्वारा नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
- पद्म भूषण : 1967 में, रविशंकर को भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
- पद्म विभूषण : भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण उन्हें वर्ष 1981 में दिया गया.
- भारतरत्न : 1999 में, इस महान सितार वादक को देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
- ग्रैमी अवार्ड : रविशंकर ने अपने जीवनकाल में पाँच ग्रैमी पुरस्कार जीते.
- 1967 में, येहुदी मीनुहिन के साथ उनके सहयोगी एल्बम ने बेस्ट चैंबर म्यूजिक परफॉर्मेंस के तहत ग्रैमी जीता.
- 1973 में, ’कॉन्सर्ट फॉर बांग्लादेश’ के लिए एल्बम ऑफ द ईयर का पुरस्कार जीता.
- 2002 में, उनके एल्बम, ‘ फुल सर्कल: कार्नेगी हॉल 2000 ‘ के लिए सर्वश्रेष्ठ विश्व संगीत एल्बम पुरस्कार जीता.
- 2013 में, ‘द लिविंग रूम सेशंस’ के लिए एक बार फिर सर्वश्रेष्ठ विश्व संगीत एल्बम के तहत पुरस्कार जीता.
- लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड : उन्हें 55 वें वार्षिक ग्रैमी अवार्ड्स में इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
पंडित रवि शंकर की मृत्यु | Pandit Ravi Shankar Death
रविशंकर का 11 दिसंबर, 2012 को सैन डिएगो, कैलिफोर्निया में 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया. संगीतकार कथित तौर पर ऊपरी श्वास और हृदय रोगों से पीड़ित थे और इसी वजह से उन दिनों में उनके हृदय वाल्व को बदलने के लिए सर्जरी की गई थी. उनका आखिरी प्रदर्शन कैलिफोर्निया के टैरेस थिएटर में उनकी बेटी के साथ संपन्न हुआ था. उनकी बेटी अनुष्का शंकर एक सितार वादक के साथ-साथ संगीतकार भी हैं. रविशंकर की विरासत को अब इसी प्रतिभाशाली संगीतकार ने आगे बढ़ाया है.
पंडित रवि शंकर के अनकहे किस्से | Unknown Facts About Pandit Ravi Shankar
- भारत के यह संगीत राजदूत संयुक्त राष्ट्र अकादमी ऑफ आर्ट्स एंड लेटर्स के एक सम्मानित सदस्य थे और अमेरिकी संगीतकारों के अंतर्राष्ट्रीय मंच के भी सदस्य थे.
- पंडित रविशंकर ने पहला कार्यक्रम 10 साल की उम्र में दिया था.
- शुरुआत में रविशंकर नृत्य में रुचि रखते थे लेकिन 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने नृत्य छोड़कर सितार सीखना शुरू किया.
- रविशंकर अपने जीवन की दिशा तय करने का श्रेय अपने बड़े भाई उदय शंकर चौधरी को देते है.
- ‘ सारे जहां से अच्छा ‘ गाने को रवि शंकर द्वारा धुन दिया गया था.
- अपने करियर के दौरान, शंकर को कुछ प्रसिद्ध भारतीय परंपरावादियों से शास्त्रीय शुद्धतावादी नहीं होने के लिए आलोचना का भी सामना करना पड़ा था.
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