प्रांजल पाटिल आईएएस का जीवन परिचय
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महाराष्ट्र के उल्लास नगर रहती छात्रा की छठी कक्षा में ही एक आँख की रोशनी चली गयी. एक साल बाद दूसरी आँख ने भी साथ छोड़ दिया. परंतु इस ‘जिंदगी से हार न मानने वाली छात्रा ने कभी अपने भाग्य को नहीं कोसा. ब्रेल लिपी के जरिये तथा एक सॉफ्टवेयर की मदद से अपनी पढ़ाई जारी रखी.
प्रांजल पाटिल आईएएस की जीवनी | Pranjal Patil Ias Biography in Hindi
बिंदु (Points) | जानकारी (Information) |
नाम (Real Name) | प्रांजल पाटिल |
जन्म (Date of Birth) | 1 April 1988 (शुक्रवार) |
आयु (Age) | 33 वर्ष (2020 तक) |
जन्म स्थान (Birth Place) | वाडाजी गाँव, जलगाँव, महाराष्ट्र |
पिता का नाम (Father Name) | लहेन सिंह बी पाटिल |
माता का नाम (Mother Name) | ज्योति पाटिल |
पति का नाम (Husband Name) | कोमल सिंह पाटिल |
पेशा (Occupation ) | भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) |
Current Posting | तिरुवनंतपुरम |
Rank | 124 |
धर्म (Religion) | हिन्दू |
यह जिज्ञासा तथा दूसरों के लिए प्रेरणा बनी हुई महिला और कोई नहीं बल्कि हमारे देश की बेटी आईएएस अधिकारी प्रांजल पाटिल हैं. प्रांजल जी देश की पहली दिव्यांग आईएएस अधिकारी बनी. 2016 में परीक्षा में अच्छे अंक न पाकर वे दुखी नहीं हुईं और 2017 में फिर से परीक्षा देकर 124 स्थान प्राप्त किया. पाटिल जी ने अपना पद संभाला और इसी के साथ वे केरल कैडर की अब तक की पहली नेत्रहीन महिला आईएएस अधिकारी भी बनी.
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती : Pranjal Patil Ias
बच्चन जी द्वारा लिखी गई पंक्तियां, “लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती” पाटिल जी के लिए बिल्कुल सटीक एवं सार्थक हैं. चाहे छह वर्ष की उम्र में ही कठिनाइयों से क्यों ना गुज़रना पड़ा हो, पाटिल जी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. इतना ही नहीं पाटिल जी ने 12वीं कक्षा में अच्छे अंक प्राप्त भी किए और कला संकाय में प्रथम स्थान भी प्राप्त किया. पाटिल जी आज देश के ऐसे लाखों अन्य दिव्यांगों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं.
2016 में परीक्षा देने के बाद उन्हें आईआरएएस में नौकरी दी गई परंतु रेलवे मंत्रालय ने उन्हें नौकरी देने से साफ इंकार कर दिया. और इसके बाद 2017 में जो हुआ वह हम सब की आँखों के सामने है.
चुनौती भरा जीवन
चाहे बात परीक्षा की तैयारी की हो या परीक्षा लिखने के लिए किसी भरोसेमंद व्यक्ति की, पाटिल जी को हर बार चुनौती आयी. परंतु वे हाथ-पर-हाथ रखकर बैठ ना गयी और चुनौती-रूपी सीढ़ी पर ही चढ़कर अपनी मंजिल अपने मुकाम तक पहुँची. पाटिल जी दिव्यांग होते हुए भी दिव्यांग ना थी. जब तक आप मानसिक रूप से हार ना मान ले दुनिया की कोई भी ताकत आपको नहीं हरा सकती. पाटिल जी ने एकदम सही कहा है की चुनौतियों से घबराना नहीं चाहिए. धैर्य रखना ही सबसे बड़ी परीक्षा है.
क्या खूब कहा है किसी ने की ‘नदी की लहरों का खौफ मुझे मत दिखाओ, मैंने चलना सीखा है सागर के किनारों पर!’ और मानो ऐसा ही विदित होता है की यह सम्पूर्ण रूप से पाटिल जी के लिए ही लिखा गया हो. चाहे माता-पिता हो या पति, पाटिल जी को हमेशा साथ मिलता रहा और परिणाम था 2017 में पाटिल जी का आईएएस की परीक्षा में उत्तीर्ण करना. सचमुच ऐसे लोगों को ही तो देखकर हमें गिर कर फिर से उठने की प्रेरणा मिलती है. धन्य है ऐसी देश की बेटियों को. देश के लोगों को. जो शिकायत कम और कामयाबी ज़्यादा रखते हैं.
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