संगीतकार आर. डी बर्मन की जीवनी, परिवार (पिता, पत्नी और बच्चे) और करियर
R D Burman Biography, Family (Father, Wife, Children), Career, awards, Facts in Hindi
राहुल देव बर्मन, जिन्हें आर.डी. बर्मन के नाम से जाना जाता है, 60 के दशक की शुरुआत से 90 के दशक के दौरान एक प्रसिद्ध बॉलीवुड संगीत निर्देशक थे. इन्हें एक अनबीट, पश्चिमी संगीत की शुरुआत करने के लिए जाना जाता था, जो 1970 के दशक के संगीत को ज्यादा परिभाषित करता है. आज भी इनकी शैली का प्रभाव इस ज़माने के संगीत निर्देशकों पर साफ़ नज़र आता है. आज भी उनका सगीत उतना ही मशहूर है जितना पहले हुआ करता था. वह एक विशुद्ध रूप से जादुई संगीतकार थे, जो अपने विचारों को संगीत में बदल देते थे, तो चलिए जानते है इस महान संगीकार के बारे में शुरू से…
संगीतकार आर. डी बर्मन (पंचम दा) की जीवनी | R.D Burman Biography in Hindi
आर.डी. बर्मन का जन्म कलकत्ता में 27 जून 1939 को संगीतप्रेमी परिवार में हुआ था. उनके पिता महान संगीत निर्देशक एस.डी. बर्मन और उनकी मां का नाम मीरा था. बर्मन साहब को अपने जन्म के बाद “पंचम” उपनाम दिया गया था. इसीलिए कई लोग उन्हें ‘पंचम दा’ के नाम से भी पहचानते है. पंचम दा के इस नाम के पीछे भी एक अलग कहानी है. ऐसा कहा जाता है कि जन्म के वक्त उनके रोने से उनके माता-पिता को भारतीय सुरों के पांचवें सुर ‘पा’ की याद आ गई. इसीलिए फिर उनका जन्मनाम पंचम रख दिया गया. एक और कहानी यह भी है कि एक बार जब अशोक कुमार उनके घर आए थे, तो बर्मन साहब “प, प, प” करके रो रहे थे तो अशोक कुमार ने उन्हें “पंचम” नाम दिया था.
बिंदु(Points) | जानकारी (Information) |
नाम (Name) | राहुल देव बर्मन |
जन्म (Birth) | 27 जून 1939 |
मृत्यु (Death) | 4 जनवरी, 1994 |
पेशा (Profession) | संगीतकार |
पत्नी का नाम (Wife Name) | रीता पटेल, आशा भोसले |
पिता का नाम (Father Name) | एस.डी. बर्मन |
माता का नाम (Mother Name) | मीरा |
मूल निवास स्थान (Home Town) | कलकत्ता, बंगाल |
वर्तमान स्थान (Current City) | मुंबई |
शिक्षा (Education) | बालीगुंगे सरकारी हाई स्कूल, कोलकाता |
उम्र (Age) | 54 वर्ष |
मृत्यु स्थान (Death Place) | मुंबई |
भाई-बहन(Siblings) | — |
धर्म (Religion) | हिन्दू |
अवॉर्ड (Award) | सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक |
बर्मन साहब के पिता सचिन देव बर्मन, जो खुद हिन्दी सिनेमा के बड़े संगीतकार थे. इसी वजह से पंचम की संगीत शिक्षा बहुत पहले शुरू हो गई थी. उनके आसपास हमेशा संगीत था. राहुल देव बर्मन ने शुरुआती दौर की शिक्षा बालीगुंगे सरकारी हाई स्कूल, कोलकाता से प्राप्त की. इसके बाद उनका परिवार कलकत्ता से बॉम्बे आ गया, बॉम्बे(अभी मुंबई) में उन्होंने प्रसिद्ध अली अकबर खान से सरोद सीखना शुरू किया. उन्होंने हारमोनिका बजाना भी सीखा.
एस.डी. बर्मन हमेशा आर. डी. बर्मन को अपने साथ रखते थे. इस वजह से आर. डी. बर्मन को लोकगीतों, वाद्यों और आर्केस्ट्रा की समझ बहुत कम उम्र में हो गई थी. ऐसे संगीतमय माहौल के साथ, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि उन्होंने बहुत जल्दी संगीत रचना शुरू कर दी. वह केवल 9 साल के थे जब उसने अपना पहला गीत ‘ऐ मेरी टोपी पलट के’ बनाया था और उनके पिता ने फिल्म “फंटूश” 1956 में इसका इस्तेमाल भी किया था. सिर्फ यही नहीं, इतनी कम उम्र में उन्होंने एक ऐसी धुन फिल्म जगत को दी, जो लोग आज भी युहीं गुनगुना उठते हैं और वह धुन थी ‘सर जो तेरा चकराए..’. इस धुन को भी सचिन देव बर्मन ने अगले ही वर्ष 1957 में प्रसिद्ध अभिनेता-निर्देशक गुरुदत्त की फिल्म ‘प्यासा’ में उपयोग किया था.
आर. डी बर्मन का करियर | R D Burman Musical Career
उनके प्रोफेशनल करियर की शुरुआत 1958 में हुई. उन्होंने “सोलवा साल” (1958), “चलती का नाम गाड़ी” (1958), और “कागज़ का फूल” (1957) जैसी फिल्मों में अपने पिता की सहायता करना शुरू किया. संगीत निर्देशक के रूप में उनकी पहली फिल्म गुरुदत्त की फिल्म “राज़” (1959) थी. दुर्भाग्य से, इस फिल्म निर्माण के बीच में ही बंद हो गया. एक संगीत निर्देशक के रूप में उनकी पहली रिलीज़ फिल्म महमूद की “छोटे नवाब” (1961) थी. वहीं से उनका करियर मजबूती से शुरू हुआ.
1960 ने आरडी को देखा. बर्मन के पास काम करने की अलग-अलग क्षमताएँ थी. कई फिल्मो में उन्होंने अपने पिता के साथ एक सहायक संगीत निर्देशक के रूप में काम किया. उन्होंने अपने पिता की “बंदिनी” (1963), “तीन देवियाँ” (1965), “गाइड” (1965), “ज्वेल थीफ” (1967) और “तलाश” (1969) जैसी फिल्मों में सहायक संगीत निर्देशक के रूप में मदद की.अपने पिता की हिट रचना ‘है अपना दिल तो आवारा’ के लिए बर्मन ने माउथ ऑर्गन भी बजाय था, जिसका उपयोग फिल्म सोलवा साल (1958) में किया गया.
आरडी ने अभिनय में भी हाथ आजमाया, उन्होंने “भूत बंगला” (1965) और “प्यार का मौसम” (1967) जैसी फिल्मों में अभिनय भी किया. लेकिन ज्यादातर और महत्वपूर्ण रूप से उन्होंने एक संगीत निर्देशक के रूप में ही काम करना शुरू कर दिया. उदाहरण के लिए, “भूत बंगला” (1965), और उनकी पहली हिट फिल्म “तेजस मंजिल” (1966) थी.
वर्ष 1966 में, फिल्म “तीसरी मंज़िल” उनके करियर में एक बड़ा मील का पत्थर साबित हुई. इस फिल्म ने आर. डी. बर्मन की पहचान लोगो के बिच एक सफल संगीत निर्देशक के तौर पर स्थापित की थी. इस फिल्म की सफलता से उत्साहित होकर नासिर हुसैन ने अपनी अगली छह फिल्मों के लिए आर. डी. बर्मन को इकठ्ठा साइन कर लिया था. फिर उन्होंने “पड़ोसन” (1968) और “वारिस” (1969) जैसी कई सफल फिल्में दीं. 70 के दशक की शुरुआत से आरडी बर्मन संगीत निर्देशक के रूप में बॉलीवुड की सबसे बड़ी मांग बन गए. इसके बाद “अमर प्रेम” (1971), “हरे रामा हरे कृष्णा” (1971), “सीता और गीता” (1972), और “शोले” (1975) के संगीत निर्देशक के रूप में इस तरह की हिट फिल्मों का प्रतिनिधित्व किया गया.
आर. डी. बर्मन का निजी जीवन | R D Burman Personal Life, wife Family
70 से 80 के दशक की उनके जीवन की इस अवधि को व्यक्तिगत सफलता और कठिनाइयों दोनों का दौर कहा जा सकता है. उन्होंने 1966 में रीता पटेल से शादी की, लेकिन शादी ज्यादा टिक नहीं पाई और 1971 में उनका तलाक हो गया. 1975 में उनके पिता का निधन हो गया. उनके पिता की मृत्यु को उनके करियर में विराम के रूप में देखा जा सकता था, लेकिन इसने उन्हें रोका नहीं, बल्कि आर डी ने बॉलीवुड में एक और दशक को सफल फिल्मो की सौगात दी.
इस समय में उनका व्यक्तिगत जीवन भी अच्छा था. इसके बाद गायिका आशा भोंसले से बौर्मन साहब की नजदीकियां बढ़ने लगी. 1980 में उन्होंने आशा भोसले से शादी कर ली. दोनों ने साथ में ढेरों सुपरहिट गीतों को रिकॉर्ड किया और बहुत से लाइव प्रदर्शन किये, लेकिन जीवन के आखरी समय में उनका साथ आशा भोंसले से भी छूट गया.
इसके बाद आर. डी. बर्मन को अपने जीवन में आर्थिक तंगी का भी सामना करना पड़ा. उनकी माँ मीरा की मृत्यु बर्मन साहब की मृत्यु के 13 साल बाद 2007 में हुई.
आर. डी. बर्मन का आखरी समय | R D Burman Death
1980 के मध्य में, आर.डी. बर्मन के लिए दोनों रूप से बहुत बुरा समय था, वो चाहे व्यक्तिगत रूप हो या पेशेवर. ऐसी धारणा बनने लगी थी कि उन्होंने अपना वो पुराना स्पर्श खो दिया है. उसके बाद उन्होंने जो गाने किए, वे सामान्य तौर पर जनता पर कुछ खास प्रभाव डालने में सफल नहीं हुए. जहाँ आर.डी. बर्मन ने पश्चिमी “प्रेरित” गानों से अपना करियर बनाया था, वहीँ उन्होंने पाया कि उन्हें बार-बार बप्पी लहरी के पश्चिमी “प्रेरित” डिस्को द्वारा मात दी जा रही थी.
1988 में, 49 साल की उम्र में बर्मन साहब को दिल का दौरा पड़ा. उन्होंने सर्जरी करवाई और संगीत बनाना जारी रखा. लेकिन उनका करियर 1990 में बहुत ही मंद व्यावसायिक सफलता के साथ लंगड़ा रहा था. ये वो समय था जब उनके बनाएं हर संगीत को लोग सार्वजनिक तौर पर अस्वीकार कर रहे थे, सिर्फ उनकी फिल्म “1942: ए लव स्टोरी” संगीत को छोड़कर. बड़े पैमाने पर उन्हें बॉलीवुड फिल्म उद्योग में समाप्त माना जाने लगा. 54 साल की उम्र में उन्हें एक और दिल का दौरा पड़ा और 4 जनवरी, 1994 को उनकी मृत्यु हो गई.
1942: ए लव स्टोरी (1994) का संगीत बर्मन साहब की मृत्यु के बाद रिलीज़ हुआ और फिल्म के सारे गाने सुपरहिट साबित हुए लेकिन अफ़सोस कि इसकी सफलता को देखने के लिए ख़ुद आर डी बर्मन ज़िंदा नहीं थे. इस फिल्म के लिए उन्होंने अपना तीसरा और अंतिम फिल्मफेयर अवार्ड भी जीता, मगर वो अपनी ‘आख़िरी सफलता’ को देखने से पहले ही दुनिया से विदा हो चुके थे.
उनकी मृत्यु उनके संगीत के उत्पादन को ख़त्म कर सकती है, लेकिन उन्हें आज भी याद किया जाता है. जहां जनता, और व्यापार ने उन्हें अपने जीवन के अंतिम वर्षों में सिरे से नकार दिया था, वही जनता आज अपने जीवन में उच्च स्थानों पर उन्हें याद करती है. बर्मन साहब के जाने के बाद कई, रीमिक्स, डॉक्यूमेंट्री और “फिल्मफेयर आरडी बर्मन अवार्ड फॉर न्यू म्यूजिक टैलेंट” के नाम से उन्हें याद और सम्मानित किया जाता रहा है.
आर.डी.बर्मन को मिले अवार्ड और सम्मान | R D Burman Awards
आर.डी. बर्मन संगीत के रस में कुछ इस तरह खोए रहते थे उन्होंने कभी किसी अवार्ड की चिंता नहीं की. बस संगीत पर संगीत बनाते रहे और लोगो को सर्वश्रेष्ठ संगीत से रूबरू कराते रहे. अपने जीवन में ढ़ेरों सर्वश्रेष्ठ गीत देने के बावजूद उनके हिस्से में केवल तीन फिल्मफेयर अवार्ड आए वह भी तब जब उनका करियर ख़त्म होने की कगार पर था.
- 1983 फिल्म ‘सनम तेरी कसम’ के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक पुरस्कार.
- 1984 फिल्म ‘मासूम’ के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक पुरस्कार.
- 1995 फिल्म ‘1942: ए लव स्टोरी’ के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक पुरस्कार.
आर. डी. बर्मन के जिंदा रहते कभी कोई राष्ट्रीय सम्मान नहीं दिया गया लेकिन, साल 2013 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट जरूर जारी किया था.
आर.डी. बर्मन साहब के अनसुने किस्से | Unknown Fact of R D Burman
- आर डी को समीप से जानने वाले लोग बताते हैं कि शुरुआत से ही उनमें एक अलग प्रतिभा थी. उन्होंने अपने पिता एसडी बर्मन (सचिनदेव बर्मन) के कई गानों को रिकॉर्ड किया लेकिन क्रेडिट नहीं लिया.
- उनके बारे में ऐसा कहा जाता था कि वह पुराने संगीत की थीम चुराकर नया संगीत बनाते थे, पर आज के सभी संगीतकार उन्ही की प्रेरणा पर काम कर रहे है.
- आर डी साहब दक्षिणी और पश्चिमी को मिलाकर एक नए संगीत की रचना करने में माहिर थे.
- आर. डी. बर्मन प्रयोगवादी संगीतकार के रूप में जाने जाते हैं. उनके द्वारा पश्चिमी संगीत को मिलाकर अनेक नई धुनें तैयार की गई थीं. उन्होंने अपने करियर में लगभग 300 फ़िल्मों में अपना संगीत दिया है.
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