दादा राम कैलाश यादव के जीवन की कहानी
Ram Kailash Yadav Biography, Album, Life Story, Award in Hindi
उत्तर प्रदेश के बिरहा गायन को ना केवल ज़िंदा रखने बल्कि अपनी ओर से उसे समृद्ध और संपन्न बनाने में कोइ कसर नहीं छोड़ने वाले, उसी दिशा में अपना पूरा जीवन फूँक देने वाले राम कैलाश यादव जी एक बिरहा गायक थे. बिरहा गायन सम्राट के राम कैलाश यादव अपने गायन में हमारे अपने जीवन से ही कुछ प्रमुख और जरूरी मूल्यों की बात को अपने संगीत के माध्यम से लोगो के सामने प्रस्तुत करते थे. बिरहा गायन क्या होता है ये भी इस लेख में हमने बताने की कोशिश की है ताकि, जो बिरहा गायन के बारे में नही जानते है वे भी समझ सके. तो चलिए जानते है मशहूर बिरहा दादा राम कैलाश यादव के जीवन के बारे में…
दादा राम कैलाश यादव का जीवन परिचय | Ram Kailash Yadav Biography in Hindi
1928 में उत्तर प्रदेश के गाँव लमही में जन्मे श्री राम कैलाश यादव जी ने अपने क्षेत्र के संगीत में पहल और प्रशिक्षण महाबीर यादव ने लिया था. उनके पास विभिन्न पारंपरिक भक्ति गीतों और विशेष रूप से बिरहा का एक बड़ा भंडार है. उन्होंने उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर नाट्य और संगीत के माध्यम से प्रदर्शन किया है और अपने क्षेत्र के लोक गीतों के गायक के रूप में अपना वर्चस्व स्थापित किया.
उनके संगीत के कई ऑडियो-कैसेट जारी किए गए हैं. उनकी कला की पहचान के लिए, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी ने उन्हें 1990 में अपने पुरस्कार से सम्मानित भी किया. श्री राम कैलाश यादव को उत्तर प्रदेश के लोक संगीत में उनके योगदान के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला.
इनके जीवन की खास बातें
राम कैलाश यादव जी अक्सर अपने गायन के सहारे आजकल के ज़माने और उसे जीने के तरीको से होने वाले कष्ट को प्रकट किया करते थे . एक ऐसी ही बात उन्होंने कानपूर के प्रोग्राम में कहीं थी “आज के वक्त में खाना और गाना दोनों ही खराब हो गया है”. ठेठ यूं.पी. स्टाइल में कही जाने वाली उनकी बातें भले ही कई बार समझ में नहीं आती हों लेकिन उनका लहजा और उनके चहरे पर आने वाला तेज असरदार होता था.
सादा जीवन देशी पहनावा
वे हमेशा धोती-कुर्ता और गले में एक गमछा के परिवेश में नज़र आते थे. इतना सादापन उन्हें हमेशा अपनी मिट्टी से जुड़े रहने का सन्देश देता था. अपने गाए गीतों में वे ज्यादातर अपने मिट्टी की बात करते थे या कुछ हद तक मानव समाझ से जुड़ी बुराइयों पर खुल कर गाया करते थे.
राम कैलाश यादव जी के एल्बम | Music Album of Ram Kailash yadav
दादा राम कैलाश यादव जी ने अपने संगीत के कई एलबम निकाले हैं. जिनमें 1995 से 1998 के बीच निकले सती सुलोचना,दहेज़,क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद,अभिमानी रावण अत्यंत ख़ास हैं. उन्होंने देश के लगभग सभी बड़े शहरों में अपने गायन के कार्यक्रम को किया है. उनके साथ हमेशा उनकी लोक वाध्य यंत्रों के 5 से 6 कलाकारों की मंडली रही है. वे मंच पर खुद खड़े होकर अपनी प्रस्तुती देते थे. बीच-बीच में कुछ अंगरेजी डायलोग बोलना और मूछों पर हाथ फेरना भी उनकी अलग छवि की छाप छोड़ता था.
Ram Kailash yadav Award
- 1990 में, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी द्वारा पुरस्कार से सम्मानित
बिराह गायन क्या होता है
बिरहा लोकगायन की एक विधा है जो पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा पश्चिमी बिहार के भोजपुरीभाषी क्षेत्र में प्रचलित है. बिरहा प्रायः अहीर (यादव) समुदाय के लोगो द्वारा गाया जाता हैं. इसका अतिम शब्द प्रायः बहुत खींचकर गाया जाता है. जैसे,—बेद, हकीम बुलाओ कोई गोइयाँ कोई लेओ री खबरिया मोर. खिरकी से खिरकी ज्यों फिरकी फिरति दुओ पिरकी उठल बड़ जोर ॥ बिरहा, ‘विरह’ से उत्पन्न हुई है जिसमें लोगों के सामाजिक वेदना को आसानी से दर्शाया जाता हैं और श्रोता मनोरजंन के साथ-साथ छन्द, काव्य, गीत व अन्य रसों का आनन्द भी ले पाते हैं.
राम कैलाश यादव जी की जीवनी आप संगीत के माध्यम से भी सुन सकते है निचे दी गई विडियो इसी से सम्बंधित है
इसी के साथ एक विडियो प्रस्तुति भी आप निचे देख सकते है
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