रामनरेश त्रिपाठी रज़ा की जीवनी, जन्म, मृत्यु, प्रमुख रचनाएँ और साहित्य | Ram Naresh Tripathi Biography, Birth and Literature in Hindi
रामनरेश त्रिपाठी छायावाद पूर्व की खड़ी बोली के एक प्रसिद्ध कवि हैं. उन्होंने उनके समय के कवियों के प्रिय विषय समाज-सुधार के स्थान पर प्रेम को कविता का विषय बनाया. उनकी कविताओं में देशप्रेम और वैयक्तिक प्रेम दोनों मौजूद हैं, लेकिन वह अपनी कविताओ में देशप्रेम को ही विशेष स्थान देते है. त्रिपाठी जी की कविता कौमुदी में हिंदी, उर्दू, बांग्ला और संस्कृत की लोकप्रिय कविताओं का संकलन है, जो उनकी एक महशूर और लोकप्रिय कविता है एवं इस कविता के एक खंड में ग्रामगीत संकलित हैं, जिसे उन्होंने गाँव-गाँव घूमकर एकत्र किया और लोक-साहित्य के संरक्षण की दृष्टि से हिंदी में यह उनका पहला मौलिक कार्य था. हिंदी साहित्य में वे बाल साहित्य के जनक माने जाते हैं. उन्होंने कई वर्षों तक बानर नामक बाल पत्रिका का सम्पादन किया, जिसमें मौलिक एवं शिक्षाप्रद कहानियाँ, प्रेरक प्रसंग प्रकाशित होते है. कविता के अलावा उन्होंने नाटक, उपन्यास, आलोचना, संस्मरण आदि अन्य विधाओं में भी रचनाएँ कीं.
रामनरेश ने अपने 72 वर्ष के जीवन काल में लगभग सौ पुस्तकें लिखीं है. ग्राम गीतों का संकलन करने वाले वह हिंदी के प्रथम कवि थे. उनको ‘कविता कौमुदी‘ के नाम से पहचना जाता है. वह महात्मा गांधी के जीवन और कार्यो से अत्यन्त प्रभावित थे. उनका कहना था कि लरिकाई का प्रेम क्या है और मेरी पूरी मनोभूमिका को सत्याग्रह युग ने निर्मित किया है. ‘बा और बापू‘ उनके द्वारा लिखा गया हिंदी का पहला एकांकी नाटक है. हम आज जो विद्यालयों में प्रार्थना के रूप “हे प्रभो आनन्ददाता, ज्ञान हमको दीजिये” गीत गाते है वह उनकी प्रमुख रचनाएँ में से एक है. हिन्दी जगत में वह मार्गदर्शी साहित्यकार के रूप में अवरित हुए और सारे देश में लोकप्रिय है.
जन्म और करियर (Biography)
रामनरेश त्रिपाठी का जन्म 4 मार्च 1881 में कोइरीपुर में जिले जौनपुर, उत्तर प्रदेश में एक किसान परिवार में हुआ था. उनके पिता रामदत्त त्रिपाठी धार्मिक व सदाचार परायण ब्राह्मण थे एवं वह भारतीय सेना में सूबेदार के पद पर रह चुके थे. उनके पिता का रक्त रामनरेश त्रिपाठी की तंत्रिकाओं में धर्मनिष्ठा, कर्तव्यनिष्ठा व राष्ट्रभक्ति की भावना के रूप में बहता था. उन्हें दृढ़ता, निर्भीकता और आत्मविश्वास के गुण उनके परिवार से ही मिले थे. त्रिपाठी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के प्राइमरी स्कूल में हुई. कनिष्ठ वर्ग उत्तीर्ण करके हाईस्कूल के लिए निकटवर्ती जौनपुर जिले में पढ़ने गए मगर वह दसवीं की शिक्षा पूरी नहीं कर सके. उनके अंदर कविता के प्रति रुचि प्राथमिक शिक्षा करते समय जाग्रत हुई और उन्होंने हिन्दी तथा संस्कृत के सम्पूर्ण साहित्य का काफी अध्ययन किया था.
अट्ठारह वर्ष की आयु में अपने पिता से अनबन होने पर वह कोलकाता चले गए और वहां पर जाने के बाद उनको एक संक्रामक रोग हो गया जिसकी वजह से वे कोलकाता में अधिक समय तक नहीं रह सके. सौभाग्य से एक व्यक्ति की सलाह मानकर वह स्वास्थ्य सुधार के लिए जयपुर राज्य के सीकर ठिकाना स्थित फतेहपुर ग्राम में सेठ रामवल्लभ नेवरिया के पास चले गए. यह एक संयोग ही था कि मरणासन्न स्थिति में वह अपने घर ना जाकर अपरिचित स्थान राजपुताना के एक अजनबी परिवार में जा पहुँचे जहां शीघ्र ही उनका इलाज हुआ व स्वास्थ्यप्रद जलवायु पाकर रोगमुक्त हो गए. इसके बाद मानों उनके लिखन पर माँ सरस्वती विराजमान हुई और तब ही उन्होंने “हे प्रभो आनन्ददाता, ज्ञान हमको दीजिये“ जैसा लोकप्रिय गीत लिखा था.
उनकी कविताओं में द्विवेदी युग के सभी प्रमुख प्रवृत्तियाँ मिलती हैं एवं फतेहपुर में साहित्य साधना की शुरुआत होने के बाद उन्होंने उन दिनों तमाम छोटे-बडे बालोपयोगी काव्य संग्रह, सामाजिक उपन्यास और हिन्दी में महाभारत लिखी. त्रिपाठी जी पर तुलसीदास व उनकी अमर रचना रामचरित मानस का गहरा प्रभाव था. बेढब बनारसी ने उनके बारे में कहा था कि रामनरेश मानस को घर-घर तक पहुँचाना चाहते थे.
तुम तोप और मैं लाठी,
तुम रामचरित मानस निर्मल, मैं रामनरेश त्रिपाठी।
वर्ष 1915 में त्रिपाठी ज्ञान एवं अनुभव की संचित पूंजी लेकर पुण्य तीर्थ एवं ज्ञानतीर्थ प्रयाग गए और उस क्षेत्र को उन्होंने अपनी कर्मस्थली बनाया एवं वहा पर अपनी थोडी पूंजी से उन्होंने प्रकाशन का व्यवसाय भी आरम्भ किया. त्रिपाठी ने गद्य और पद्य का कोई कोना अछूता नहीं छोडा तथा मौलिकता के नियम को ध्यान में रखकर रचनाओं को अंजाम दिया. कविता कौमुदी के सात विशाल एवं अनुपम संग्रह-ग्रंथों का भी उन्होंने बडे परिश्रम से सम्पादन एवं प्रकाशन किया.
महात्मा गांधी से निर्देश मिलने पर वे हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रचार मंत्री के रूप में हिन्दी जगत के दूत बनकर दक्षिण भारत गए थे. वह पक्के गांधीवादी देशभक्त और राष्ट्र सेवक थे. स्वाधीनता संग्राम और किसान आन्दोलनों में भाग लेकर वह जेल में भी जा जुके थे. उनको अपने जीवन काल में कोई राजकीय सम्मान तो नही मिला मगर उससे भी कही ज्यादा गौरवप्रद लोगों के द्वारा सम्मान तथा अक्षय यश उन पर अवश्य बरसा.
रचनाएँ (Compositions)
रामनरेश त्रिपाठी जी ने अपने जीवन में कई सारी रचनाएँ की है, जो आज उनके ना रहने के बावजूत भी काफी लोकप्रिय और पुरे भारत राष्ट्र में प्रसिद्ध है. उनके द्वारा लिखी गई कुछ रचनाएँ तो अमर भी कही जाती है.
प्रमुख रचनाएँ : मिलन, पथिक, स्वप्न (खंड काव्य), मानसी (फुटकर कविता संग्रह)
कहानियाँ : तरकस, आखों देखी कहानियां, स्वपनों के चित्र, नखशिख, उन बच्चों का क्या हुआ? और 21 अन्य कहानियाँ भी उनके नाम है.
उपन्यास : वीरांगना, वीरबाला, मारवाड़ी और पिशाचनी, सुभद्रा और लक्ष्मी.
नाटक : जयंत, प्रेमलोक, वफ़ाती चाचा, अजनबी, पैसा परमेश्वर, बा और बापू, कन्या का तपोवन.
व्यंग्य : दिमाग़ी ऐयाशी, स्वप्नों के चित्र.
अनुवाद : इतना तो जानो (गुजराती से हिंदी), कौन जागता है (गुजराती नाटक)
प्रसिद्ध कृतियां : हे प्रभो आनंददाता! और हमारे पूर्वज.
अंतिम समय
त्रिपाठी जी ने 16 जनवरी 1962 को अपने कर्मक्षेत्र प्रयाग में ही अपना अंतिम समय बिताया था. उनके निधन के बाद आज उनके गृह जनपद सुल्तानपुर जिले में एक मात्र सभागार “पंडित राम नरेश त्रिपाठी सभागार” स्थापित है, जो उनकी स्मृतियों को ताजा करता है.
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