कृष्ण भक्त रसखान का जीवनी, नाम कहानी, मृत्यु और उनकी रचनाएँ | Poet Raskhan Biography, Name story, Death and poetry in Hindi
कृष्ण भक्ति की पराकाष्ठा करने वाले रसखान का कवि कुल में अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है. रसखान एक मुस्लिम कवि थे परन्तु कृष्ण भक्ति में उनका अनन्य अनुराग था. अपने साहित्यिक ज्ञान से उन्होंने अपनी रचनाओं में भाषा की मार्मिकता, शब्द-चयन तथा व्यंजक शैली का उपयोग किया हैं.
रसखान का जीवन परिचय (Raskhan Biography)
इतिहासकारों के अनुसार रसखान के जन्म को लेकर आज भी काफी मतभेद हैं. रसखान का जन्म 1590 ई. उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के पिहानी में एक मुस्लिम पठान परिवार में माना जाता हैं और कुछ लोगो के मतानुसार दिल्ली के समीप है. इनका वास्तविक नाम सैयद इब्राहिम था. इनके पिताजी का नाम गंनेखां था जो अपने समय के मशहूर कवि थे. जिन्हें खान उपाधि प्राप्त थी. इनकी माता का नाम मिश्री देवी था जो एक समाज सेविका थी.
रसखान का परिवार आर्थिक रूप से संपन्न होने के कारण बचपन बहुत सुख और ऐश्वर्य में बीता. इनका परिवार भगवत प्रेमी था. जिसके कारण बाल्यकाल से ही भक्ति के संस्कार थे. एक बार भागवत कथा का आयोजन हो रहा था. व्यासपीठ से श्रीकृष्ण की लीलाओं का गुणगान हो रहा था और पास में लड्डू गोपाल श्री कृष्ण का सुंदर चित्र रखा हुआ था. रसखान कथा समाप्त होने के बाद भी उस चित्र को देखते ही रहे. कृष्ण भक्ति को अपना जीवन मान चुके रसखान ने गोस्वामी विट्ठलनाथ से शिक्षा प्राप्त की और ब्रज भूमि में जाकर बस गए.
रसखान नाम कैसे पड़ा (Raskhan Naam kaise padha)
रसखान के नाम को लेकर भी अलग-अलग मत प्रचलित हैं. हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने अपनी रचनाओं में रसखान के दो नाम सैय्यद इब्राहिम और सुजान रसखान लिखे हैं. कुछ लोगों का यह भी मानना हैं कि उन्होंने अपनी रचनाओं में उपयोग करने के लिए अपना नाम रसखान रख लिया था. राजा-महाराजाओं के समय अपने क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के कारण खां की उपाधि दी जाती थी.
रसखान की मृत्यु (Raskhan Death)
वर्ष 1628 में ब्रज भूमि में इनकी मृत्यु हुई. मथुरा जिले में महाबन में इनकी समाधि बनाई गई हैं.
रसखान की रचनाएँ (Raskhan Poetry)
रसखान की रचनाएँ मुख्य रूप से कृष्ण और प्रेम छवि में विभाजित हैं.
- खेलत फाग सुहाग भरी -रसखान
- संकर से सुर जाहिं जपैं -रसखान
- मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं -रसखान
- आवत है वन ते मनमोहन -रसखान
- जा दिनतें निरख्यौ नँद-नंदन -रसखान
- कान्ह भये बस बाँसुरी के -रसखान
- सोहत है चँदवा सिर मोर को -रसखान
- प्रान वही जु रहैं रिझि वापर -रसखान
- फागुन लाग्यौ सखि जब तें -रसखान
- गावैं गुनी गनिका गन्धर्व -रसखान
- नैन लख्यो जब कुंजन तैं -रसखान
- या लकुटी अरु कामरिया -रसखान
- मोरपखा मुरली बनमाल -रसखान
- कानन दै अँगुरी रहिहौं -रसखान
- गोरी बाल थोरी वैस, लाल पै गुलाल मूठि -रसखान
- कर कानन कुंडल मोरपखा -रसखान
- सेस गनेस महेस दिनेस -रसखान
- मानुस हौं तो वही -रसखान
- बैन वही उनकौ गुन गाइ -रसखान
- धूरि भरे अति सोहत स्याम जू -रसखान
- मोहन हो-हो, हो-हो होरी –रसखान
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