जैसा कि हम सब जानते हैं हमारा देश का इतिहास वैज्ञानिक खोजों का साक्षी रहा है. शून्य की खोज से लेकर दशमलव की खोज देश के गौरवपूर्ण इतिहास का बखान करती है. उस काल को देश के विज्ञान का स्वर्णिम काल भी कहा जा सकता है जब देश में नई-नई खोजें होती थी. लेकिन इसके बाद देश लगातार विदेशी आक्रमण को झेलता रहा. फिर गुलामी का दौर भी देखा. इन सब यातनाओं से गुजरने के बाद देश के बारे में यह छवि बन गई कि भारत मंदबुद्धि वाले लोगों का देश है जिन्हें खोज करना नहीं आता. भारतीय बस पीछे चलने वाले लोग हैं.
दासता ने भले ही हमें आर्थिक रुप से कमजोर बना दिया हो लेकिन बौद्धिक रूप से आज भी हम दुनिया में प्रथम स्थान रखते हैं. इसी कड़ी में आज हम आपका परिचय एक ऐसे भारतीय वैज्ञानिक से कराएँगे जिसका लोहा स्वयं अल्बर्ट आइन्स्टाइन भी मानते थे.
बिंदु (Points) | जानकारी (Information) |
पूरा नाम (Full Name) | सत्येंद्र नाथ बोस |
जन्म तारीख (Birth Date) | 1 जनवरी 1894 |
जन्म स्थान (Birth Place) | कोलकाता |
पेशा (Profession) | वैज्ञानिक |
पत्नी का नाम (Husband Name) | उषाबती बोस (m. 1914–1974) |
बच्चों के नाम (Childrens) | 2 बेटे और 5 बेटियां (नाम ज्ञात नहीं) |
मृत्यु (Death) | 4 फ़रवरी 1974 |
माता का नाम (Mother Name) | अमोदिनी रायचौधुरी |
पिता का नाम (Father name) | सुरेन्द्र नाथ बोस |
सत्येंद्र नाथ बोस का जन्म और परिवार (Satyendra Nath Bose Birth and Family)
सत्येंद्र नाथ का जन्म 1 जनवरी 1894 को कोलकाता में हुआ था. इनके पिता सुरेंद्र नाथ बोस ईस्ट इंडिया रेलवे में इंजीनियरिंग विभाग में कार्यरत थे. इनकी पत्नी का नाम उषाबाई बोस था. अपने माता-पिता के सात संतानों में इकलौते बेटे थे और यह सबसे बड़े थे. इनके अलावा परिवार में इनकी छ: बहने भी थी. वह एक स्वयंभू विद्यार्थी थे जिनकी रूचि कई सारे क्षेत्रों में थी. जिसमें मैथमेटिक्स, केमिस्ट्री फिजिक्स, लिटरेचर, फिलॉसफी, आदि शामिल थे.
सत्येंद्र नाथ बोस की शिक्षा (Satyendra Nath Bose Education)
इनका पैतृक घर नाडिया नाम के एक गांव में था जो कि पश्चिम बंगाल में है. जब यह 5 साल के हुए तो इनका प्रवेश पास के ही एक सामान्य से स्कूल में कर दिया गया. उसके बाद उन्होंने न्यू स्कूल और हिंदू स्कूल में एडमिशन लिया. इन्होंने अपनी एंट्रेंस एग्जाम मैट्रिकुलेशन सन 1909 में पास की जिसमें इनकी पाँचवीं रैंक आई.
इसके बाद इन्होंने कोलकाता के एक प्रसिद्ध कॉलेज प्रेसिडेंसी कॉलेज में एडमिशन लिया. इस प्रकार उन्होंने अपनी शिक्षा पूर्ण की. अपनी पूरे विद्यार्थी जीवन में बोस ने हमेशा अच्छे अंक प्राप्त किए. एक बार उनके अध्यापक ने उन्हें गणित विषय मे 100 में से 110 नंबर दिए थे और कहा था कि “यह एक दिन बहुत बड़ा गणितज्ञ बनेगा”
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सत्येंद्र नाथ बोस का कार्यक्षेत्र (Satyendra Nath Bose Works)
पढाई पूरी हो जाने के बाद सत्येंद्र नाथ ने अपना कार्यक्षेत्र विज्ञान को चुना. वह कोलकाता विश्वविद्यालय में पढ़ाने लगे. विज्ञान में गहरी रुचि होने के कारण उन्होंने अध्यापन के साथ शोध कार्य जारी रख. इसके लिए बोस ने गिब्स, प्लांट, आइन्स्टाइन जैसे वैज्ञानिकों के शोध कार्य को पढ़ना चालू कर दिया. आइन्स्टाइन ने दिखाया कि प्रकाश, तरंग और छोटे-छोटे बॉल (जिसे हम फोटोन कहते हैं) दोनों माध्यम से चलता है. जिसकी पारंपरिक विज्ञान में व्याख्या नहीं थी लेकिन आइन्स्टाइन का यह नया सिद्धांत कहीं ना कहीं प्लांक के सिद्धांत को प्रतिपादित नहीं कर पा रहा था. जल्द ही बोस ने एक नया सिद्धांत दिया जो यह कहता है कि “फोटोन बॉल की तरह नहीं होती है, जैसा आइन्स्टाइन ने कहा था बल्कि यह बिखरे हुए होते हैं”
यह सिद्धांत नए सांख्यिकी की शुरुआत थी. यह नई खोज को बोस ने इंग्लैंड के पत्रिका में छपने के लिए भेजा लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया. तब उन्होंने यह शोध आइन्स्टाइन को भेजा और उनसे अनुरोध किया कि इसे किसी पत्रिका में छपवाये. तब आइंस्टीन ने इस शोध को बहुत सराहा और इसका अनुवाद जर्मन भाषा मे करके एक प्रसिद्ध जर्मन पत्रिका में प्रकाशित करवाया. साथ ही बोस को उनके कार्य के तारीफ में एक पत्र भी लिखा.
आइंस्टीन हमेशा ही बोस के लिए प्रेरणा के स्रोत रहे और आइंस्टीन के द्वारा अपने काम की तारीफ ने डॉ बोस के उत्साह को और बढ़ा दिया. डॉ. बोस ने भारत मे क्रिस्टल विज्ञान के क्षेत्र में अहम योगदान दिया. उन्होंने शोध कार्य के लिए ढाका विश्वविद्यालय में x ray cristal लैब का निर्माण करवाया.
कुछ समय बाद उन्हें ढाका विश्वविद्यालय का संकाय अध्यक्ष बनाया गया. नवंबर सन 1925 में उन्होंने आइंस्टीन से पहली बार मुलाकात की जब वो विदेश यात्रा पर थे. इस दौरान वो उस समय के कई महान वैज्ञानिकों से मिले और उनसे दोस्ती भी रही. भारत के लोगों मे विज्ञान के प्रति जागरूकता लाने और विज्ञान की जरूरत को समझने के लिए इन्होंने कई राष्ट्रीय प्रयोगशाला के निर्माण में अहम योगदान दिया.
बोस आइन्स्टाइन सांख्यिकी सिद्धांत (Bose-Einstein Statistics in Hindi)
बोस ने क्वांटम फिजिक्स को एक नई दिशा दिया. पहले वैज्ञानिकों के द्वारा यह माना जाता रहा कि परमाणु ही सबसे छोटा कण होता है लेकिन जब इस बात की जानकारी चली कि परमाणु के अंदर भी कई सूक्ष्म कण होते हैं जो कि वर्तमान में प्रतिपादित किसी भी नियम का पालन नहीं करते हैं. तब डॉ बोस ने एक नए नियम का प्रतिपादन किया जो “बोस-आइन्स्टाइन सांख्यिकी सिद्धांत” के नाम से जाना जाता है.
इस नियम के बाद वैज्ञानिकों ने सूक्ष्म कणों पर बहुत रिसर्च किया. जिसके बाद यह निष्कर्ष निकाला कि परमाणु के अंदर पाए जाने वाले सूक्ष्म परमाणु कण प्रमुखता दो प्रकार के होते हैं जिनमें से एक का नामकरण डॉ बोस के नाम पर ‘बोसॉन’ रखा गया तथा दूसरे का एनरिको फर्मी के नाम पर ‘फर्मीऑन’ रखा गया.
आज भौतिकी में कण दो प्रकार के होते हैं एक बोसॉन और दूसरे फर्मियान. बोसॉन यानि फोटॉन, ग्लुऑन, गेज बोसॉन (फोटोन, प्रकाश की मूल इकाई) और फर्मियान यानि क्वार्क और लेप्टॉन एवं संयोजित कण प्रोटॉन, न्यूट्रॉन, इलेक्ट्रॉन ( चार्ज की मूल इकाई). यह वर्तमान भौतिकी का आधार हैं.
नोबेल पुरस्कार का न मिलना (Satyendra Nath Bose Nobel Price)
जिस वैज्ञानिक की मेहनत का लोहा स्वयं आइंस्टीन ने माना हो. जिसके साथ स्वयं आइंस्टीन का नाम जुड़ा हो, जिसने सांख्यकी भौतिकी को नए सिरे से परिभाषित किया हो, जिसके नाम का आधार लेकर एक सूक्ष्म कण का नाम ‘बोसॉन’ रखा गया हो, उस व्यक्ति को नोबेल पुरस्कार न मिलना अपने आप मे कई प्रश्न खड़े करता हैं.
वर्तमान में अधिकांश वैज्ञानिकों का मत है की बोस- आइंस्टीन सांख्यकी सिद्धांत का जितना प्रभाव क्वांटम फिजिक्स में है उतना तो शायद हिंग्स बोसॉन का भी नहीं होगा.
सत्येंद्र नाथ बोस की मृत्यु (Satyendra Nath Bose Death)
माँ भारती के यह वीर सपूत जिसने भारत की मेधा का पूरे विश्व मे लोहा मनवाया था अंततः 4 फ़रवरी 1974 को पंचतत्वों में विलीन हो गया.
सत्येंद्र नाथ बोस की उपलब्धियां (Satyendra Nath Bose Achievements)
- भारत के द्वितीय सर्वश्रेष्ट सम्मान ‘पद्मविभूषण‘
- बोस – आइंस्टीन सांख्यकी सिद्धांत
- इनके नाम पर एक सूक्ष्म परमाणु कण का नाम “बोसॉन” रखा हैं.
- बोस-आइंस्टीन कंडनसेट
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