वीर सीताराम कंवर का जीवन परिचय | Sitaram Kanwar Biography In Hindi
भारत को अंग्रेजों से आज़ादी दिलाने में वीर सीताराम कँवर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. सीताराम एक आदिवासी योद्धा थे. इन्होने समाज को नई दिशा प्रदान की थी. 1857 की क्रांति में शहीद वीर सीताराम कंवर ने निमाड़ क्षेत्र में विद्रोह कर अंग्रेज शासन के छक्के छुड़ा दिए थे .
वीर सीताराम जी का बलिदान दिवस | Sitaram Kanwar Balidan Diwas
स्वतंत्रता संग्राम में सीताराम जी की महत्वपूर्ण भागीदारी रही थी. उनके बलिदान और गौरव की गाथा आने वाली पीढ़ी को बताने के लिए सीताराम बलिदान दिवस मनाया जाता है. अंग्रेजों और उनके सहयोगी राजाओं के लिए वीर सीताराम जी दुश्मन थे. इसलिये अंग्रेज उन्हें विद्रोही कहकर पुकारते थे. 9 अक्टूबर सन 1858 में इन्होने अपने प्राण की आहुति दे दी थी. हर वर्ष 9 अक्टूबर को सीताराम जी के इस शहादत दिवस को बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है.
वीर सीताराम जी की वीर गाथा | Sitaram Kanwar Proud Story
- सन 1857 की क्रांति के समय बड़वानी रियासत के समय पहले दो स्वतंत्रता सेनानी श्री खाज्य नायक और श्री भीमा नायक सक्रीय रहे. इन दोनों ने अंगेजी शासन में दखलन्दाजी की. इन दोनों के दमन के बाद बड़वानी रियासत में सीताराम ने विद्रोह किया. इन्होने अपनी सक्रीयता दिखाई और होल्कल और अंग्रेजी प्रशासन को परेसान कर डाला. कंवर आदिवासी समुदाय के कई व्यक्तियों को होल्कर दरवार को मंडलोई नियुक्त कर दिया और उन्हें जमीदारी के अधिकार दिए. जिसमें राजस्व बसूल करने और सुरक्षा के लिए सैनिक नियुक्त करने का भी अधिकार था. इससे आदिवासी कँवर समुदाय की योग्यता और सक्रियता का अनुमान लगाया जा सकता है.
- सितम्बर सन 1857 में नर्मदा नदी के दक्षिण में होल्कर रियासत और बरबानी रियासत में गंभीर विद्रोह शुरू हो गया. इस इलाके में सीताराम कंवर ने होल्कर के सिपाहियों को अपनी ओर शामिल करके विद्रोह कर दिया था. इसके साथ ही भील और भिलाला आदिवासी के लोगों को भी शामिल कर लिया था. इनके दल में एक मुख्य व्यक्ति रघुनाथ सिंह मंडलोई भी थे थे. सतपुड़ा के लोगों को विद्रोह करने के लिए इन्होने उन्हें प्रेरित किया. इस तरह से सीताराम जी अलग – अलग जगह पर विद्रोह कर रहे थे और अंग्रेजी शासन के लिए सिरदर्द बन गए थे.
- 27 सितम्बर सन 1858 में एक पत्र में गवर्नर जनरल के एजेंट ने मेजर कीटिंग को लिखा कि वैसे तो राजाओं और जागीरदारों से कहा जा सकता है कि विद्रोहियों का शक्ति से दमन करें लेकिन हमारी भारतीय सेना को उक्साया गया है. जिससे अब भारतीय जवानों पर विश्वास भी नहीं किया जा सकता. अब हमारे लिए आवश्यक हो गया है कि शक्ति से आगे बढे और भारतीय सिपाहियों की कमान खुद संभालें. इस कार्य के लिए गवर्नर जनरल के एजेंट ने मेजर कीटिंग के पास फरज अलि को इंदौर भेजा.
- इसके अलावा होल्कर राजा ने स्वतंत्रता सेनानियों का दमन करने के लिए दिलशेर खान को सिपाही, हाथी और तोपें भेजी. इस बीच गाँव वाले भयभीत हो गए थे और अपने – अपने घरों को खाली कर दिया था. वंड नामक स्थान पर अंगेजों का सामना विद्रोही सीताराम से हुआ. यहाँ पहले से ही बहुत बढ़ी अंग्रेजी सेना उपस्थित थी. इस मौके का फायदा उठाते हुए अंग्रेजो ने हमला बोल दिया. दोनों तरफ से अस्त्र – शस्त्र चलना शुरू हो गए. अंत में स्वतंत्रता संग्रामियों को हार का सामना करना पड़ा. विद्रोहियों को नुकसान उठाना पड़ा और उनमें से कई लोग जंगल को ओर भाग गए.
- इस संग्राम में लगभग 20 स्वतंत्रता संग्रामी शहीद हुए. इनमें वीर सीताराम और हवाला शामिल थे. वीर सीताराम का सर कैंप में लाया गया जिससे उनके शहादत की पहचान हुई. यह विद्रोह सिताराम जी ने कोई धन – दौलत या राज –पाट पाने के लिए नहीं किया था बल्कि अपने लोगों की स्वतंत्रता पाने के लिए किया था. उन्होंने अपने आप को अंग्रेजों के सामने झुकने नहीं दिया. ऐसे वीर क्रांतिकारी योद्धा सीताराम जी की शहादत को हम आज भी याद करते हैं.
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