स्वामी ब्रम्हानंद लोधी का जीवन परिचय
Swami Brahmanand Lodhi Biography, Jayanti, Birth, Family, Wife, Death, Facts in Hindi
भारत वीरो की भूमि है. यहां हर दशक मे अनेक समाजसेवी वीरो ने जन्म लिया है तथा समाज के उत्थान में अपना योगदान दिया है. ऐसे ही समाजसेवी में एक बड़ा नाम स्वामी ब्रह्मानंद लोधी जी का आता है. स्वामी ब्रम्हानंद जी का जन्म आज से लगभग 125 वर्ष पहले उत्तरप्रदेश हमीरपुर जिले की राठ तहसील के बरहरा गाँव मे एक साधारण किसान परिवार मे हुआ था. स्वामी ब्रम्हानंद के बचपन का नाम शिवदयाल था. स्वामी ब्रम्हानंद ने बचपन से ही समाज में फैले अंधविश्वास और अशिक्षा जैसी कुरीतियों का डटकर विरोध किया तथा शिक्षा के क्षेत्र मे बहुत ही सराहनीय कार्य किये. स्वामी जी ने समाज के लोगों को शिक्षा की ओर ध्यान देने हेतु आह्वान किया.
स्वामी ब्रम्हानंद लोधी की जीवनी | Swami Brahmanand Lodhi Biography in Hindi
बिंदु (Points) | जानकारी (Information) |
नाम (Name) | स्वामी ब्रह्मानंद लोधी |
जन्म (Date of Birth) | 04 दिसम्बर 1894 |
आयु | 89 वर्ष |
जन्म स्थान (Birth Place) | हमीरपुर जिले के बरहरा गाँव, उत्तरप्रदेश |
पिता का नाम (Father Name) | मातादीन लोधी |
माता का नाम (Mother Name) | जशोदाबाई लोधी |
पत्नी का नाम (Wife Name) | राधाबाई |
पेशा (Occupation ) | राजनेता, स्वतंत्रता सेनानी |
बच्चे (Children) | एक पुत्र व एक पुत्री |
मृत्यु (Death) | 13 सितंबर 1984 |
मृत्यु स्थान (Death Place) | ज्ञात नहीं |
भाई-बहन (Siblings) | ज्ञात नहीं |
अवार्ड (Award) | —– |
प्रारम्भिक जीवन | Swami Brahmanand Lodhi
स्वामी ब्रह्मानंद जी की प्रारम्भिक शिक्षा हमीरपुर में ही हुई. इसके पश्चात् स्वामी ब्रह्मानंद जी ने घर पर ही महाभारत, गीता, रामायण, उपनिषद और अन्य शास्त्रों का अध्ययन किया. इसी कारण लोग उन्हें स्वामी ब्रह्मानंद के नाम से बुलाने लगे. ऐसा भी कहा जाता है कि बालक शिवदयाल के बारे में संतों ने भविष्यवाणी कि थी कि यह बालक या तो राजा होगा या प्रख्यात संन्यासी.
बचपन से बालक शिवदयाल का रुझान आध्यात्मिकता की तरफ ज्यादा होने के कारण पिता को डर सताने लगा कि कहीं वे साधु न बन जाएं. इस डर से पिता ने स्वामी ब्रह्मानंद का विवाह सात वर्ष की उम्र में हमीरपुर के ही गोपाल महतो की पुत्री राधाबाई से करा दिया. आगे चलकर राधाबाई ने एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म दिया. विवाह के उपरांत भी स्वामी जी का चित्त आध्यात्मिकता की तरफ ही था. इसकारण स्वामी ब्रह्मानंद जी ने 24 वर्ष की आयु में पुत्र और पत्नी का मोह त्याग दिया एवं गेरुए वस्त्र धारण कर परम पावन तीर्थ स्थान हरिद्वार में भागीरथी के तट पर ‘‘हर की पैड़ी’’ पर 24 वर्ष की आयु मे संन्यास की दीक्षा ली. संन्यास के बाद शिवदयाल लोधी संसार में ‘‘स्वामी ब्रह्मानंद’’ के रूप में प्रख्यात हुए. कुछ समय बाद स्वामी जी को
‘गीता रहस्य’ प्राप्त हुआ जिसके बाद उन्होंने अनेक पाठशालाएं खुलवाई एवं गौहत्या के विरुद्ध आंदोलन चलाए.
समाजसेवा एवं स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
स्वामी ब्रम्हानंद भारत के समाजसुधारक, परोपकारी एवं स्वतंत्रता सेनानी थे. पंजाब के भटिंडा में स्वामी ब्रह्मानंद जी की महात्मा गाँधी जी से भेंट हुई. गाँधी जी ने उनसे मिलकर कहा कि अगर आप जैसे 100 लोग आ जायें तो स्वतंत्रता अविलम्ब प्राप्त की जा सकती है.
1921 में स्वामी जी ने महात्मा गांधी के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया, 1930 में स्वामी जी नमक आंदोलन का हिस्सा बने. इस बीच उन्हें दो वर्ष का कारावास हुआ. उन्हें हमीरपुर, हरदोई और कानपुर की जेलों में रखा गया. स्वामी जी ने लोगों को स्वतंत्रता के आंदोलन के लिये प्रेरित किया तथा उन्होंने नारा दिया-” उठो! वीरो उठो!! दासता की जंजीरों को तोड फेंको, उखाड़ फेंको इस शासन को, एक साथ उठो, आज भारत माता बलिदान चाहती है”. उन्होंने कहा था कि दासता के जीवन से मृत्यु कही श्रेयस्कर है.
स्वामी जी ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन का भी हिस्सा रहे तथा इसके लिये भी उन्हें जेल जाना पड़ा.जेल से छूटने के बाद स्वामी ब्रम्हानंद जी ने शिक्षा के क्षेत्र में अपना अमूल्य योगदान दिया. स्वामी जी ने बुंदेलखंड क्षेत्र में अशिक्षा एवं पिछड़ेपन को दूर करने के लिए अनेक कार्य किए.
उन्होने हमीरपुर के राठ में वर्ष 1938 में ब्रह्मानंद इंटर कॉलेज़, 1943 में ब्रह्मानन्द संस्कृत महाविद्यालय तथा 1960 में ब्रह्मानन्द महाविद्यालय की स्थापना की. इसके अलावा शिक्षा प्रचार के लिए अन्य कई शैक्षणिक संस्थाओं के प्रेरक और सहायक रहे हैं. वर्तमान में बुंदेलखण्ड के भीतर उनके नाम पर कई कॉलेज और अनेक स्कूल संचालित किये जा रहे हैं.
राजनीतिक जीवन | Political Career
1966 में स्वामीजी ने गोहत्या निषेध आंदोलन का नेतृत्व किया. उन्होंने करीब 10 लाख लोगों के साथ संसद के सामने आंदोलन किया जिसके परिणामस्वरूप उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया गया. तब स्वामी ब्रह्मानंदजी ने प्रण लिया कि अगली बार चुनाव लड़कर ही संसद में आएंगे. जेल से मुक्त होकर स्वामी जी ने हमीरपुर लोकसभा सीट से जनसंघ से 1967 में चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीतकर संसद भवन पहुंचे. स्वामी जी 1967 से 1977 तक सांसद रहे. इसप्रकार स्वामी ब्रह्मानंद भारत के पहले सन्यासी थे जो आजाद भारत में सांसद बने. देश की संसद में स्वामी ब्रह्मानंद जी पहले वक्ता थे जिन्होंने गौवंश की रक्षा और
गौवध का विरोध करते हुए संसद में करीब एक घंटे तक अपना ऐतिहासिक भाषण दिया था. स्वामीजी गोरक्षा, दलित शोषण,भ्रष्टाचार, जातिवाद, छुआ छूत, कुरीति पर भारतीय संसद में अपने विचार रख चुके है.
मरणोपरांत सम्मान | Swami Brahmanand Lodhi Death
स्वामी ब्रम्हानंद जी का सम्पूर्ण जीवन परोपकार, समाज कल्याण एवं देशसेवा हेतु समर्पित रहा. समाज तथा देश की सेवा करते हुए त्यागमूर्ति स्वामी ब्रह्मानंद 13 सितंबर 1984 को ब्रह्मलीन हो गए. उनका जीवन दर्शन हमे आज भी शिक्षा प्रदान करता है एवं समाजसेवा, देशसेवा के लिए हमें प्रेरित करता है. स्वामी ब्रह्मानन्द जी की समाधि महाविद्यालय परिसर में बनाई गई. मरणोपरांत स्वामी ब्रह्मानंद जी के नाम से हमीरपुर जिले मे विरमा नदी में एक बाँध बनाया गया है . उनके गांव में स्वामी ब्रह्मानंद मंदिर बनाया गया है. पूरा देश स्वामीजी की 125वी जयंती मना रहा है इस उपलक्ष्य में हमीरपुर जिले के राठ शहर में लोधेश्वर धाम में विश्व की एकमात्र अनाज द्वारा निर्मित प्रतिमा स्थापित की गई है. 125वी जयंती पर स्वामी ब्रह्मानंद पुरुस्कार की धोषणा की गई है; यह पुरस्कार प्रत्येक वर्ष शिक्षा एवं गौसेवा के क्षेत्र में विशेष कार्य करने वाले भारतीय या गैर भारतीय लोगो को दिया जाएगा. भारत सरकार द्वारा स्वामी ब्रह्मानंद जी पर 14 सितंबर 1997 को भारतीय डाक टिकट जारी किया गया. इसप्रकार पूरा देश उनके योगदान एवं सेवा को सदैव याद रखेगा.
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