स्वामी नारायण का जीवन परिचय, जन्म, मृत्यु, ,मंदिर
Swaminarayan Biography, Family, Story, Religion, Marriage, Cast, Wife, Photo In Hindi
भगवान श्री स्वामी नारायण सर्व अवतारों के अवतारी हैं. इनका अवतरण 3 अप्रैल 1781 को गोण्डा जिले के छपिया ग्राम में पृथ्वी पर हुआ. बालक के हाथ एवं पैरों को देखकर ज्योतिषियों ने कहा था कि यह बालक लाखों लोगों के जीवन को सही दिशा देगा.
श्री स्वामी नारायण जी जब मात्र 11 वर्ष के थे तब उनके माता-पिता का देहांत हो गया. परंतु स्वामी नारायण जी ने छोटी अवस्था में ही अनेक शास्त्रों का अध्ययन कर लिया था. माता-पिता के देहांत के बाद अगले सात सालों में पुरे देश की परिक्रमा कर ली थी. लोग अब उन्हें ‘नीलकंठवर्णी’ कहने लगे.
स्वामी नारायण का जीवन परिचय | Swaminarayan Biography in Hindi
बिंदु (Points) | जानकारी (Information) |
नाम (Name) | घनश्याम पांडे |
प्रसिद्ध नाम | श्री स्वामी नारायण, नीलकंठ वर्णी, साहजनंद स्वामी |
जन्म (Date of Birth) | 3 अप्रैल 1781 |
आयु | 70 वर्ष |
जन्म स्थान (Birth Place) | छपिया, उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम (Father Name) | जानकारी नही |
माता का नाम (Mother Name) | ज्ञात नहीं |
पत्नी का नाम (Wife Name) | ज्ञात नहीं |
पेशा (Occupation ) | संत, महात्मा, भगवान का अवतार |
बच्चे (Children) | ज्ञात नहीं |
मृत्यु (Death) | 1830 ई |
मृत्यु स्थान (Death Place) | गुजरात |
भाई-बहन (Siblings) | कोई जानकारी नहीं |
अवार्ड (Award) | ज्ञात नही |
श्री सहजानंद स्वामी से स्वामी नारायण बनने की कहानी
एक दिन नीलकंठ वर्णी मांगरोल के पास ‘लोज’ गाँव में पहुँचे. वहाँ उनका परिचय स्वामी मुक्तानंद जी से हुआ. स्वामी मुक्तानंद जी स्वामी रामानन्द के शिष्य थे. कुछ समय बाद स्वामी रामानन्द जी ने नीलकंठ वर्णी को पीपलाण गाँव में दीक्षा देकर उनका नाम ‘सहजानंद’ रख दिया. तब से श्री स्वामिनारायण को सहजानंद स्वामी भी कहा जाता है. एक साल बाद रामानंद जी ने जेतपुर में सहजानंद जी को अपने संप्रदाय का आचार्य पद भी दे दिया. सहजानंद जी महाराज हिन्दू धर्म के स्वामिनारायण संप्रदाय के संस्थापक बन गये. उन्होंने गाँव-गाँव तथा घर-घर घूम कर सबको स्वामी नारायण मंत्र जपने को कहा. वे अपने शिष्यों को पांच व्रत लेने को कहते थे. इसमें मांस, मदिरा, चोरी, व्यभिचार तथा त्याग सर्वधर्म के पालन की बात होती थी.
समाज सुधारक
भगवान स्वामीनारायण जी ने समाज में फैली अनेक कुरीतियों को भी बंद कराया. जैसे सती प्रथा, कन्या हत्या, बलि प्रथा, आदि. उनकी ख्याति सब ओर फ़ैल गयी. उन्होंने कभी भेदभाव नहीं किया. मुसीबत आने पर वे सबकी सहायता पुरी निष्ठा एवं बिना किसी स्वार्थ के करते. वे जो नियम बनाते उन पर स्वयं अमल भी करते. उन्होंने अनेक मंदिरों का निर्माण भी कराया तथा इसमें स्वयं भी श्रमदान करते. यह सब देख लोगों ने उन्हें भगवान का दर्जा दिया. अपने कार्यकाल में उन्होंने बड़े-बड़े शहरों में अनेक भव्य शिखरबध्द मंदिरों का निर्माण किया.
रचनाएँ एवं अंत (Swaminarayan Compositions & Death)
श्री स्वामीनारायण भगवान ने शिक्षापत्री, वचनामृत, सत्संगी जीवन व भक्त चिंतामणि की रचना की है. इनकी शिक्षापत्री स्वामी नारायण संप्रदाय का मूल ग्रन्थ है. ऐसा माना जाता है की भागवत पुराण, स्कंद पुराण और पद्म पुराण में स्वामी नारायण के अवतार का संकेत है. 1830 ई. में श्री स्वामिनारायण अपना देह छोड़ दिया. परंतु आज उनके अनुयायी विश्व भर में फैले हैं और मंदिरों में सेवा व ज्ञान का केंद्र बनाकर काम करते हैं.
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