तात्या टोपे का जीवन परिचय | Tatya Tope Biography, History, Birth, Education, Life, Death, Role in Independence in Hindi
तात्या टोपे भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के एक प्रमुख सेनानायक थे. इनका वास्तविक नाम रामचंद्र पांडुरंग येवलकर था,लेकिन सब इनको प्यार से तात्या कहते थे. भारत को आज़ादी दिलाने में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है. तो चलिए इस लेख में तात्या टोपे का जीवन परिचय विस्तार से जानते एवं समज़ते है.
प्रारम्भिक जीवन | Tatya Tope Early Life
नाम | तात्या टोपे |
वास्तविक नाम | रामचंद्र पांडुरंग येवलकर |
जन्मतिथि | सन 1814 |
जन्मस्थान | येवला, जिला नासिक, महाराष्ट्र |
धर्म | हिन्दू |
तात्या टोपे जी का जन्म में महाराष्ट्र के नासिक जिले के नाम के एक गांव में प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में हुआ था. इनके पिता पांडुरंग राव भट्ट,पेशवा बाजीराव द्वितीय के धर्मदाय विभाग के प्रमुख थे. इनका वास्तविक नाम रामचंद्र पाण्डुरंग राव था, लेकिन प्यार से लोग इन्हे तात्या के नाम से बुलाते थे. वह आठ भाई-बहन में सबसे बड़े थे.
बचपन से तात्या कर्तव्यदक्ष एवं बुद्धिमान थे. बाजीराव पेशवा ने उनकी कर्तव्यपरायणता देखकर राज्यसभा में बहुमूल्य नवरत्न जड़ित टोपी देकर उनका सम्मान किया था, तब से उनका उपनाम टोपे पड़ गया था. इनकी शिक्षा-दीक्षा मनुबाई यानि रानी लक्ष्मीबाई के साथ हुई. इनके बड़े हो जाने के बाद पेशवा बाजीराव ने तात्या को अपना मुंशी बना लिया.
योगदान | Tatya Tope Contribution
बाजीराव पेशवा को आठ लाख रुपये पेंशन के रूप में दिए जाते थे. लेकिन, जब उनकी मृत्यु के बाद, तब अंग्रेज़ो ने उनके परिवार को यह पेंशन देना बंद कर दिया था. इतना ही नहीं उन्होंने उनके गोद लिए पुत्र नाना साहब को उनका उत्तराधिकारी मानने से भी इंकार कर दिया. यह तात्या और नानाहेब को बर्दाश नहीं हुआ और उन्होंने अंग्रेज़ो के खिलाफ रणनीति बनाना शुरू कर दिया था.
1857 में ब्रिटिशों ने कानुपर पर हमला कर दिया और ये हमला ब्रिगेडियर जनरल हैवलॉक की अगुवाई में किया गया था. तात्या ज्यादा समय तक अंग्रेज़ो से सामना नहीं कर पाए थे. लेकिन, इस हार के बाद भी उन्होंने अपनी खुद की एक सेना का गठन किया और तात्या ने 20000 सैनिको के साथ मिलकर अंग्रेजों को कानपुर छोड़ने पर मजबूर किया था.
कालपी के युद्ध में झांसी की रानी ने इनकी सहायता की थी. नवंबर 1857 मे इन्होने ग्वालियर में विद्रोहियों की सेना एकत्र की और कानपुर जीतने के लिए प्रयास किया. लेकिन यह संभव नहीं हो सका. क्योकि, ग्वालियर के एक पूर्व सरदार मानसिंह ने जागीर के लालच में अंग्रेजो से हाथ मिला लिया, जिससे ग्वालियर फिर से अंग्रेजो के कब्जे में आ गया था.
झांसी पर जिस समय ब्रिटिश सरकार द्वारा आक्रमण हुआ, व समय रानी लक्ष्मी बाई ने तात्या की सहायता मांगी थी. इस समय उन्होंने 15000 सैनिकों की टुकड़ी झाँसी भेजी थी.
निधन | Tatya Tope Death
कहा जाता है कि तात्या जिस वक्त पाड़ौन के जंगलों में आराम कर रहे थे उस वक्त ब्रिटिश सेना ने उन्हें पकड़ लिया था, और उन्हें फांसी दी गयी थी. लेकिन, ये भी कहा जाता है कि तात्या कभी भी अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे थे और उन्होंने अपनी अंतिम सांस गुजरात राज्य में साल 1909 में ली थी. तात्या टोपे के भतीजे ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि तात्या को कभी भी फांसी नहीं दी गई थी.
सन्मान | Tatya Tope Honor
तात्या टोपे के संघर्ष के सम्मान में भारत सरकार ने एक डाक टिकट भी जारी किया था. इसके अलावा मध्य प्रेदश में तात्या टोपे मेमोरियल पार्क भी बनाया गया है.
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