विशाखदत्त की जीवनी और पुस्तकें | Biograpjy of Vishakhadatta in Hindi | Vishakhadatta ka jeevan parichay | Vishakhadatta Books
विशाखदत्त महाकवि कालिदास के बाद प्रसिद्ध संस्कृत कवि और नाटक लेखक थे. उनकी जानकारी व्यापक रूप से उपलब्ध और प्रचारित नहीं हैं. विशाखदत्त द्वारा लिखे नाटक मुद्राराक्षस और देवीचंद्रगुप्तम बहुत प्रसिद्द हुए. इन किताबों में उन्होंने सुंदर शब्दों के साथ संस्कृत भाषा लिखी थी. इसलिए अभी भी हम वर्तमान में पुस्तकों के विषयों की प्रशंसा करते हैं. उनके पिता और दादा के चरित्रों को भी इन पुस्तकों में महाराजा भास्करदत्त और महाराजा बटेश्वरदत्त के रूप में सुनाया गया था.
Vishakhadatta Biography History
मुद्राराक्षस (Mudrarakshas)
राजनीतिक नाटक मुद्राराक्षस सदियों से पाठकों को लुभाता रहा है. यहाँ मुद्राक्ष का अर्थ है अंगूठी पहने हुए रक्षासूत्र. विशाखदत्त के पिता और दादा के चरित्रों के अनुसार उन्होंने संकेत दिया कि वह विशाखदत्त एक राजसी परिवार से हैं. संभवतः उनका परिवार राजनीतिक प्रशासन में राजाओं या स्थानीय स्तर की अदालत में शामिल था.
दरअसल वे संस्कृत भाषा के इतने बड़े विद्वान नहीं थे. विशाखदत्त के पास उचित साहित्यिक शिक्षा और व्याकरण नहीं था. उन्होंने सामान्य रूप में वाक्यों का उपयोग किया, लेकिन पाठकों और दर्शकों को पात्रों के बीच उत्साही बातचीत के कारण सफलता मिली. यह कवि सामाजिक जीवन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए परंपराओं की खेती करने के लिए प्रख्यात था. उनसे पहले कालीदास और भवभूति संस्कृत साहित्य में अपनी सेवा के लिए प्रसिद्ध थे. दोनों ही उच्च कोटि की संस्कृत भाषा और नाटकों में घटनाओं का सुंदर वर्णन करते हैं. कालीदास की कृतियाँ उच्च संस्कृति पर आधारित थीं और भवभूति दार्शनिक युग में सफल रही. लेकिन विशाखदत्त के गद्य में पात्रों की बातचीत में कुछ कठोरता थी.
देवीचंद्रगुप्त (Devichadragupt)
उन्होंने देवीचंद्रगुप्त नाम से एक और नाटक किया, जो देवी और चंद्रगुप्त के बीच की कहानी है. बाद के वर्षों में कहानी का पुनर्निर्माण किया गया था, लेकिन विषय की अवधारणा समान थी. हम राजा भोज के रामचंद्र और गुणचंद्र के नाट्यदर्पण नामक दो कार्यों में देवीचंद्रगुप्त के अंश देख सकते हैं. विशाखदत्त की पुस्तक के उद्धरणों में से कुछ को राजा भोज द्वारा व्यापक रूप से समझाया गया है.
देवीचंदगुप्तम में कहानी की रेखा बहुत दिलचस्प है. एक बार शक शासक ने राजा रामगुप्त को धोखा दिया और अपमानजनक संधि के लिए मजबूर किया. संधि के कारण रामगुप्त ने अपने ध्रुवदेवी को शक शासक के पास भेजा. फिर कहानी का मुख्य नायक चंद्रगुप्त, रामगुप्त का छोटा भाई कहानी में प्रवेश करता है और अपमान के लिए अपने ही भाई रामगुप्त को मार डालता है. फिर उसने गुप्त साम्राज्य के सिहांसन पर राज करता हैं और रामगुप्त की पत्नी ध्रुवदेवी से विवाह करता हैं.
आधुनिक काल में अंग्रेजी लेखक माइकल कॉल्सन ने ‘मुद्राराक्षस’ का अंग्रेजी में ‘Rakshasa’s Ring’ शीर्षक के तहत अनुवाद किया हैं.
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