मशहूर हिंदी लेखक यशपाल की जीवनी | Yashpal Biography, Family, Children, Wikipedia, Education in Hindi
यशपाल भारत के प्रख्यात लेखक हैं, वह कथाकार तथा निबंध लेखक के रूप में जाने जाते है. यशपाल ने राजनितिक तथा साहित्यिक क्षेत्रों में अपना योगदान दिया है. इन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन् 1970 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था.
प्रारम्भिक जीवन
यशपाल का जन्म 3 दिसम्बर 1903 को पंजाब में, फ़ीरोज़पुर छावनी में एक खत्री परिवार में हुआ था. यशपाल के पिता का नाम हीरालाल था, जो एक साधारण कारोबारी व्यक्ति थे. उनकी माता श्रीमती प्रेमदेवी अनाथालय के एक पाठशाला में अध्यापिका थी. उनके पिताजी की गांव में छोटीसी दूकान थी, और लोग उनके पिताजी को ‘लाला’ करके पुकारते थे. अपने परिवार के प्रति उनके पिताजी का ध्यान नहीं था. इस कारण उनकी माता अपने दो बेटों यशपाल और धर्मपाल को लेकर फ़िरोज़पुर छावनी में रहने लगी. वही आर्य समाज की एक स्कूल में पढ़ाते हुए वह अपने बच्चों को संभाल रही थी.
उनके परिवेश में उनके माता की अहम भूमिका थी. यशपाल अपनी माता का खुब आदर-सम्मान करते थे. अपने बचपन में यशपाल ने अंग्रेज़ों के आतंक और विचित्र व्यवहार की अनेक कहानियाँ सुनी थीं. इस उम्र से ही उनके मन में अंग्रेज़ो के प्रति द्वेष निर्माण हो रहा था, परिणामतः भविष्य में उनकी भावनाएँ क्रांतिकारी के रूप में उभरकर आयी. उन्होंने लिखा है, “मैंने अंग्रेज़ों को सड़क पर सर्व साधारण जनता से सलामी लेते देखा है. हिन्दुस्तानियों को उनके सामने गिड़गिड़ाते देखा है, इससे अपना अपमान अनुमान किया है और उसके प्रति विरोध अनुभव किया”.
जीवन सफ़र
यशपाल ने अपने बचपन में जो भी देखा वह अंग्रेज़ो के प्रति क्रोध पैदा करने वाला था. यशपाल के अनुसार, भारतीय अंग्रेज़ो से इस प्रकार डरते थे, जैसे बकरियों के झुंड को बाघ देख लेने से भय लगता होगा अर्थात् अंग्रेज़ कुछ भी कर सकता था. उससे डरकर रोने और चीख़ने के सिवाय दूसरा कोई उपाय नहीं था. इन घटनाओं का यशपाल जी के दिल और दिमाग पर गहरा असर हुआ.
लाहौर के नेशनल कॉलेज में पढाई के दौरान इनकी मुलाक़ात भगतसिंह और सुखदेव से हुई. उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज से बीए किया तथा नाटककार उदयशंकर से उन्हें लेखन की प्रेरणा मिली. देशभक्त क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद, सुखदेव से प्रेरित होकर इन्होने क्रन्तिकारी गतिविधियों में भाग लिया. चंद्रशेखर आज़ाद के शहीद हो जाने पर वे हिन्दुस्तानी समाजवादी के प्रजातंत्र के कमांडर नियुक्त हुए. इस समय दिल्ली और लाहौर में मुक़दमे चल रहे थे. यशपाल इन मुकदमो के प्रधान थे. इस दौरान वे पुलिस द्वारा पकडे गए और इन्हे गिरफ्तार किया गया था. वे चौदाह साल जेल में रहे. 1938 में इन्हे मुक्त किया गया.
रचनाएँ
यशपाल जी को बचपन से ही लिखने में शौक था. लेकिन, युवाकाल में उनके क्रांतिकारी विचारों ने उनकी लेखन कला में राष्ट्रभाव, देशप्रेम का बीजारोपण किया. जेल से मुक्ति मिलने पर इन्होने ‘विप्लव’ नामक मासिक की शुरुआत की, जो थोड़ी ही कालावधि में लोकप्रिय हुई. 1940 से 1976 के काल में उनके कूल 16 कहानी संग्रह प्रकाशित हुए. 17 वाँ संग्रह मृत्युप्रान्त प्रकाश में आया.
यशपाल जी की प्रकाशित कृतियाँ कुछ इस प्रकार –
उपन्यास
- दिव्या
- देशद्रोही
- झूठा सच
- दादा कामरेड
- अमिता
- मनुष्य के रूप
- तेरी मेरी उसकी बात
- कहानी संग्रह
कहानी संग्रह
- पिंजरे की उड़ान (1939)
- फूलो का कुर्ता (1949)
- धर्मयुद्ध (1950)
- सच बोलने की भूल (1962)
- भस्मावृत चिंगारी (1946)
- उत्तनी की मां (1955)
- चित्र का शीर्षक (1951)
- तुमने क्यों कहा था मै सुंदर हूं (1954)
- ज्ञान दान (1943)
- वो दुनिया (1948)
- खच्चर और आदमी (1965)
- भूख के तीन दिन (1968)
- उत्तराधिकारी (1951)
- अभिशिप्त (1943)
व्यंग्य संग्रह
- चक्कर क्लब
- कुत्ते की पूंछ
सन्मान एवं पुरस्कार
- ‘देव पुरस्कार’ (1955)
- ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ (1970)
- ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक’ (1971)
- ‘पद्म भूषण’
- साहित्य अकादमी पुरस्कार