बाल गंगाधर तिलक के जीवन से जुडी हुई रोमांचक शिक्षाप्रद कहानियाँ | Bal Gangadhar Tilak Inspirational Stories for Children in Hindi
बाल गंगाधर तिलक जो हमारे देश के पहले ऐसे स्वतंत्रता सेनानी रहे, जिन्होंने ‘पूर्ण स्वराज’ की मांग की और अंग्रेजों के मन में इतना खौफ पैदा कर दिया था की उनकी हुकूमत की जड़ें हिल गई थी. इस महान स्वतंत्रता सेनानी को कौन नहीं जनता. तिलक का भारत की आज़ादी में सबसे बड़ा योगदान है. बालगंगाधर तिलक ने लोगों में एकता बनाए रखने के लिए महाराष्ट्र में गणेश उत्सव का प्रारम्भ किया. आजादी के दौर में ये तीन स्वतंत्रता सेनानी काफी चर्चित थे बालगंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय. इन तीनों को लोग ‘लाल-बाल-पाल’ के नाम से भी पुकारते थे.
तो आइये जानते है इस महान व्यक्ति से जुड़ी हुई कुछ कहानियाँ, जो आपको ज़रुर प्रेरित करेंगी.
बाल गंगाधर तिलक की कहानियां (Stories of Bal Gangadhar Tilak)
कहानी 1. मिठाई का टुकड़ा
एक समय की बात है तिलक की माँ ने बड़े प्यार से कहा – ”बेटा, ले ये दो टुकड़े मिठाई के हैं. इनमें से यह बड़ा टुकड़ा तू स्वयं खा लेना और छोटा टुकड़ा अपने दोस्त को दे देना. तिलक वह दोनों टुकड़े लेकर बाहर आ गए.
उन्होंने अपने दोस्त को मिठाई का बड़ा टुकड़ा देकर छोटा स्वयं खाने लगे.माँ यह सब देख रही थी. उन्होंने अपने पुत्र को अन्दर बुलाया और बोली- ”मैंने तुमसे बड़ा टुकड़ा खुद खाने और छोटा उस बच्चे को देने के लिए कहा था, किन्तु तूने छोटा स्वयं खाकर बड़ा उसे क्यों दिया ?
”वह बोले – ”माँ ! दूसरों को अधिक देने और अपने लिए कम-से-कम लेने में मुझे अधिक आनन्द आता है.”
तो यह थी बाल गंगाधर से जुडी हुई एक घटना. इस एक छोटे से वाक्य में उन्होंने बहुत कुछ कह दिया. जिसे सुनकर उनकी माँ भी हैरान रह गई. सत्य यही है कि यदि मनुष्य अपने लिए कम चाहे और दूसरों को अधिक देने का प्रयत्न करेगा तो समस्त संघर्षों की समाप्ति हो जाएगी और स्नेह, सौजन्य की परिस्थितियां अपने आप ही उत्पन्न हो सकती है.
कहानी 2. तिलक का साहस
बाल गंगाधर तिलक से जुडी हुई एक घटना है. जो की तिलक के स्कूली जीवन की है. एक समय था जब तिलक अपने स्कूल में थे,उनकी कक्षा के सारे बच्चे कक्षा में बैठकर मूंगफली खा रहे थे. जब सब मूंगफली खा रहे थे तो उसके छिलके कक्षा में ही फेंक रहे थे. जिससे पूरी कक्षा में गंदगी फ़ैल गई.
कुछ समय बाद उनके शिक्षक कक्षा में आए, उन्होंने देखा चारो तरफ गंदगी फैली हुई है. वह यह देखकर बहुत नाराज हो गए. उन्होंने सभी को चिल्लाया और अपनी छड़ी निकाल कर सभी बच्चो को लाइन से हथेली पर 2-2 बार मारने लगे.
अब जब तिलक की बारी आई तो तिलक ने छड़ी खाने के लिए अपना हाथ आगे नहीं किया.उनके शिक्षक ने कहा- “अपना हाथ आगे बढ़ाओ”, तब उन्होंने कहा- “मैंने कक्षा को गंदा नहीं किया है इसलिए मैं मार नहीं खाऊंगा”
यह बात सुनते ही शिक्षक का गुस्सा और बढ़ गया. फिर शिक्षक ने उनकी शिकायत जाकर प्राचार्य से की. इसके बाद क्या होना था तिलक के घर पर उनकी शिकायत की गई और उनके पिताजी को स्कूल बुलाया गया.
जब उनके पिता स्कूल आए तो उन्होंने कहा- “मेरे बेटे के पास पैसे ही नहीं थे, वो मूंगफली किसी भी हालत में नहीं खरीद सकता.”
तो यह घटना थी उनकी साहस की. उस दिन अगर वह शिक्षक के डर से मार खा लेते तो उनके अंदर का साहस बचपन में ही ख़त्म हो जाता. उसके बाद बाल गंगाधर तिलक अपने जीवन में कभी भी अन्याय के सामने नहीं झुके.
इस बहुत छोटी सी घटना से हम सभी को एक सबक मिलता है. यदि गलती न हो तो उसे कभी स्वीकार न करे. जब हम उसे स्वीकार कर लेंते है तो यह माना जाता है कि उस गलती में हम भी शामिल थे. इसलिए कभी भी अन्याय के सामने ना झुके.
कहानी 3. ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’ का नारा
बालगंगाधर तिलक का अपना एक अखबार था जिसका नाम था केसरी. उन पर आरोप था अखबार केसरी में दो क्रांतिकारियों का बचाव करने और स्वराज का आह्वाहन करने. इस कारण से उन्हें देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. जिसमे उन्हें 6 साल के लिए जेल भेज दिया गया और साथ ही एक हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया. जेल में रहकर उन्होंने 400 पन्नों की किताब गीता रहस्य भी लिख डाली और राष्ट्रवादी आंदोलन के लिए कई विचार बनाए.
इसके बाद जब उनकी सजा खत्म हुई और वह रिहा हुए तो उन्होंने होम रूल लीग की शुरुआत की और नारा दिया ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा.’ तो इस तरह से इस नारे की शुरुआत हुई.
कहानी 4. चौपड का खेल
एक समय की बात है. बाल जब छोटे थे. एक दिन उनका मन चौपड़ खेलने को हुआ, लेकिन उनके साथ खेलने के लिये कोई दूसरा दोस्त नहीं था. तो उन्होंने निर्णय लिया की क्यों न में इन खम्भें को अपना दूसरा दोस्त बना लू. तो इस तरह उन्होंने खम्बे को अपना दोस्त बना लिया. तो वह अपने सीधे हाथ से खम्भें के लिए पासों को ड़ालते और उलटे हाथ से अपने आप के लिए पासों को फेंककर खेलने लगे. इस तरह जब वह खेलते हुए दो बार हार गये. उनकी दादी उन्हें दूर बैठकर देख रही थी. वह तिलक से हँसते हुये बोली- ‘अरे बेटे गंगाधर! तुम एक खम्भे से हार गये.’ दादी की बात सुनकर गंगाधर ने कहा, ”हार गया तो क्या हुआ, मेरा सीधा हाथ खंभे की तरफ था और मुझे सीधे हाथ से खेलने की ही आदत है. इसलिए खंभा जीत गया और मैं हार गया।”
कहानी 5. कठिन प्रश्न
लोकमान्य तिलक को बच्चा बच्चा जनता है, वे बचपन से ही बहुत साहसी, निडर और अच्छे व्यवहार वाले व्यक्ति थे. उनकी पढने में अधिक रूचि होने के कारण, उन्हें गणित और संस्कृत विषय सबसे अच्छे लगते थे.
एक समय की बात है जब तिलक अपने स्कूल में थे.तो जब उनकी परीक्षाएं होतीं, तो वह जो कठिन सवाल होते है, उनको हल करना ही पसंद करते थे.
तब उनके ऐसा करने पर एक मित्र ने उनसे कहा- “तुम हमेशा कठिन सवालों को ही क्यों हल करते हो?” तुम पागल हो, अगर तुम सरल सवालों को हल करोगे तो तुम्हें परीक्षा में ज्यादा नंबर मिलेंगे. इस पर तिलक ने कहा- “मैं ज्यादा-से-ज्यादा सीखना चाहता हूँ, और जब में कठिन चीजों को नहीं अपनाऊंगा तब तक में कुछ नया कैसे सीखूंगा, इसलिए मैं कठिन सवालों को ज्यादा हल करता हूँ.”
इस छोटी सी बात में बहुत बड़ी सीख थी अगर हम हमेशा ऐसे काम ही करेंगे, जो हमें सरल लगते हैं और हमे पहले से आते है. तो हम कभी भी कुछ नया नहीं सीख पायेंगे. इसलिए जो हमे नहीं आता उसे सीखते जाए और आगे बढ़ते जाए. यही बात हमारी जिंदगी पर भी लागू होती है, अगर हम हमेशा आसान विषय, साधारण काम ही करते रहेंगे तो कभी आगे नहीं बढ़ पाएंगे.
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