दहेज़ समस्या की शुरुआत, मतलब, कारण और रोकने के उपाय | Dowry System Start, Meaning, Cause and Solution of this Problem in Hindi
दहेज़ प्रथा वर्तमान समाज का कलंक बन गई हैं. यह दहेज प्रथा ही है, जिसके कारण माता पिता को अपनी पुत्री भार स्वरूप प्रतीत होती है तथा पुत्र खुशियों का खजाना लगता है. पुत्री के जन्म से ही माता पिता के मन में अनेक चिंताएं जन्म लेने लगती है. उनके मन में तर्क वितर्क आरंभ हो जाता है कि इसके लिए योग्य वर मिलेगा या नहीं. ससुराल में सुखी रहेगी या दुखी रहेगी. साथ ही जब दहेज का दानव खड़ा हो तो यह चिंता और विकराल रूप धारण कर लेती है. भारतीय समाज का यह कलंक निरंतर विकृत रूप धारण करता जा रहा है. समय रहते इस रोग का उपचार और निदान आवश्यक है, अन्यथा समाज के नैतिक मान्यता नष्ट हो जाएगी और मानव मूल्य समाप्त हो जाएंगे.
दहेज बुरा रिवाज है, बेहद बुरा. बस चले तो दहेज लेने वाले और देने वालों को भी गोली मार देना चाहिए, फिर चाहे फांसी ही क्यों ना हो जाए. पूछो, आप लड़के का विवाह करते हैं कि उसे बेचते हैं.
दहेज प्रथा का आरंभ (Dowry System Starting)
महर्षि मनु ने मनुस्मृति में अनेक विवाहों का उल्लेख किया है. ब्रह्मा विवाह के अंतर्गत कन्या को वस्त्र और आभूषण देने की बात कही गई है. कन्या के माता पिता अपनी सामर्थ्य के अनुसार वस्त्र और अलंकार दिया करते थे, किंतु उसमें बड़ी मात्रा में दिए जाने वाले दहेज का उल्लेख नहीं है.
दहेज का अर्थ (Dowry Meaning)
दहेज का तात्पर्य उन संपत्ति और वस्तुओं से है जिन्हें विवाह के समय वधू पक्ष की ओर से वर पक्ष को दिया जाता है. मूल रूप से इसमें स्वेच्छा की भावना निहित है. किंतु आज दहेज का अर्थ बिलकुल अलग हो गया है, अब तो इसका अर्थ उस संपत्ति अथवा मूल्यवान वस्तुओं से है जिन्हें विवाह के दौरान कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को विवाह से पूर्व अथवा बाद में देना पड़ता है. वास्तव में इसे दहेज की अपेक्षा वर मूल्य कहना अधिक उपयुक्त होगा.
दहेज प्रथा के विस्तार के कारण (Dowry System Causes)
दहेज प्रथा के विस्तार के प्रमुख कारण निम्न है
धन के प्रति अधिक आकर्षण
वर्तमान युग भौतिकवादी युग है. समाज में धन का महत्व बढ़ता जा रहा है. धन सामाजिक प्रतिष्ठा और पारिवारिक प्रतिष्ठा का आधार बन गया है. मनुष्य येन केन प्रकारेण धन के संग्रह में लगा हुआ है. वर पक्ष ऐसे परिवार में ही संबंध स्थापित करना चाहता है जो धनी हो तथा अधिक से अधिक धन दहेज के रूप में दे सके.
जीवनसाथी चुनने का सीमित क्षेत्र
भारतीय समाज अनेक जातियों तथा उच्च जातियों में विभाजित है. सामान्यतः प्रत्येक माता पिता अपनी पुत्री का विवाह अपनी ही जाति या उससे उच्च जाति के लड़के के साथ करना चाहते हैं. इन परिस्थितियों में उपयुक्त वर मिलने में कठिनाई होती है. इसी कारण वर पक्ष की ओर से दहेज की मांग होती है.
बाल विवाह
बाल विवाह के कारण लड़की को अपना जीवन साथी चुनने का अवसर नहीं मिलता. विवाह संबंध का पूर्ण अधिकार माता पिता के हाथ में रहता है. ऐसी स्थिति में लड़के के माता पिता अपने पुत्र के लिए अधिक दहेज की मांग करते हैं.
शिक्षा और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा
वर्तमान युग में शिक्षा बहुत महंगी है. इसके लिए पिता को कभी कभी अपने पुत्र की शिक्षा पर अपने सामर्थ्य से अधिक धन खर्च करना पड़ता है. धन की पूर्ति वह पुत्र के विवाह के अवसर पर दहेज प्राप्त करके करना चाहता है.
दहेज प्रथा से हानियां (Problems of Dowry System)
दहेज प्रथा ने ना हमारे समाज को पथभ्रष्ट और स्वार्थी बना दिया है. समाज में फैला यह लोभ इस तरह जड़ जमा चुका है कि कन्या के माता पिता के रूप में जो लोग दहेज की बुराई करते हैं वही अपने पुत्र के विवाह के अवसर पर मनचाहा दहेज मांगते हैं. इससे समाज में अनेक युक्तियां उत्पन्न हो गई है तथा अनेक नवीन समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है जैसे-
बेमेल विवाह
दहेज प्रथा के कारण निर्धन माता पिता अपनी पुत्री के लिए उपयुक्त वर प्राप्त नहीं कर पाते और मजबूरी में उन्हें अपनी पुत्री का विवाह अयोग्य लड़के से करना पड़ता है. दहेज देने में असमर्थ माता पिता को अपनी कम उम्र की लड़कियों का विवाह अधिक उम्र के पुरुषों से करना पड़ता है.
ऋण ग्रस्तता
दहेज प्रथा के कारण वर पक्ष की मांग पूरी करने के लिए कई बार पिता को ऋण भी लेना पड़ता है. वह सदैव ऋण की चक्की में पिसता रहता है.
कन्याओं का दुखद वैवाहिक जीवन
वर पक्ष की मांग के अनुसार दहेज ना देने अथवा उसमें किसी प्रकार की कमी रह जाने के कारण नववधू को ससुराल में अपमानित होना पड़ता है.
आत्महत्या
दहेज के अभाव में उपयुक्त वर ना मिल पाने के कारण अपने माता पिता को चिंता मुक्त करने हेतु अनेक लड़कियां आत्महत्या भी कर लेती हैं. कभी-कभी ससुराल के लोगों के ताने सुनने और अपमानित होने पर विवाहित स्त्रियां भी अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए आत्महत्या कर लेती है.
अविवाहिताओं की संख्या में वृद्धि
दहेज प्रथा के कारण निर्धन परिवारों की लड़कियों को उपयुक्त वर नहीं मिल पाते. आर्थिक दृष्टि से दुर्बल परिवारों की जागरूक युवतियां गुणहीन तथा निम्न स्तरीय युवकों से विवाह करने की अपेक्षा अविवाहित रहना उचित समझती हैं. जिससे अनैतिक संबंधों और यौन कुंठाओ जैसी सामाजिक विकृतियों को बढ़ावा मिलता हैं.
दहेज़ समस्या का समाधान (Dowry System Solution)
दहेज प्रथा समाज के लिए निश्चित ही एक अभिशाप है. कानून और समाज सुधारक दोनों ने मुक्ति के अनेक उपाय सुझाए हैं. प्रमुख उपाय निम्न है.
कानून द्वारा प्रतिबंध
अनेक लोगों का विचार था कि दहेज के लेनदेन पर कानून द्वारा प्रतिबंध लगा दिया जाए. इसलिए 9 मई 1961 को भारतीय संसद में दहेज निरोधक अधिनियम स्वीकार कर लिया गया. विवाह तय करते समय किसी भी प्रकार की शर्त लगाना कानूनी अपराध होगा, जिसके लिए उत्तरदाई व्यक्ति को 6 माह का कारावास तथा ₹5000 तक का आर्थिक दंड दिया जा सकता है.
अंतर जाति विवाह को प्रोत्साहन
अंतर जाति विवाह को प्रोत्साहन देने से वर का चुनाव करने के क्षेत्र में दहेज की मांग अधिकतर युवकों की ओर से ना होकर उनके माता-पिता की ओर से होती है. स्वावलंबी युवकों पर माता-पिता का दबाव कम होने पर दहेज के लेन-देन में स्वतः कमी आ जाएगी.
लड़कियों की शिक्षा
जब युवतियां भी शिक्षित होकर स्वावलंबी बनेगी तो स्वयं नौकरी करके अपना जीवन निर्वाह करने में समर्थ हो सकेगी. दहेज की अपेक्षा आजीवन उनके द्वारा कमाया गया धन कहीं अधिक होगा. इस प्रकार की व्यवस्था से विवाह एक व्यवस्था के रूप में ना होगा, जिसका वर पक्ष प्रायः अनुचित लाभ उठाता है.
जीवनसाथी चुनने का अधिकार
प्रबुद्ध युवक-युवतियों को अपना जीवनसाथी चुनने के लिए अधिक छूट मिलनी चाहिए. शिक्षा के प्रसार के साथ साथ युवक युवतियों में इस प्रकार के विचार एक परिवर्तन संभव है जिससे विवाह से पूर्व उन्हें एक दूसरे के विचारों से अवगत होने का पूर्ण अवसर प्राप्त हो सकेगा.
दहेज प्रथा एक सामाजिक बुराई है, एक कलंक है, हमारे समाज का कोढ हैं. इसके विरुद्ध स्वयं जनमत का निर्माण होना चाहिए. जब तक समाज में चेतना नहीं आएगी दहेज के दैत्य से मुक्ति पाना असंभव है. राजनेताओं, समाज सुधारकों तथा शिक्षित युवक-युवतियों आदि सभी के सहयोग से दहेज प्रथा का अंत हो सकता है.
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