भारतीय समाज में नारियों (महिलाओं) की स्थिति और सशक्तिकरण पर निबंध | Essay on women in Indian society in Hindi | Bhartiya Nari Par Nibandh
प्रस्तावना
मानव जीवन का रथ एक पहिए से नहीं चल सकता. उसकी समुचित गति के लिए दोनों पहिए होने चाहिए. गृहस्थी की गाड़ी नर और नारी के सहयोग व सद्भावना से प्रगति पथ पर अविराम गति से बढ़ सकती है. स्त्री केवल पत्नी ही नहीं अपितु योग्य मित्र, परामर्श दात्री, सहायिका, माता के समान उस पर सर्वस्व न्योछावर करने वाली तथा सेविका की तरह सच्ची सेवा करने वाली है. गृहस्ती का कोई भी कार्य उसकी सम्मति बिना नहीं हो सकता, किंतु भारतीय समाज में नारी की स्थिति सदैव एक समान न रहकर बड़े उतार-चढ़ाव से गुजरी है.
भारतीय नारी का अतीत
प्राचीन काल में स्त्रियों का आदर और सम्मान से देखा जाता था. लोगों की मान्यता थी कि जिस घर में स्त्रियों का सम्मान होता है वह घर सुखी तथा स्वर्ग बन जाता है. इसीलिए कहा गया है “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता”. भारत का इतिहास पृष्ठ नारी की गौरव गरिमा से मंडित है. देवासुर संग्राम में एक ही ने अपने अद्वितीय कौशल से महाराज दशरथ को आश्चर्यचकित कर दिया था. रामचंद्र जी ने सीता वनवास के समय अश्वमेध यज्ञ किया तो सीता की स्वर्ण प्रतिमा रखकर यज्ञ की पूर्ति की. द्रोपदी वनवास काल में तथा युद्ध में अपने पति पांडवों को योग्यता तथा विवेक बुद्धि से सत परामर्श देकर प्रेरित करती रही. प्राचीन काल में स्त्रियों को अपना वर चुनने का अधिकार था. शकुंतला, सीता, अनुसूया, दमयंती और सावित्री आज इस तरह से जगत प्रसिद्ध उदाहरण है.
वेद तथा उपनिषद काल में नारी को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त थी. उन्हें समाज में सभी सामाजिक अधिकार प्राप्त हैं. महिलाएं विद्वत्सभाओं में शास्त्रार्थ करती थी. याज्ञवल्क्य और गार्गी का शास्त्रार्थ प्रसिद्ध हैं. मैत्रेयी विख्यात ब्रह्मवादिनी थी. मंडन मिश्र की पत्नी भारत में अपने काल की विख्यात विदुषी महिला थी. जिन्होंने शंकराचार्य से शास्त्रार्थ किया था. प्राचीन समय में महिलाएँ अपने पति के साथ युद्ध के क्षेत्र में भी जाती थी.
मध्यकाल में भारतीय नारी
मध्यकाल में स्त्रियों को हेय दृष्टि से देखा जाता था. मुगलों के आक्रमण से सनातन हिंदू समाज का ढांचा चरमरा गया था. वे परतंत्र होकर मुगल शासकों का अनुकरण करने लगे थे. मुगलों और विदेशी आक्रांताओं के लिए नारी भोग विलास तथा वासना पूर्ति मात्र की वस्तु थी. इसी कारण नारी का कार्यक्षेत्र घर की चार दीवारी में सिमट कर रह गया था. जिससे समाज में अशिक्षा, बाल-विवाह तथा सती प्रथा, पर्दा प्रथा का प्रचलन बढ़ा. इस प्रकार नारिया मात्र दासिया और भोगिया बन कर रह गई. गोस्वामी तुलसीदास ने इस स्थिति का उल्लेख करते हुए कहा हैं कि
पराधीन सपनेहुँ सुख नाही.
वह अविद्या तथा अज्ञान के गहन गर्त में डूब गई थी.
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी,
आँचल में हैं दूध और आँखों में पानी.
आधुनिक युग में नारी
धीरे-धीरे महान विचारकों और समाज सुधारकों ने नारी की स्थिति पर ध्यान दिया. राजा राममोहन राय ने ‘सती प्रथा’ का अंत कराया. महर्षि दयानंद ने महिलाओं को समान अधिकार दिए जाने की आवाज उठाई. गांधीजी ने जीवन भर महिला उत्थान का कार्य किया. स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद नारी वर्ग में चेतना का विशेष विकास हुआ. स्त्रियां समाज में पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर साथ चलने को तैयार हुई. भारतीय संविधान में भी यह घोषणा की गई कि राज्य, धर्म, जाति, संप्रदाय, लिंग आदि के आधार पर किसी भी नागरिक में विभेद नहीं होगा.
आज नारियां विदेशों में राजदूत, प्रदेशों की राज्यपाल, सांसद, विधायक तथा केंद्र में मंत्री आदि पदों पर आसीन है. आज भारतीय नारी जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं. चिकित्सा, मनोविज्ञान, कानून, फिल्म निर्माण, पायलट, खेल का मैदान आदि क्षेत्रों में महिलाएं पुरुषों से पीछे नहीं है. ये ललित कलाओं जैसे संगीत, नृत्य, चित्रकला और फोटोग्राफी में भी विशेष दक्षता प्राप्त कर रही है. वाणिज्य तथा विज्ञान के क्षेत्र में भी महिलाएं उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं. स्त्रियों की सामाजिक चेतना जाग उठी है. अब समाज की दुर्दशा के प्रति सजग व सावधान है. वह समाज सुधार के कार्यक्रम में भी सम्मिलित होती हैं.
पाश्चात्य प्रभाव
आज-कल स्त्रियां पाश्चात्य भौतिकवादी सभ्यता से अधिक प्रभावित हैं. वे फैशन और आडंबर को जीवन का सार समझ कर भविष्य की ओर अग्रसर हो रही है. वे सादगी से विमुख होकर अनैतिकता की ओर उन्मुख हो रही है. इस प्रकार वह स्वयं गुड़िया बनकर पुरुषों के हाथों में खेल रही है. भलाई है कि इससे स्थिति मध्यकालीन हीनअवस्था जैसे ही न हो जाये. इसी बात को लक्ष्य कर कवि सुमित्रानंदन पंत ने चेतावनी भरे स्वरों में कहते हैं-
आधुनिक कुछ नहीं अगर हो, तो केवल नारी.”
उपसंहार
नारी को अपने गौरवपूर्ण अतीत को ध्यान में रखकर त्याग, समर्पण, स्नेह, सरलता आदि गुणों को नहीं भूलना चाहिए. यूरोपीय संस्कृति के व्याहमोह में न फंस कर भारतीयता को बनाए रखना चाहिए. इससे समाज का और उनका दोनों का हित हो सकेगा. नारी के इस चिरकल्याणमय रूप को लक्ष्य कर कवि जयशंकर प्रसाद ने नारी का अत्यंत सजीव चित्रण किया है-
पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में.”
भारतीय नारी का महत्व एवं पत्नीत्व अत्यंत गौरवपूर्ण तथा महान रहा हैं. आशा हैं भारतीय नारी का यह महामंडित गौरव सदा बना रहेगा तथा विश्व में भारतीय नारियों को सम्मानजनक दृष्टी से देखा जाएगा.
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