गुरु पूर्णिमा पर अपने गुरु की महिमा को संबोधित करती 10 अनमोल कविता | Best 10 Poem on Guru Purnima in Hindi | Guru Purnima Par Kavita 2019
गुरु की महिमा सभी बहुत अच्छे से जानते है. हर कोई गुरु के महत्व और उसकी महिमा से परिचित है. गुरु पूर्णिमा ख़ास ऐसा दिन है जिसमे बच्चों से लेकर बड़ों तक गुरु के महत्व के बारे में जानकारी दी जाती है. गुरु पूर्णिमा एक बहुत ख़ास अवसर है, क्योंकि एक गुरु ही है जो पूरे समाज की नीव होता है. तो आइए हम इस लेख में आपको बताते है गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गुरु से जुड़ी हुई कुछ कविताएं –
गुरु पूर्णिमा पर कविता (Poem on Guru Purnima)
Poem 1.
गुरु बिना ज्ञान कहां,
उसके ज्ञान का आदि न अंत यहां।
गुरु ने दी शिक्षा जहां,
उठी शिष्टाचार की मूरत वहां।
अपने संसार से तुम्हारा परिचय कराया,
उसने तुम्हें भले-बुरे का आभास कराया।
अथाह संसार में तुम्हें अस्तित्व दिलाया,
दोष निकालकर सुदृढ़ व्यक्तित्व बनाया।
अपनी शिक्षा के तेज से,
तुम्हें आभा मंडित कर दिया।
अपने ज्ञान के वेग से,
तुम्हारे उपवन को पुष्पित कर दिया।
जिसने बनाया तुम्हें ईश्वर,
गुरु का करो सदा आदर।
जिसमें स्वयं है परमेश्वर,
उस गुरु को मेरा प्रणाम सादर।
-अंशुमन दुबे
Poem 2.
माँ पहली गुरु है और सभी बड़े बुजुर्गों ने
कितना कुछ हमे सिखाया हैं
गुरु पूजनीय हैं
बढ़कर है गोविंद से
कबीर जी ने भी हमे सिखाया हैं
पशु पक्षी फूल काटे नदियाँ
हर कोई हमे सिखा रहा हैं
भारतीय संस्कृति का कण कण
युगों युगों से गुरु पूर्णिमा की
महिमा गा रहा हैं…
-अज्ञात
Poem 3.
जानवर इंसान में जो भेद बताए,
वही सच्चा गुरु कहलाए..
जीवन पथ पर जो चलना सिखाए,
वही सच्चा गुरु कहलाए..
जो धेर्यता का पाठ पढाए,
वही सच्चा गुरु कहलाए..
संकट में जो हँसना सिखाए,
वही सच्चा गुरु कहलाए..
पग-पग पर परछाई सा साथ निभाए,
वही सच्चा गुरु कहलाए..
जिसे देख आदर से सर झुक जाए,
वही सच्चा गुरु कहलाए..
-अज्ञात
Guru Purnima Kavita
Poem 4.
परम गुरु
दो तो ऐसी विनम्रता दो
कि अंतहीन सहानुभूति की वाणी बोल सकूँ
और यह अंतहीन सहानुभूति
पाखंड न लगे……….
दो तो ऐसा कलेजा दो
कि अपमान, महत्वाकांक्षा और भूख
की गाँठों में मरोड़े हुए
उन लोगों का माथा सहला सकूँ
और इसका डर न लगे
कि कोई हाथ ही काट खाएगा……….
दो तो ऐसी निरीहता दो
कि इसे दहाड़ते आतंक क बीच
फटकार कर सच बोल सकूँ
और इसकी चिन्ता न हो
कि इसे बहुमुखी युद्ध में
मेरे सच का इस्तेमाल
कौन अपने पक्ष में करेगा……….
यह भी न दो
तो इतना ही दो
कि बिना मरे चुप रह सकूँ……….
-विजयदेव नारायण साही
Guru Purnima Long Message
Poem 5.
मां तुम प्रथम बनी गुरु मेरी
तुम बिन जीवन ही क्या होता
सूखा मरुथल, रात घनेरी
प्रथम निवाला हाथ तुम्हारे
पहली निंदिया छाँव तुम्हारे
पहला पग भी उंगली थामे
चला भूमि पर उसी सहारे
बिन मां के है सब जग सूना
जैसे गुरु बिन राह अंधेरी
जिह्वा पर भी प्रथम मंत्र का
उच्चारण तो मां ही होता
शिशु हो, युवा, वृद्ध हो चाहे
दुख में मां की सिसकी रोता
द्वार बंद हो जाएँ सारे
माँ के द्वार न होती देरी
मां की पूजा विधि विधान क्या
फूल न चंदन, मंत्र सरल सा
प्रेम पुष्प अँजुरी में भर कर
गुरु के चरणों अर्पित कर जा
आशीषों की वर्षा ऐसी
बजे गगन में मंगल भेरी
मां तुम प्रथम बनी गुरु मेरी
-मानोशी
Poem 6.
जीवन के घोर अंधेरो में,
प्रकाश जो बन कर आता है..
हर लेता है वो दुःख सारे,
खुशियों की फसल उगाता है..
न कोई लालच करता है,
सच्चाई का सबक सिखाता है..
सागर से ज्ञान सा भरा हुआ,
बस वही गुरु कहलाता है….
परेशानियाँ पस्त करे जब
हिम्मत हम हारते जाए,
धूमिल सी हो परीस्थितीया
हालात हमे जब भटकाए,
नई राह एक दिखा कर हमको
सभी संशय जो मिटाता है,
सागर से ज्ञान सा भरा हुआ
बस वही गुरु कहलाता है…..
– अज्ञात
Poem 7.
शिष्य एक गुरु के हैं हम सब,
एक पाठ पढ़ने वाले।
एक फ़ौज के वीर सिपाही,
एक साथ बढ़ने वाले।
धनी निर्धनी ऊँच नीच का,
हममे कोई भेद नहीं।
एक साथ हम सदा रहे,
तो हो सकता कुछ खेद नहीं।
हर सहपाठी के दुःख को,
हम अपना ही दुःख जानेंगे।
हर सहपाठी को अपने से,
सदा अधिक प्रिय मानेंगे।
अगर एक पर पड़ी मुसीबत,
दे देंगे सब मिल कर जान।
सदा एक स्वर से सब भाई,
गायेंगे स्वदेश का गान।
-श्रीनाथ सिंह
Guru Purnima Shayari in Hindi
Poem 8.
शिक्षक हैं शिक्षा का सागर,
शिक्षक बांटे ज्ञान बराबर ,
शिक्षक मंदिर जैसी पूजा,
माता-पिता का नाम है दूजा,
प्यासे को जैसे मिलता पानी,
शिक्षक है वही जिंदगानी,
शिक्षक न देखे जात-पात,
शिक्षक न करता पक्ष-पात,
निर्धन हो या हो धनवान,
शिक्षक को सब एक समान !
– अज्ञात
Poem 9.
अज्ञानी को ज्ञान वो दे
एक अलग नई पहचान वो दे
जब लगने लगे सब थक से गए
नई ऊर्जा और नई जान वो दे
जब साथ वो रहता है अपने
बुरा वक़्त पलटता जाता है
सागर से ज्ञान सा भरा हुआ
बस वही गुरु कहलाता है…
शिष्य का नाम बढे जग में
उसका यही अरमान है
सबके हृदय में उसके लिए
इसलिए सम्मान है
कभी छोड़ न मझदार में वो
मरते दम तक साथ निभाता है
सागर से ज्ञान सा भरा हुआ
बस वही गुरु कहलाता है…
नहीं अहंकार में कभी रहे
हर बात सदा ही सत्य कहे
उसके पावन उपदेशो में
अनुभव की सदा तरंग बहे
कोई आम शख्सियत नहीं है वो
हर देश का भाग्य विधाता है
सागर से ज्ञान सा भरा हुआ
बस वही गुरु कहलाता है…
– अज्ञात
Poem 10.
आदर्शों की मिसाल बनकर
बाल जीवन संवारता शिक्षक,
सदाबहार फूल -सा खिलकर
महकता और महकाता शिक्षक,
नित नए प्रेरक आयाम लेकर
हर पल भव्य बनता शिक्षक,
संचित ज्ञान का धन हमें देकर
खुशियाँ खूब मनाता शिक्षक,
पाप व लालच से डरने की
धर्मीय सीख सिखाता शिक्षक,
देश के लिए मर मिटने की
बलिदानी राह दिखता शिक्षक,
प्रकाशपुंज का आधार बनकर
कराव्या अपना निभाता शिक्षक,
प्रेम सरिता की बनकर धारा
नैया पार लगता शिक्षक !
-अज्ञात
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