कवि प्रदीप का जीवन परिचय, गीत करियर, कहानियाँ, मृत्यु और सम्मान | Kavi Pradeep Biography, Song Career, Stories, Death and Achievements in Hindi
कवि प्रदीप भारत के ऊर्जावान कवि और गीतकार थे. कवि प्रदीप को उनके द्वारा लिखे गए गीत “मेरे वतन के लोगों” के लिए जाना जाता हैं यह गीत उन्होंने 1962 भारत-चीन युद्ध में शहीद हुए जवानों की श्रद्धांजलि में लिखा था. ऐ मेरे वतन के लोगो एक देशभक्ति से भरा हिंदी भाषा में लिखा हुआ गीत हैं. यह गीत भारतरत्न लता मंगेशकर द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री पं॰ जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस के अवसर पर रामलीला मैदान में गाया गया था. ऐसा कहा जाता हैं इस गीत को सुनने बाद जवाहर लाल नेहरू की आँखों से आंसू निकल आये थे. कवि प्रदीप ने अपने जीवन वर्ष में इस प्रकार के दर्जनों गीतों को स्वरबद्ध किया था. उनकी याद में उनके जन्म तारीख को कवि प्रदीप जयंती के रूप में मनाया जाता हैं.
बिंदु(Points) | जानकारी (Information) |
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नाम (Name) | कवि प्रदीप |
वास्तविक नाम (Real Name) | रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी |
जन्म (Birth) | 06 फ़रवरी 1915 |
जन्म स्थान (Birth Place) | उज्जैन, मध्यप्रदेश |
कार्यक्षेत्र (Profession) | गीतकार, स्वतंत्रता सेनानी |
पिता का नाम (Father Name) | नारायणजी द्विवेदी |
पत्नी का नाम(Wife Name) | सुभद्रा बेन |
मृत्यु (Death) | 11 सितम्बर 1998 |
मृत्यु कारण(Death Cause) | कैंसर |
मृत्यु स्थान(Death Place) | मुम्बई, महाराष्ट्र |
कवि प्रदीप का जन्म और प्रारंभिक जीवन (Kavi Pradeep Birth and Early Life)
कवि प्रदीप का जन्म मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन जिले में 06 फ़रवरी 1915 को हुआ था. उनका असल नाम रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी था. उनका जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. बचपन से ही उन्हें कविताये लिखने का शौक था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा (सातवीं तक) इंदौर के स्कूल “शिवाजी राव हाईस्कूल” से पूरी की. जिसके बाद वह इलाहाबाद चले गए जहाँ से उन्होंने अपनी आगे की शिक्षा दारागंज हाईस्कूल से संपन्न की. स्कूल की पढ़ाई हो जाने के पश्चात लखनऊ विश्वविद्यालय से अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की.
कवि प्रदीप का करियर (Kavi Pradeep Career)
स्नातक की पढ़ाई पूरी होने के बाद रामचंद्र द्विवेदी (कवि प्रदीप) शिक्षक बनाने का प्रयास करने लगे. किस्मत से उन्हें एक कवि सम्मेलन में बम्बई (अब मुंबई) जाने का मौका मिला. बम्बई आने पर उनकी बॉंबे टॉकीज़ में नौकरी करने वाले एक व्यक्ति से दोस्ती हो गयी. वह रामचंद्र द्विवेदी के कविता पाठन से बेहद प्रभावित हुआ था. जिसके बाद उसने रामचंद्र द्विवेदी की सिफारिश हिमांशु राय से की. हिमांशु राय ने उन्हें 200 रूपए महिना वेतन पर नौकरी पर रख लिया.
हिमांशु राय ने उन्हें एक बार कहा था कि उनका नाम रेलगाड़ी की तरह काफी लंबा लगता हैं उन्हें अपना नाम छोटा करना चाहिए. हिमांशु राय के कहने पर उन्होंने अपना नाम रामचंद्र द्विवेदी से प्रदीप रख लिया.
हिमांशु राय ने प्रदीप को अपने बैनर के तले बन रही फिल्म “कंगन” के गीत लिखने का काम सौंपा. कंगन प्रदीप की फिल्म जगत की पहली फिल्म थी. इस फिल्म में मुख्य अभिनेता अशोक कुमार और और अभिनेत्री देविका रानी थी. इस फिल्म को टिकट खिड़की पर सफलता हासिल हुई. इसके साथ ही उनका फ़िल्मी सफ़र भी चल पड़ा. जिसके बाद उन्होंने फिल्म ‘अंजान’, ‘किस्मत’, ‘झूला’, ‘नया संसार’ और ‘पुनर्मिलन’ के लिये भी गीत लिखे. प्रदीप एक अच्छे गीतकार होने के साथ साथ एक अच्छे गायक भी थे. उन्होंने अपने द्वारा लिखे कई गीतों को अपनी आवाज़ दी थी.
प्रदीप से कवि प्रदीप बनाने की रोचक कहानी (Story of Name change to Kavi Pradeep)
फिल्मों में नाम कमाने के साथ ही वह पूरे देश में मशहूर हो चुके थे. उस समय फिल्म जगत में प्रदीप कुमार नाम से अभिनेता भी थे. इस तरह फिल्म उद्योग में दो प्रदीप हो गए. एक ही नाम होने के कारण डाकिया चिट्टी गलत पते पर डाल दिया करता था. डाकिये की इस गलती से प्रदीप को काफी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ रहा था. डाकिया सही पते पर पत्र दे इसके लिए उन्होंने अपने नाम के आगे कवि लिखना शुरू कर दिया. जिसके बाद उन्हें इस बात से कभी दिक्कत नहीं हुई.
कवि प्रदीप का स्वतंत्रता में योगदान (Kavi Pradeep Role in Independence)
सन 1940 तक स्वतंत्रता का आन्दोलन चरम पर आ चुका था. कवि प्रदीप ने भी इस आंदोलन में अपना योगदान दिया. वह गाँधी विचारधारा से प्रभावित थे. धीरे-धीरे वह सादा जीवन जीने पर यकीन करने लग गए. स्वतंत्रता के आन्दोलन में उनका पैर भी फ्रैक्चर हो गया था और कई दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा लेकिन उन्होंने अपना संघर्ष अस्पताल से भी जारी रखा.
कवि प्रदीप ने अपनी कविताओं के जरिये देशवासियों में दिलों में देशभक्ति और साहस जगाने का काम शुरू किया. 1940 में आयी फिल्म “बंधन” की उनके द्वारा लिखा गीत ‘चल चल रे नौजवान…’ गली-गली में सुना जाने लगा. इस गीत का इतना प्रभाव हुआ कि सिंध और पंजाब की विधानसभा ने इस गीत को राष्ट्रीय गीत की मान्यता दी और ये गीत विधानसभा में गाया जाने लगा. भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी भी अपने युवा अवस्था में वानर सेना के नेतृत्व में “चल रे नौजवान” गीत को गया करती थी.
मिस कमल बी.ए. की कहानी (Story of Miss Kamal B.A. )
बॉम्बे टॉकीज से अपना नाता तोड़ लेने के बाद कवि प्रदीप ने फ़िल्मिस्तान’ की पहली फ़िल्म ‘चल-चल रे नौजवान’ (1944) के लिए 12 गीत लिखे लेकिन फिल्म और इसके गाने दोनों ही नहीं चले. फिल्म असफल होने पर इस ठीकरा कवि प्रदीप पर थोप दिया गया. उन्हें फिल्मो से अलग-थलग कर दिया गया. फ़िल्मिस्तान से हुए कॉन्ट्रेक्ट की वजह से उन्हें ना तो काम काम मिल पा रहा था ना ही वेतन. इस समस्या की घड़ी में उन्होंने बाहर की फिल्मों के लिए “मिस कमल बी.ए.” नकली नाम से गीत लिखना शुरू कर दिए. उन्होंने मिस कमल बी.ए. नाम से ‘लक्ष्मी प्रोडक्शंस’ की तीन फ़िल्में- ‘कादम्बरी’ (1944), ‘सती तोरल’ (1947), ‘वीरांगना’ (1947) तथा मुरली मूटीटोन की एक फ़िल्म ‘आम्रपाली’ (1945) के गीत लिखे.
सम्मान और पुरस्कार (Kavi Pradeep Achievements)
76 फ़िल्मों और 1700 गाने देने वाले कवि प्रदीप को राष्ट्रकवि नाम से जाना जाता हैं उनके द्वारा लिखे गए गीतों ने लाखों युवाओं के दिलों में जोश भर दिया था. लेकिन दु:खद की बात यह हैं कि उनके अमूल्य योगदान के बदले उन्हें कभी भी राष्ट्रीय पुरूस्कार जैसे पद्मश्री, पद्मभूषण से नवाजा नहीं गया.
- वर्ष 2011 में भारत सरकार की और से उनके चित्र और गीत “ए मेरे वतन के लोगो” के साथ वाला डाक टिकट जारी किया गया था.
- उन्हें 1998 में भारत के राष्ट्रपति के.आर. नारायणन द्वारा प्रतिष्ठित ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ दिया गया था.
- 1995 में राष्ट्रपति द्वारा ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि दी गई.
- साल 1961 में उन्हें ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था.
- 1963 में उन्हें फ़िल्म जर्नलिस्ट अवार्ड अवार्ड से सम्मानित किया गया.
मृत्यु (Kavi Pradeep Death)
फिल्म कंचन से अपने करियर की शुरूआत करने वाले “राष्ट्रकवि” कवि प्रदीप ने अपने जीवन में लगभग 1700 गीत लिखे. उनका निधन 11 सितम्बर 1998 को 83 वर्ष की उम्र में कैंसर की बीमारी से लड़ते हुए हुआ. उनकी मृत्यु की खबर समाचार पत्र में छपते ही स्तब्ध हुए लोगों का सैलाब विले पार्ले स्थित उनके आवास ‘पंचामृत’ की ओर उमड़ पड़ा. उनकी अंतिम यात्रा में कवि प्रदीप अमर रहे के नारे लगते रहे.
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