“मेरे जीवन का लक्ष्य” निबंध | Essay on Mere Jeevan Ka Lakshya in Hindi

“मेरे जीवन का लक्ष्य” पर हिंदी भाषा में निबंध | Essay on Mere Jeevan Ka Lakshya in Hindi | Mere Jeevan Ka Lakshya Nibandh

मानव जीवन एक दुर्लभ उपलब्धि है. चौबीस लाख योनियों में मानव योनि ही सर्वश्रेष्ठ है. इसलिए मानव जाति की अमूल्य रचना है. विधाता ने केवल मानव को ही बुद्धि प्रदान की है जिससे मानव जीवन स्वार्थी ना बन जाए अभी तो उसके जीवन में परमार्थ (परोपकार)साधना का प्रमुख स्थान होना चाहिए. जीवन का लक्ष्य तय करना प्रत्येक मानव का कर्तव्य है. कल्पना का जगत सबसे अधिक रमणीय तथा मधुर है. मेरे जीवन का एक सपना है जिसे मैं येन-केन प्रकारेण साकार और सार्थक करना चाहता हूं.

लक्ष्य का निश्चय

मैं दसवीं कक्षा का छात्र हूं. में किसी विश्वविद्यालय का अध्यापक बनना चाहता हूं. मेरे माता-पिता भी मुझे अध्यापक बनने की सलाह देते हैं. संभवत इसी कारण की वे स्वयं भी अध्यापक है.

लक्ष्य पूर्ण जीवन के लाभ

जब से मेरे मन में अध्यापक बनने का सपना जगा हैं, तब से मेरे जीवन में अनेक परिवर्तन आ गए हैं. मैं पढ़ाई की और अधिक ध्यान देने लगा हूं ताकि अपने लक्ष्य को सुगमता से प्राप्त कर सकूं. उद्देश्य सहित पढ़ने में अत्यंत आनंद है. टाइल्स ने सत्य ही कहा था- “ अपने जीवन का एक लक्ष्य बनाओ और उसके बाद अपने शारीरिक और मानसिक बल, जो ईश्वर ने तुम्हें दिया है, उसमें लगा दो”. अथर्ववेद से भी यही प्रेरणा मिलती है- “उन्नत होना और आगे बढ़ना प्रत्येक जीवन का लक्ष्य है”. छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद का उद्देश्य अनंत गीत और अनंत विस्तार मानते हैं-

‘इस पथ का उद्देश्य नहीं है श्रांत भवन में टिक रहना.
किन्तु पहुंचना उस सीमा तक जिसके आगे राह नहीं.

लक्ष्य पूर्ति का प्रयास

मैंने अपने लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में प्रयास करने आरम्भ कर दिए हैं. अअध्ययन के प्रति मैं और अधिक गंभीर हो गया हूँ. जब तक मेरे लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती तब तक मै जीवन में आराम नहीं करूँगा. अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु निरंतर प्रयास करता रहूँगा. ये पंक्तिया मुझे सदा चलते रहने की प्रेरणा देती हैं.

धनुष से छूटता है जो बाण वो पथ में कब ठहरता ,
देखते ही देखते वह लक्ष्य का भेद करता
लक्ष्य प्रेरित बाण हैं हम ठहरने का गम कैसा,
लक्ष्य तक पहुँचे बिना पथ में पथिक विश्राम कैसा

लक्ष्य निर्धारण के कारण

मेरा लक्ष्य है आदर्श अध्यापक बनना. मैंने परमार्थ साधना को भी अपने जीवन का उद्देश्य बनाया है तथा उसी के अनुसार व्यवसाय का चयन किया है. अध्यापन व्यवसाय ही ऐसा व्यवसाय है जो मानव को परमार्थ साधना के पथ का पथिक बना सके. अध्यापक का जीवन अत्यंत सात्विक होता है. वह तो विलास से दूर रहता है. आदर्श जीवन जीता है. वह सादा जीवन उच्च विचार के जीवन दर्शन में विश्वास रखता है. वह संतोषी प्रकृति का होता है उसकी आवश्यकताएं बहुत कम होती है. सात्विकता के कारण ही हमारे ऋषि-मुनियों ने अध्यापन कार्य का चयन किया था. गुरुकुल की स्थापना की थी. जहां राजा से लेकर अंत तक के बच्चे बिना भेदभाव के शिक्षा प्राप्त करते थे. सांदीपनि आश्रम में श्री कृष्ण जी से उच्च स्तर के तथा सुदामा जी से निम्न स्तर के बालकों ने साथ साथ शिक्षा प्राप्त की. धौम्य, वशिष्ठ, वाल्मीकि आदि ऐसे ही मुनि थे.

गुरुओं के सात्विक और सादा जीवन की छाप विद्यार्थियों पर पड़ती है जिनसे उनका जीवन कुसुम सुवासित होता है. अध्यापक के सात्विक वातावरण से संसर्ग में उसे और प्रेरणा मिलती है.

अध्यापक की जीविका चुनने के प्रमुख कारण निम्न हैं.

मानसिक उत्थान

अध्यापन व्यवसाय के चयन का प्रमुख कारण है मानसिक उत्थान. अध्यापक स्वाध्याय में संलग्न रहता है. स्वाध्याय से ज्ञान के चक्षु खुल जाते हैं मानसिक विकास होता है. विकसित मस्तिक से विवेक बुद्धि प्राप्त होती है. सुबुद्धि उपलब्ध होती है जिससे सही गलत का बोध होता है. वह सन्मार्ग पर चल कर अपने जीवन को सफल बनाता है.

आत्मिक उत्थान

अध्यापन व्यवसाय के चयन का एक अन्य कारण आत्मिक उत्थान भी है. अध्यापक को उत्कृष्ट, उपदेशात्मक, नीति संबंधित तथा सदाचार पूर्ण साहित्य का अवलोकन करने का सुअवसर मिलता है. उसके माध्यम से सत पुरुषों का सत्संग प्राप्त करता है. वह कभी जग में कबीर की अमृतवाणी सुनता है, तो कभी तुलसी के रामचरित्रमानस में गोते लगाता है. कभी सूर के भक्ति भाव के लहराते हुए सागर में डुबकी लगता हैं तो कभी भारतेंदु के “सत्य हरिश्चंद्र” नाटक में सत्य के साकार स्वरूप के दर्शन करता हैं. इससे उसके जीवन में नीति, मर्यादा और सदाचार का समावेश होता हैं.

राष्ट्र निर्माण में योगदान

अध्यापन व्यवसाय राष्ट्र में सराहनीय योगदान करता हैं. आज का बालक कल का नागरिक है और नागरिक राष्ट्र की इकाई होता है. बालक जैसी शिक्षा प्राप्त करेगा वैसा ही नागरिक बनेगा. विद्यालय बालक की निर्माणशाला है. अध्यापक उसका निर्माता है वही उसके व्यक्तित्व की रचना करता है. उसके अंदर ज्ञान तथा सद्गुणों का प्रकाश फैलाता है, सदाचार की सृष्टि करता है. आदर्श अध्यापक अपने छात्रों पर सब कुछ न्योछावर कर देता है.

माता पिता जो केवल बालक को जन्म देते हैं किंतु अध्यापक उसके व्यक्तित्व का निर्माण करता है. ज्ञान रहित तथा गुण हीन बालक अध्यापक के हाथ से ज्ञान शिरोमणि तथा गुण संपन्न बन जाता है. इस प्रकार अध्यापक भवन निर्माण के लिए नागरिक रूपी सुदृढ़ ईट तैयार करता है. अध्यापक का योगदान अमूल्य है.

उपसंहार

अध्ययन व्यवसाय सेवा एवं परोपकार का श्रेष्ठ साधन है. अतुलित उपकार तथा सेवा के कारण ही भारतीय संस्कृति में अध्यापक का स्थान, गुरु का पद परमेश्वर से भी ऊंचा रखा गया है. तभी तो गुरु गोविंद दोनों की उपस्थिति में शिष्य गुरु के चरण स्पर्श करता है, गोविंद के नहीं. कबीर के शब्दों में-

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।

ऐसा होता है महान अध्यापक और उसका व्यवसाय. अध्यापन व्यवसाय परमार्थ साधना का उत्तम उपाय है. इसमें अनेक बालकों को अपना जीवन सफल तथा सार्थक बनाने का अवसर मिलता है. अध्यापन व्यवसाय धन्य है जो बीच के समान अपना सर्वस्व बलिदान करके रख रूपी राष्ट्र को अपने छात्र संपदा प्रदान करता है. इसलिए अध्यापक को राष्ट्र का निर्माता माना जाता है.

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