परोपकार से बड़ा कोई धर्म नहीं है पर अनुच्छेद | Article on Paropkar Se Bada Koi Dharm Nahi Hai | Paropkar Par Paagraph
हमारे इतिहास में काफी सारे महान कवि रहे है, उन सभी ने समाज, देश, और अपने विचारों के ऊपर कई दोहे लिखे है. उन्हीं दोहे पर हम जब एक पूरा लेख लिखते है, तो वे भावात्मक एवं विचारात्मक अनुच्छेद की शैली में आते है. हमने आपके लिए जो “परोपकार से बड़ा कोई धर्म नहीं है” पर अनुच्छेद लिखा है. वह दोहा एक लोक प्रसिद्ध दोहा है, जिसका अर्थ दूसरों की भलाई करना होता है. अपने यह कभी न कभी सुना होगा की परोपकार करके हम अपने शत्रु को भी अपना मित्र बना सकते है.
परोपकार से बड़ा कोई धर्म नहीं
संकेत बिन्दु – (1)परोपकार का महत्व (2) परोपकार के विविध रूप (3) परोपकार में जीवन की
परहित सरिस धर्म नहीं भाई उक्ति गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस के दोहे से ली गई. है जिसके माध्यम से तुलसीदास जी ने साधु और असाधु में भेद बताते हुए कहते हैं कि दूसरों की भलाई से बड़ा धर्म कोई नहीं है. संसार में स्वार्थरहित होकर मन, वचन और कर्म से दूसरों की मदद करने तत्पर रहना ही मानवता है. मानव हो मानव का सहयोगी, शुभचिंतक हो सकता है. प्रकृति को सूर्य और चंद्रमा निरंतर प्रकाशित करते हैं, नदियाँ, झरने जल प्रदान करते हैं. वृक्ष शीतलता, वायु, फल-फूल आदि प्रदान करते हैं. प्रकृति का हर कण परहित के लिए समर्पित है. संत, महात्माओं, ऋषि-मुनियों एवं महापुरुषों ने भी परहित को ही सर्वोपरि मानकर कर्मरत रहे. कर्ण ने धर्म की खातिर अपना कवच और कुंडल दान कर दिया. महाराजा शिवि ने शेर को अपने शरीर का मांस दान कर दिया. ऋषि दधीचि ने अपनी अस्थियाँ इंद्र को देवताओं की रक्षा के लिए दान कर दिया. सद्पुरुष अपनी संपत्ति का संचय भी परोपकार और जनकल्याण के लिए ही करते हैं. गरीबों को भोजन कराना, प्याऊ लगवाना, गरीब कन्याओं का विवाह कराना, अनाथालयों में धन देना, दीन-दुखियों, पीड़ितों को अन्न, वस्त्र व जरूरत का सामान प्रदान करना, निःशुल्क शिक्षा व चिकित्सा देना परोपकार/परहित के कार्य हैं. सत्य ही है-
“सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः”
परोपकार का सुख अलौकिक होता है यही मनुष्य को मोक्ष के मार्ग की ओर अग्रसर करता है और मानव सुमृत्यु को प्राप्त करता है.
अनुच्छेद लिखने की रीति
हम अगर इन बातों का ध्यान रखे तो हम अनुच्छेद को बिल्कुल सटीकता से लिख सकते है.
- लिखते समय सरल भाषा का प्रयोग करे एवं ध्यान रखे की विषय के अनुकूल होनी चाहिए.
- अनुच्छेद लिखते समय मात्राओं की गलती एवं कटा-पिटी ना हो इस बात को हमेशा याद रखे.
- किसी भी विषय पर अगर हमें अनुच्छेद लिखना है, तो हमें उस विषय की जानकारी होना अति आवश्क है.
- मुहावरे और लोकोक्तियों आदि का प्रयोग करके भाषा को सुंदर एवं व्यावहारिक बनाने का प्रयास करे.
- विषय को प्रस्तुत करने की शैली अथवा पद्धति तय होनी चाहिए.
- चुने हुए विषय पर लिखने से पहले चिन्तन-मनन करे ताकि मूल भाव भली-भाँति स्पष्ट हो सके.