रस क्या होता है? रस की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण
Ras Ki Paribhasha, Prakar, Udaharan In Hindi
रस की परिभाषा | Ras Definition In Hindi
रस शब्द का अर्थ है ‘आनंद’.
कविता को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है उसे ‘रस’ कहा जाता है. हम ऐसा भी कह सकते हैं जो भावना के रूप में हृदय में कुछ भी प्रवाहित करता है उसे रस कहते हैं.
रस के प्रकार | Type of Ras In Hindi
रस के ग्यारह भेद होते है-
- शृंगार रस
- वीभत्स रस
- करुण रस
- हास्यरस
- वीर रस
- रौद्ररस
- भयानक रस
- अद्भुतरस
- शांत रस
- वात्सल्यरस
- भक्ति रस
शृंगार रस :
शृंगार रस रसों में से एक प्रमुख रस है. जहां नायक और नायिका, पति-पत्नी अथवा प्रेमी-प्रेमिका के प्रेम पूर्वकसौंदर्य तथा प्रेम संबंधी वर्णन होता हैं उसे श्रंगार रस कहते हैं. शृंगार रस के सुखद एवं दुखद दोनों प्रकार की अनुभूतियां होती है.
उदाहरण –
पाँयनि नूपुर मंजु बजैं , करि किंकिनि कई धुनि की मधुराई,
साँवरे अंग लसै पर पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई.
(यहाँ श्री कृष्ण के छवि का वर्णन करते हुए उनके पैरों के घुंगरू और हाथों के कंगन की मधुर ध्वनि तथा पीला वस्त्र का सुंदर चित्रण किया गया है जो श्रृंगार रस का उदाहरण है.)
वीभत्स रस :
किसी व्यक्ति, वस्तु, आदि को देख कर या उनके बारे में विचार करके मन में जो घृणा उत्पन्न होता है वह रस कहलाता है.
उदाहरण:
“सिर पै बैठ्यो काग,आंख दोउ खात निकारत.
खींचत जिभहि स्यार, अतिहि आनंद उर धारत”.
यहाँ यह उल्लेख है कि- जिसके ऊपर बैठकर गिद्ध और सियार आनंद की अनुभूति कर रहे हैं. एक शव के सिर पर कौवा बैठ कर उसके आंखों को नोच रहा है तथा सियार उन लाशों को नोच कर खा रहा है तथा आनंद उठा रहा है.
करुण रस :
जहां किसी हानि के कारण शोक भाव या किसी के दूर चले जाने से जो दुःख या वेदना की उत्पत्ति होती है वह करुण रस माना जाता है.
उदाहरण:
“राम राम कही राम कहि राम राम कहि राम
तनु परिहरि रघुबर बिरह राउ गयऊ सुरधाम”.
उपरोक्त पंक्तियों में यह उल्लेख किया गया है कि दशरथ अपने निधन के समय अपने पुत्र राम के विरह में राम-राम रटते हुए स्वर्ग को प्रस्थान करते हैं.
हास्य रस :
किसी भी प्रकार की चीजें, व्यक्ति आदि को देखकर हृदय में जो विनोदपूर्ण भाव उत्पन्न हो जाता है उसे हास रस कहते हैं.
उदाहरण:
“बिहसि लखन बोले मृदु बानी. अहो मुनीसु महाभर यानी
पुनि पुनि मोहि देखात कुहारु. चाहत उड़ावन कुंकि पाहरू”.
(हाँ यह कहा गया है कि- जब परशुराम के क्रोध करने पर लखन उनका उपहास करते हैं और उनके भाव का दृश्य प्रस्तुत करते हैं. लक्ष्मण कहते हैं यह मुझे ऐसे डरा रहे हैं जैसे इनसे बड़ा कोई क्षत्रिय नहीं है और यह अपने आप को ऐसा दिखा रहे हैं जैसे इनके फूंक मारने से पहाड़ उड़ जाए.
वीर रस :
जब किसी रचना या वाक्य आदि से वीरता जैसे वीरता के भाव की उत्पत्ति होती है तो उसे वीर रस कहा जाता है.
उदाहरण:
“बादल गरजो !
घेर घेर घोर गगन, धराधर ओ
ललित ललित, काले घुंघराले
बाल कल्पना के-से पाले
विद्युत-छबि उर मेंकवि, नवजीवन वालेवज्र छिपानूतन कविताफिर भर दो–बादल गरजो”.
ऊपर कहा गया है कि-बादल के गरजने और बरसने से उसके दानवीरता की ओर संकेत किया गया है. जो पृथ्वी पर नवजीवन का संचार करती है.
रौद्र रस :
किसी व्यक्ति के द्वारा क्रोध में किए गए निंदा, अपमान आदि के उत्पन्न भाव का वर्णन होता है तो उसे रौद्र रस कहते हैं.
उदाहरण:
“सुनत लखन के बचन कठोर. परसु सुधरि धरेउ कर घोराअब जनि देर दोसु मोहि लोगू. कटुबादी बालक बध जोगू”.
ऊपर पंक्तियों में यह उल्लेख है कि सीता के स्वयंवर में लक्ष्मण परशुराम के क्रोध को इतना बढ़ा देते हैं कि वह क्रोध से स्वयं अपने भुजाएं फड़फड़ाने लगते है.
भयानक रस :
किसी शत्रु, भयानक वस्तु अथवा दृश्य को देखने से उत्पन्न भय की अवस्था को भयानक रस कहते हैं.
उदाहरण:
“हनुमान की पूंछ में लगन न सकी आग
लंका से सीगरी जल गई गए निशाचर भाग”.
पंक्तियों में यह उल्लेख है कि जब राक्षसों ने हनुमान जी पूंछ में आग लगाई तो फिर उन्होंने अपने पूंछ से पूरे लंका को जलाकर राख कर दिया. इससे वहां रहने वाले समस्त राक्षसों में भय का माहौल उपस्थित हो गया.
अद्भुत रस :
जब मन में अद्भुत या आश्चर्यजनक भाव उत्पन्न होते हैं तो वहाँ अद्भुत रस होता है.
उदाहरण:
“अखिल भुवन चर अचर सब, हरिमुख में लखि मात.चकित भई गदगद वचन, विकसित दृग पुलकात”.
ऊपर पंक्तियों में यह उल्लेख है कि माता यशोदा का कृष्ण के मुख में ब्रह्मांड दर्शन से उत्पन्न आश्चर्यजनक भाव को प्रस्तुत किया गया है.
शांत रस:
जब किसी वस्तु, प्राणी अथवा किसी प्रिय जन को देख कर जो भावना उत्पन्न होता है वहाँ शांत रस होता है.
उदाहरण:
“पूरन देवी मंदिर में कौन पड़ी हाय उर्मिला मूर्छित पड़ी”.
ऊपर पंक्तियों में यह उल्लेख है कि- लक्ष्मण के विरह से उर्मिला की स्थिति विक्षिप्त अवस्था की हो गई थी फ़िर भी उर्मिलाके मन में नितांत शांति और प्रियतम से मिलने की कामना थी.
वात्सल्य रस:
माता-पिता, संतान स्नेह,मानव स्नेह, भागवत प्रेम आदि के प्रेम भाव को प्रकट करने वाले रस को वात्सल्य रस कहते हैं.
उदाहरण:
“में भी डाल देगी जान
धूल-धुसर तुम्हारे ये गात”.
ऊपर पंक्तियों में यह उल्लेख है कि- पिता अपने पुत्र के नन्हीं दंतुरित मुस्कान पर आनंदित हो रहा है.
भक्ति रस:
“जहाँ ईश्वर के प्रति प्रेम का वर्णन होता है वहाँ भक्ति रस होता है.”
उदाहरण:
“प्रभु जी तुम चंदन हम पानी
जाकी अंग-अंग बास समानी”.
उपर्युक्त पंक्ति में यह उल्लेख है कि भक्त ईश्वर को चंदन और स्वयं को पानी बता रहा है क्योंकि पानी में चंदन के होने से पानी का महत्व बढ़ जाता है जिसे हम सभी माथे पर धारण करते हैं.
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