हिंदी व्याकरण में समास क्या हैं इसकी परिभाषा, भेद (प्रकार) और उदाहरण | Samas Ki Paribhasha, Bhed (Types) aur Udaharan in Hindi
समास की परिभाषा (Samas Ki Paribhsha)
“दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से जब नया शब्द बनाया जाता है तो उस शब्द रचना की प्रकिया को समास कहते है. अर्थात परस्पर सम्बन्ध रखने वाले दो या दो से अधिक शब्दों को मिलाकर जब नया सार्थक शब्द बनाया जाता है तो उस मेल को समास कहते है.”
समास का अर्थ संषेप करना है. जैसे राम की लीला यहां रामलीला इन दो शब्दों के बीच की विभक्ति का लोप कर रामलीला शब्द बन गया, इसे सामाजिक या समस्त पद कहते हैं. इस प्रकार समास शब्द रचना है जिसमें अर्थ की दृष्टि से परस्पर स्वतंत्र संबंध रखने वाले दो या दो से अधिक शब्द मिलकर किसी अन्य स्वतंत्र शब्द की रचना करते हैं. समास रचना में 2 पद होते हैं पहला पद को पूर्व पद कहा जाता है और दूसरे पद को उत्तर पद. इन दोनों के समाज से बना नया पद समस्त पद कहलाता है. जब समस्त पद को फिर से अलग-अलग पदों में तोड़ा जाता है तो उसे समास विग्रह कहते हैं.
समास के प्रकार (Samas Ke Prakar)
समास के मुख्यतः छः प्रकार हैं.
- अव्ययीभाव समास(Adverbial Compound)
- तत्पुरुष समास(Determinative Compound)
- कर्मधारय समास (Appositional Compound)
- द्विगु समास(Numeral Compound)
- द्वंद समास(Copulative Compound)
- बहुव्रीहि समास(Attributive Compound)
अव्ययीभाव समास (Avyayibhav Samas)
जिस समाज में पहला पद अवयव हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं. इसका पहला पद प्रधान होता है और इस समास से बना पद अवयव रहता है. जैसे कि आजन्म यहां आ पद अवयव है.
अव्ययीभाव के कुछ उदाहरण
समस्त पद | विग्रह |
आजीवन | जीवन पर्यंत |
प्रतिदिन | रोजाना |
बेरोजगार | रोजगार रहित |
आमरण | मरने तक |
घर घर | प्रत्येक घर |
बेकार | बिना काम के |
यथा रीति | रीति के अनुसार |
यथादेश | आदेश के अनुसार |
यथावसर | अवसर के अनुसार |
यथायोग्य | योग्यता के अनुसार |
यथाशक्ति | शक्ति के अनुसार |
यथानियम | नियम के अनुसार |
द्वार द्वार | हर एक द्वार |
प्रतिवर्ष | हर साल |
यथास्थिति | स्थिति के अनुसार |
यथाशीघ्र | जितना जल्दी हो सके |
यथोचित | जैसा उचित हो |
प्रतिक्षण | हर क्षण |
भरपूर | पूरा भरा हुआ |
तत्पुरुष समास (Tatpurush Samas)
तत्पुरुष समास में उत्तर पद प्रधान होता है तथा पूर्व पद गुण होता है. उदाहरण के लिए गौशाला- गाय के लिए शाला. यहां शाला प्रधान है और गो गौण है. समास करते समय बीच की विभक्तियो का लोप हो जाता है.
तत्पुरुष समास के विभिन्न भेद हैं
- कर्म तत्पुरुष
- करण तत्पुरुष
- संप्रदान तत्पुरुष
- अपादान तत्पुरुष
- संबंध तत्पुरुष
- अधिकरण तत्पुरुष
- नञ तत्पुरुष
- कर्मधारय समास
- द्विगु समास
कर्म तत्पुरुष समास
जहां पूर्व पद में कर्म कारक की विभक्ति का लोप हो जाता है. वहां कर्म तत्पुरुष होता है. उदाहरण के लिए-
समस्त पद | विग्रह |
परलोकगमन | परलोक को गमन |
यशप्राप्त | यश को प्राप्त |
मरणप्राप्त | मरण को प्राप्त |
स्वर्गगत | स्वर्ग को गया हुआ |
विद्यालयगत | विद्यालय को आया हुआ |
नगरगत | नगर को गया हुआ |
करण तत्पुरुष समास
करण तत्पुरुष समास के पूर्वपद में करण कारक की विभक्ति का लोप हो जाता है. उदाहरण के लिए-
समस्त पद | विग्रह |
रक्त लिप्त | रक्त से लिप्त |
देवदत्त | देव के द्वारा दिया गया |
हस्तलिखित | हस्त से लिखित |
प्रेमपीड़ित | प्रेम से पीड़ित |
पुत्रसंतुष्ट | पुत्र के द्वारा संतुष्ट |
स्वरचित | स्वयं के द्वारा रचित |
परिश्रमसाध्य | परिश्रम से साध्य |
राजपालित | राजा के द्वारा पालित |
विद्यालंकृत | विद्या से अलंकृत |
पुरस्कारसम्मानित | पुरस्कार से सम्मानित |
संप्रदान तत्पुरुष समास
संप्रदान तत्पुरुष में पूर्व पद के संप्रदान कारक की विभक्ति का लोप हो जाता है. उदाहरण के लिए-
समस्त पद | विग्रह |
छात्रशाला | छात्रों के लिए शाला |
यज्ञसामग्री | यज्ञ के लिए सामग्री |
मार्गव्यय | मार्ग के लिए व्यय |
रसोईघर | रसोई के लिए घर |
प्रयोगभवन | प्रयोग के लिए भवन |
राष्ट्रप्रेम | राष्ट्र के लिए प्रेम |
हाथघड़ी | हाथ के लिए घड़ी |
गुरुदक्षिणा | गुरु के लिए दक्षिणा |
बलिपुरुष | बलि के लिए पुरुष |
आरामकुर्सी | आराम के लिए कुर्सी |
अपादान तत्पुरुष समास
अपादान तत्पुरुष समास में पूर्व पद के अपादान कारक की विभक्ति का लोप हो जाता है जैसे-
समस्त पद | विग्रह |
धनहीन | धन से हीन |
चौरभय | चोर से भय |
वनागमन | वन से आगमन |
राजभय | राजा से भय |
जन्मांध | जन्म से अंधा |
भयभीत | भयभीत |
सर्वसुंदर | सबसे सुंदर |
आचारशून्य | आचार से शून्य |
ऋणमुक्त | ऋण से मुक्त |
पदमुक्त | पद से मुक्त |
संबंध तत्पुरुष समास
संबंध तत्पुरुष समास में पूर्व पद के संबंध कारक की विभक्ति होती है, उसका लोप कर पूर्व पद को उत्तर पद के साथ जोड़ दिया जाता है. जैसे-
समस्त पद | विग्रह |
राष्ट्रीय सुरक्षा | राष्ट्र की सुरक्षा |
रामाश्रय | राम का आश्रय |
देवमूर्ति | देव की मूर्ति |
राष्ट्रपिता | राष्ट्र का पिता |
राजघराना | राजा का घराना |
राजमहल | राजा का महल |
देशवासी | देश का वासी |
स्वास्थ्यरक्षा | स्वास्थ्य की रक्षा |
राजकुल | राजा का कुल |
करोड़पति | करोड़ों का पति |
मकानमालिक | मकान का मालिक |
जनहित | जनों का हित |
धनशक्ति | धन की शक्ति |
हिमालय | हिम का आलय |
दीनबंधु | दीनो का बंधु |
अधिकरण तत्पुरुष समास
जहां अधिकरण कारक की विभक्ति का- मैं, पर का लोप हो जाता है वहां अधिकरण तत्पुरुष समास होता है. जैसे
समस्त पद | विग्रह |
धर्मवीर | धर्म में वीर |
कलानिधि | कला में निधि |
लोकप्रिय | लोक में प्रिय |
भक्तिमग्न | भक्ति में मग्न |
वनवास | वन में वास |
शरणागत | शरण में आगत |
पुरुषोत्तम | पुरुषों में उत्तम |
डिब्बाबंद | डिब्बे में बंद |
जगबीती | जग पर बीती |
सरदर्द | सर में दर्द |
नञ तत्पुरुष समास
जिस नञ तत्पुरुष समास का पूर्व पद नकारात्मक होता है. वह नञ तत्पुरुष समास कहलाती है.जैसे-
समस्त पद | विग्रह |
अधर्म | न धर्म |
अकर्मण्य | न अकर्मण्य |
अधीर | न अधीर |
अनसुना | न सुना |
अनाम | न नाम |
अनहोनी | न होनी |
अनादि | न आदि |
अन्याय | न न्याय |
अनदेखा | न देखा |
अनंत | न अंत |
कर्मधारय समास (Karmadharaya Samas)
कर्मधारय समास में पहला पद विशेषण और दूसरा पर विशेष्य होता है अथवा इसमें एक पद उपमान और उत्तर पद उपमेय भी होता है. जैसे-
समस्त पद | विग्रह |
महाराजा | महान है राजा जो |
वीरपुरुष | वीर है जो पुरुष |
नीलकंठ | नील है कंठ जो |
महादेव | महान है जो देव |
दीनपुरुष | दिन है जो पुरुष |
नीलकमल | नील है कमल जो |
नीलाम्बर | नील है जो अंबर |
चंद्रमुखी | चंद्र के समान मुख |
घनश्याम | घर के सामान श्याम |
भुजदंड | दंड के समान भुजा |
दुरात्मा | बुरी है जो आत्मा |
महापुरुष | महान है जो पुरुष |
नरसिंह | नररूपी सिंह |
ग्रंथरत्न | रत्न के समान ग्रंथ |
कमलनयन | कमल के समान नयन |
हरितदल | हरित है जो दल |
मृगनेत्र | मृत के समान नेत्र |
कोपानल | कोप रूपी अनल |
दुर्बलशिशु | दुर्बल है जो शिशु |
द्विगु समास (Dvigu samas)
इसका पहला पद संख्यावाचक होता है तथा वह किसी समूह विशेष का बोध कराता है. उदाहरण के लिए-
समस्त पद | विग्रह |
नवरत्न | नव रत्नों का समाहार |
सप्ताह | सात दिनों का समाहार |
त्रिवेणी | तीन वेणियो का समाहार |
चौराहा | चार राहो का समाहार |
त्रिभुवन | तीन भवनों का समाहार |
पंचतत्व | पांच तत्वों का समाहार |
सप्तद्वीप | सात द्वीपों का समाहार |
त्रिलोक | तीन लोको का समाहार |
त्रिफला | तीन फलों का समाहार |
पंचतंत्र | पांच तंत्रों का समाहार |
तिरंगा | तीन रंगों का समाहार |
त्रिभुज | तीन भुजाओं का समाहार |
सप्तऋषि | सात ऋषियों का समाहार |
नवनिधि | नव निधियों का समाहार |
अष्टसिद्धि | आठ सिद्धियों का समाहार |
द्वंद समास (Dwand Samas)
जिस समस्त पद में दोनों पद समान हो. वहां द्वन्द समास होता है. इसमें दोनों पदों को मिलाते समय बीच के “और” का लोप हो जाता है. जैसे गंगा और यमुना का समस्त पद होगा गंगा-यमुना. यहां दोनों पद समान है. इसमें समास करते समय बीच में स्थित और का लोप हो गया है. अन्य कुछ उदाहरण-
समस्त पद | विग्रह |
माता- पिता | माता और पिता |
दाल- रोटी | दाल और रोटी |
दाना- पानी | दाना और पानी |
अपना- पराया | अपना और पराया |
आशा- निराशा | आश और निराशा |
गंगा- यमुना | गंगा और यमुना |
जन्म- मरण | जन्म और मरण |
राधा- कृष्ण | राधा और कृष्ण |
छोटा-बड़ा | छोटा और बड़ा |
उल्टा- सीधा | उल्टा और सीधा |
गुण- दोष | गुण और दोष |
रात- दिन | रात और दिन |
पूर्व- पश्चिम | पूर्व और पश्चिम |
पाप- पुण्य | पाप और पुण्य |
तन- मन | तन और मन |
स्त्री- पुरुष | स्त्री और पुरुष |
लाभ- हानि | लाभ और हानि |
जल- वायु | जल और वायु |
नदी- नाले | नदी और नाले |
बहुव्रीहि समास (Bahuvrihi Samas)
जहां पहला पद और दूसरा पद मिलकर किसी तीसरे पद का बोध कराते हैं. वहां बहुव्रीहि समास होता है. जैसे नीलकंठ अर्थात नीला है कंठ जिसका. यानि महादेव. इसमें नील और कंठ दोनों पदों में से ना कोई प्रधान है और ना कोई गौण. यह दोनों पर मिलकर किसी तीसरे पद यानी कि महादेव के अर्थ का बोध कराते हैं. उदाहरण-
समस्त पद | विग्रह |
त्रिलोचन | तीन है जिसके नेत्र अर्थात शंकर भगवान |
चारपाई | चार है पाए जिसके पास अर्थात खाट |
नीलकंठ | नील है कंठ जिसका अर्थात शंकर भगवान |
कमलनयन | कमल के समान नयन वाले अर्थात विष्णु भगवान |
पंचानन | पांच है आनन जिसके अर्थात शिवजी |
चक्रधर | चक्र को धारण करने वाले अर्थात विष्णु जी |
लंबोदर | लंबा है उदर जिसका अर्थात गणेश जी |
दशमुख | दस है जिसके मुख अर्थात रावण |
पितांबर | पीला है अम्बर जिसका अर्थात श्रीकृष्ण |
पंकज | पंख में पैदा हुआ अर्थात कमल |
मयूरवाहन | मयूर है जिसका वाहन अर्थात् कार्तिकेय |
चतुर्मुख | चार है जिसके मुख अर्थात ब्रह्मा जी |
अनंत | अंत नहीं है जिसका अर्थात आकाश |
महावीर | महान है जो वीर अर्थात हनुमान जी |
गिरिधर | गिरी को धारण करने वाले श्री कृष्ण |
चंद्रमुखी | चंद्र के समान मुख जिसका अर्थात स्त्री विशेष |
मृत्युंजय | मृत्यु को जीतने वाला अर्थात शंकर जी |
तिरंगा | तीन है रंग जिसमें अर्थात भारत का राष्ट्रध्वज |
विषधर | विष को धारण करने वाले अर्थात शंकर जी |
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