रसायन विषय की समीकरणों को तेजी से हल करने वाले गुलजारीलाल मेहता बड़वानी के सरकारी विद्यालय में शिक्षक थे जो अपनी अध्यापन की शैली से सभी छात्रों का मन मोह लेते थे, वैसे रसायन विषय के साथ पर्यावरण के संरक्षक कहे जाने गुलजारीलाल जी शहर में गुरुजी नाम से प्रसिद्ध हुए एवम रुचि के अनुसार शाम के समय निःशुल्क रसायन के साथ जीवविज्ञान विषय की कोचिंग दिया करते थे. गुरुजी को विद्यालय के सभी छात्रों के साथ साथ दो छात्रों से अत्यधिक लगाव था किराना व्यापारी के पुत्र अजय और किसान पुत्र मुकेश जो शाम की कक्षाओं में तुरन्त जवाव हाजिर कर देते थे.
आम पकने वाले मौसम में बारहवीं की परीक्षाओं के अच्छे परिणामो के साथ गुरुजी के आज्ञा से अजय मेडिकल प्रवेश की परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोटा चला जाता है और मुकेश की परिवारिक स्थिति को देखते हुए इंदौर रोजगार की तलाश में पहुँचता है. कहते है समय बीतते देर ना लगती गुरुजी भी रिटायरमेंट के बाद बड़वानी में निःशुल्क कोचिंग जारी रखते है लेकिन यकायक धर्मपत्नी के संसार से चले जाने से अब शहर से दूर जाने के मन बनाने पर इंदौर के एक वृद्धा आश्रम में खुशनुमा जीवन जीने आ जाते है किन्तु यंहा भी निःशुल्क अध्यापन को जारी रखते हुए गरीब बच्चो को रसायन के ज्ञान को प्रवाहित करते हुए जीवन के आनन्द में सरोबार रहते थे.
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आज 5 सितम्बर को हल्की बूंदाबांदी में गुरुजी सफेद शर्ट, काली पेण्ट और जेब में पुराना स्याही का पेन लगाएँ पढ़ाने के लिए निकले ही थे कि गुमास्ता नगर की मुख्य सड़क पर पीछे सरपट तेजी से आती हुई मोटरसाइकिल टक्कर मार जाती है गुरुजी जमीन पर गिरते है और चश्मा सड़क पर गिरते ही चटक जाता है. मोटरसाइकिल सवार वक्त की नजाकत को देखते हुए भाग जाता है किंतु तेजी से भीड़ इक्कट्ठा हो जाती है और कुछ सज्जन लोग बेहोश गुरुजी को पास के ही 4 मंजिला निजी अस्पताल में ले जाते है और प्राथमिक उपचार चलता है किंतु रक्त की आवश्यकता होने के कारण अस्पताल के कॉरिडोर में स्ट्रेचर पर लिटा दिया जाता है अब गुरुजी को पता नही कौन रक्त देगा डॉक्टर इधर उधर गुजरते रहते है.
वार्ड कर्मचारी द्वारा जेबो की तलाशी से आधार कार्ड और सात सौ पचास के अलावा कुछ नही मिलता है. अब ईश्वर का ही भरोसा था बारिश तेज हो जाती है और अस्पताल के बाहर चाय की दुकान पर ऑटो चालक वाले आपस में दुर्घटना की चर्चा करते रहते है अभी अभी आया आटो वाला चर्चा को सुन के तुरन्त अस्पताल में दाखिल होता है और गुरुजी को पहचान जाता है और रक्तदान करता है. एक पहर बीतने के बाद गुरुजी को होश आता है तो धुंधली रोशनी से हल्की दाढ़ी बड़ी हुई युवा से पूछते है कौन हो जिसने मेरी सहायता की. कौन हो तुम मुझे बचाने वाले?
अरे गुरुजी मै मुकेश जो आपकी शाम की कक्षा में आया करता था बड़वानी विद्यालय में. अब इंदौर में खुद का ऑटो चलाता हूँ.
आशीर्वाद वाले हाथो से गुरुजी ने हाथ मुकेश के सर पर रखा और बोला बेटा मुकेश ईश्वर तुम्हारा भला करे और खूब तरक्की दे, हाँ विद्यालय से याद आया एक तुम्हारा सहपाठी था अजय उसका नम्बर हो तो लगाना, सुना है इसी शहर में बहुत बड़ा डॉक्टर हो गया है.
अश्रु वाली आंखों से और रुंधे हुए गले से मुकेश कैसे कहे कि गुरुजी आप बड़े डॉ.अजय के अस्पताल में ही है. लेकिन भावनाओ को संयमित करते हुए धीरे से कहता है लम्बे समय से कोई संपर्क नही है.
गुलजारीलाल मेहता मन ही मन शिक्षक दिवस के दिन मुकेश द्वारा रक्तदान की गुरुदक्षिणा पाकर गर्व से भर गए. अस्पताल के बिल को जैसे तैसे चुकाता हुआ मुकेश पिता समान गुरुजी को अपने घर ले जाता है.
(नोट: सभी पात्र काल्पनिक है)
लेखक-जितेंद्र पाटीदार