काकोरी कांड घटना क्या थी, इसके उद्देश, ऐतिहासिक महत्व व सजाएँ | Kakori Kand (Conspiracy) Details, Date, List of Revolutionaries and Purpose in Hindi
देश के इतिहास में काकोरी कांड महत्त्वपूर्ण घटना हैं. इस कांड का उद्देश्य अंग्रेजी शासन के विरुद्ध लड़ाई करने के लिए सरकारी खजाना लूटना और उन पैसों से हथियार खरीदना था. इतिहासकारों ने काकोरी कांड को बहुत ज्यादा अहमियत नहीं दी लेकिन यही वह घटना हैं जिसने देश में क्रांतिकारियों के प्रति लोगों का नजरिया बदलने लगा था और वे पहले से ज्यादा लोकप्रिय होने लगे थे.
तारीख | 9 अगस्त 1925 |
आवश्यकता | क्रान्तिकारी गतिविधियों और हथियारों के लिए |
जगह | काकोरी |
कुल लूट | 4601 रुपये |
सजा | बिस्मिल, रोशन सिंह, लहरी और अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ को फांसी बाकि क्रांतिकारियों को कालापानी की सजा |
सरकारी खजाना लूटने का निर्णय (Purpose of Kakori Kand)
राष्ट्रीय आन्दोलनों को गति देने के लिए अत्यधिक धन की आवश्यकता थी. 7 मार्च 1925 को कही से भी धन प्राप्त न होने की स्थिति में रामप्रसाद बिस्मिल और उनके साथियों ने दो लूट को अंजाम दिया परन्तु इस लूट के दौरान दो व्यक्ति मौके पर मारे गए. जिससे बिस्मिल की अंतरात्मा को अत्यधिक ठेस पहुंची और उन्होंने दृढ संकल्प लिया कि वे अब सिर्फ सरकारी पैसों और खजानों को ही लूटेंगे. किसी भी अमीर घर पर डकैती नहीं डालेंगे.
ऐतिहासिक काकोरी कांड (Kakori Kand in Hindi)
क्रांतिकारियों द्वारा की जा रही गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए धन की आवश्यकता थी. इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए शाहजहाँपुर में एक बैठक का आयोजन हुआ. जिसकी अध्यक्षता रामप्रसाद बिस्मिल ने की और सरकारी खजाने को लूटने की योजना बनाई. इस बैठक में अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ ने इस लूट को करने का विरोध किया क्योंकि उनका मानना था कि इस समय उनका संघठन इतना मजबूत नहीं हैं कि वह अंग्रेजो को सीधे चुनौती दे सके. यह हमारे संघठन एच.आर.ए के लिए घातक होगा. परन्तु इस बैठक में बहुमत से लूट को अंजाम देने का निर्णय लिया गया.
काकोरी ट्रेन की डकैती इसी दिशा में क्रांतिकारियों का पहला बड़ा प्रयास था. पहले यह लूट आठ अगस्त को होना थी, मगर थोड़ी देरी हो जाने से ट्रेन छूट गई थी और अगले ही दिन 9 अगस्त 1925 को शाहजहाँपुर शहर के रेलवे स्टेशन से बिस्मिल के नेतृत्व में कुल 10 लोग ने काकोरी ट्रेन को लूट लिया. जिसमे रामप्रसाद बिस्मिल के साथ अशफाक उल्ला खाँ, मुरारी शर्मा, बनवारी लाल, बंगाल के राजेन्द्र लाहिडी, शचीन्द्रनाथ बख्शी, केशव चक्रवर्ती, चन्द्रशेखर आजाद, मन्मथनाथ गुप्त एवं मुकुन्दी लाल शामिल थे. इस लूट के दौरान जर्मनी की चार माउजर और क्रांतिकारियों के पास उपलब्ध देसी पिस्तौलो का उपयोग किया गया था. जर्मनी माउजर बहुत ही खतरनाक थी वह बहुत दूरी से निशाना लगाने की क्षमता रखती थी.
लखनऊ से पहले ही काकोरी स्टेशन था. जैसे ही ट्रेन वहा पहुंची कुछ क्रांतिकारियों ने चैन खींचकर ट्रेन को वही रोक लिया और डिब्बे से सरकारी खजाने का बक्सा नीचे गिरा दिया. पहले तो उसे खोलने की कोशिश की गयी परन्तु नहीं खुलने पर अशफाक उल्ला खाँ ने हथोड़े की सहायता से बक्से को तोड़ दिया.
अशफाक उल्ला खाँ के पास जो जर्मनी माउजर थी वह उन्होंने अपने साथी मन्मथनाथ गुप्त को दे दी थी. मन्मथनाथ गुप्त जी से दुर्घटना वश उस माउजर का ट्रिगर दब गया और एक मुसाफिर की मौत हो गई थी. इस लूट के दौरान 4601 रु की रकम और चांदी के सिक्कों को चादरों और थेलो में बांधकर ले गए.
काकोरी कांड में सम्मिलित क्रान्तिकारी (List of Revolutionaries in Kakori Kand)
- रामप्रसाद बिस्मिल
- अशफाक उल्ला खाँ
- मुरारी शर्मा
- बनवारी लाल
- राजेन्द्र लाहिडी
- शचीन्द्रनाथ बख्शी
- केशव चक्रवर्ती
- चन्द्रशेखर आजाद
- मन्मथनाथ गुप्त
- मुकुन्दी लाल
- बनारसीलाल
काकोरी कांड में गिरफ़्तारी, मुक़दमा और सजा(kakori kand Case and Punishment)
यह कांड ब्रिटिश सरकार के लिए एक नासूर की तरह था और यह पूरे भारत के अलावा इसकी गूँज ब्रिटेन तक जा पहुंची थी. काकोरी कांड की जाँच के लिए सी.आई.डी इंस्पेक्टर तसद्दुक हुसैन के नेतृत्व के साथ स्कॉटलैण्ड के पुलिस दल की नियुक्ति की गई.
इंस्पेक्टर तसद्दुक हुसैन को पूरी तहकीकात करने के बाद पता चला कि यह एक सुनियोजित लूट थी. जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने लूट में शामिल व्यक्तियों के नाम बताने वालो को इनाम की घोषणा कर दी. जिसके बाद रामप्रसाद बिस्मिल के ही साथी बनारसीलाल ने पुलिस को सारा भेद बता दिया. यह वही बनारसीलाल हैं जिसकी चादर लूट के वक्त उसी स्थान पर छूट गई थी.
26 सितंबर 1925 के दिन पूरे देशभर से 40 लोगों को गिरफ्तार किया गया जबकि इस लूट को सिर्फ 10 लोगो ने अंजाम दिया था. काकोरी कांड का ऐतिहासिक मुकदमें की सुनवाई लगभग 10 महीने चली. इस मुक़दमे में ब्रिटिश सरकार के 10 लाख रूपये खर्च हुए थे. 6 अप्रैल 1927 को इस मुक़दमे का फैसला आया और सभी नामजद आरोपियों को 5 वर्ष से लेकर फांसी की सजा सुनाई गई. जिस समय यह फैसला दिया गया था जब भी इस कांड में शामिल क्रान्तिकारियों में अशफाक उल्ला खाँ और शचीन्द्र नाथ बख्शी फरार थे. जिन्हें बाद में गिरफ्त्तार किया गया और इन पर अलग से मुकदमा चलाया गया. 13 जुलाई 1927 को अशफाक उल्ला खाँ को फाँसी तथा शचीन्द्रनाथ बख्शी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.
18 जुलाई 1927 को इस फैसले के विरुद्ध पी.आई.एल दायर की गई. जिसकी लम्बी सुनवाई के बाद 22 अगस्त 1927 को अंतरिम फैसला आया और राम प्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी व अशफाक उल्ला खाँ को फांसी सुनाई गयी.
मेरा रँग दे बसन्ती चोला (मुक़दमे के दौरान रामप्रसाद बिस्मिल की कविता)
जब इस लूट के मुक़दमे के दौरान रामप्रसाद बिस्मिल और अन्य क्रांतिकारी जेल में थे. जब बसंत पंचमी का त्यौहार भी आने वाला था. तभी रामप्रसाद बिस्मिल ने कविता लिखी थी.
मेरा रँग दे बसन्ती चोला….
हो मेरा रँग दे बसन्ती चोला…
इसी रंग में रँग के शिवा ने माँ का बन्धन खोला,
यही रंग हल्दीघाटी में था प्रताप ने घोला
नव बसन्त में भारत के हित वीरों का यह टोला,
किस मस्ती से पहन के निकला यह बासन्ती चोला
मेरा रँग दे बसन्ती चोला….
हो मेरा रँग दे बसन्ती चोला…
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बहुत बहुत धन्यवाद आपका।।। जय हो।।।जयश्रीराधे राधे।।।
What happened with Keshab Chakraborty after the incident ?
What was the outcome of his trial ?