जानिए क्या होती थी कालापानी की सजा और इसका इतिहास | Kalapani History, Jail, Story in Hindi
क्या आप अपनी पूरी जिंदगी एक जगह कैद रहने की कल्पना कर सकते हैं? जहां से छूटने का कोई निश्चित समय नहीं, जिन्दा घर लौटने की कोई उम्मीद नहीं.
आज हम ऐसी जगह की बात कर रहे हैं वो अद्भुत जरूर हैं परन्तु उसकी प्रशंसा बिलकुल भी नहीं की जा सकती हैं. “Cellular Jail” का नाम आपने बहुत कम सुना होगा पर इसका नाम कोसो दूर तक बहुत चर्चित हैं “कालापानी”.
कालापानी जेल भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप पर स्थित हैं अंग्रेज द्वारा इस जेल का उपयोग स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को कैद करने के लिए किया जाता था.
1857 में अंग्रेजो के विरुद्ध हुई पहली क्रांति ने अंग्रेजों को डरा दिया था. इसी वजह से अंग्रेजी हुकूमत ने भारत की बागडोर ईस्ट इंडिया कंपनी से अपने हाथ में ले ली थी और उन्ही ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को अंडमान और निकोबार भेजने की प्रथा शुरू की.
10 मार्च 1858 में 200 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों जत्था यहाँ भेजा गया. जिस जहाज से सेनानियों को भेजा गया था उस जहाज का नाम “सेमीरामीस” था. इस समय अंडमान में कोई जेल नहीं थी. कुछ ही समय पश्चात यहाँ “वाईपर” नाम का द्वीप हैं जहां पर एक जेल और फांसी घर का निर्माण किया गया.
19 वीं सदी के आखरी में भारत में उठी आजादी की आवाजों ने जोर पकड़ा. अनगिनत लोग क्षेत्रीय आन्दोलन में भाग लेने लगे. ब्रिटिश सरकार और उनके ऑफिसर पर हमले होने लगे. इन्ही स्वतंत्रता सेनानियों को कड़ी सजा देने के लिए अंडमान में एक जेल बनाने का निर्णय लिया. ये उस समय की बात हैं जब भारत में इंडियन नेशनल कांग्रेस अपने पहले कदम ले रही थी. गांधी जी अफ्रीका से लौटे ही थे. जैसे अंग्रेजो को पता था की भारत में एक आजादी का तूफ़ान आने वाला हैं. जिससे बचने के लिए उन्होंने ये जगह बनाई.
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1890 में एक जेल कमिटी को नियुक्त किया था. उस कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में यह कहा की अंडमान में एक आम राय यह बन गयी थी कि अंडमान में बहुत आजादी हैं. क्योंकि अंडमान उस समय खुली जेल थी और वाईपर की जेल की हालत खस्ता हो चुकी थी. कमिटी की रिपोर्ट में यह भी लिखा था की सेनानियों पर यातनाएं और दुराचार बढाने के लिए यहाँ एक बंद और कठोर जेल होनी चाहिये.
इस जेल में हर कैदी को एक छोटा सा कमरा दिया जाता था. जहां उसे कैद रखा जाता था और वहाँ शौचालय भी नहीं थे. कैदियों को एक दुसरे से बात करने की बिलकुल भी अनुमति नहीं थी. इस वजह से इस तरह के कैद खाने को साइलेंट सिस्टम (silent system) कहा गया. इन साइलेंट सिस्टम को डिजाइन जेनेरी बेन्थैम (jenery bentham) ने किया था. इस जेल का निर्माण साल 1896 में शुरू किया गया. जिन ईटों से इस जेल का निर्माण किया गया वह ईट बर्मा से लायी गयी थी. इसका निर्माण 1906 में पूरा हुआ था. इस नई जेल में 698 बैरक और 7 खंड थे. जो सात दिशा में फैलकर एक पंखुड़ीदार फूल की आकृति की तरह दिखती है. यहाँ की दीवारों पर वीर शहीदों के नाम लिखे हैं. यहाँ एक संग्रहालय भी हैं जिनमे उन अस्त्रों को संभालकर रखा हैं, जिनसे कैदियो को यातनायें दी जाती थी. इन कैदियों में विनायक दामोदर सावरकर, बटुकेश्वर दत्त और नन्द गोपाल आदि शामिल थे. सावरकर बंधुओ को तो 2 साल तक पता ही चला की वे एक ही जेल में हैं.
आजादी के बाद इस जेल के दो खंडो को नष्ट कर दिया गया और 1969 में इसे राष्ट्रीय स्मारक में परिवर्तित कर दिया. 1963 में जेल के परिसर में गोविन्द वल्लभ पन्त अस्पताल की स्थापना की गयी.
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