कुरुक्षेत्र को ही क्यों चुना श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध के लिए ?

महाभारत के बारे में सभी जानते हो. और आप सभी इस बात को भली भांति जानते है की महाभारत का विशाल युद्ध कुरुक्षेत्र के मैदान में लड़ा गया था. पर क्या आप जानते है की कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध लड़े जाने का फैसला भगवान श्री कृष्ण का था. परन्तु महाभारत के युद्ध को कुरुक्षेत्र में ही लड़ने का निर्णय श्री कृष्ण ने क्यों लिया था अथवा क्या कारण था की श्री कृष्ण द्वारा कुरुक्षेत्र को ही इस युद्ध के लिए चुना गया था. इस सन्दर्भ में एक कथा प्रचलित है. आइये हम आपको इस कथा के बारे में बताते है.

जब कौरव तथा पांडव की ओर से यह निश्चित हो गया की महाभारत का युद्ध होना है.तो युद्ध के लिए जमीन खोजी जाने लगी. भगवान श्रीकृष्ण जी इस युद्ध के द्वारा मनुष्यों में बढ़ी हुई असुरता से ग्रसित व्यक्तियों को नष्ट करवाना चाहते थे. परन्तु श्री कृष्ण जी को इस बात का भय था कि यह युद्ध भाई-भाइयों का, गुरु-शिष्य का, सम्बन्धी कुटुम्बियों का युद्ध है.

श्री कृष्ण जी के मन में यह संदेह था की कही ये अपने ही भाइयो और सम्बन्धियों को मरते देखकर युद्ध विराम या सन्धि न कर लें. इसी कारण श्री कृष्णजी युद्ध के लिए ऐसी जगह का चयन करना चाहते थे, जहाँ क्रोध और द्वेष के संस्कार पर्याप्त मात्रा में हों. और इसी उद्देश्य से श्री कृष्ण जी ने कई दूतो को अनेक दिशाओ में भेजा ताकि उन्हें वहां की घटनाओं का वर्णन आकर उन्हें सुना.

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तभी एक दूत आया और उसने श्री कृष्ण जी को बताया की अमुक जगह बड़े भाई ने अपने ही छोटे भाई को खेत की मेंड़ से बहते हुए वर्षा के पानी को रोकने के लिए कहा था . परन्तु किसी कारण छोटे भाई ने इस कार्य को करने से मना कर दिया और वो यही नही रुका उसने अपने भाई को उत्तर देते हुए कहा था की- तू ही क्यों नही रोक देता है? और मैं कोई तेरा गुलाम नही हूँ. छोटे भाई की ऐसी बाते सुनकर बड़ा भाई क्रोधित हो गया और उसने छोटे भाई को कटार निकालकर वार कर दिया जिससे छोटा भाई मर गया और उसके बाद उसकी लाश को पैरो से पकड़कर घसीटता हुआ उस मेंड़ के पास ले जा कर जिस जगह से पानी निकल रहा था उस जगह लाश को पानी रोकने के लिए रख दिया था.

भाई के प्रति भाई की इस नृशंसता को सुनने के बाद श्रीकृष्ण ने निश्चय किया महाभारत के युद्ध का इस भूमि पर होना उपयुक्त है. श्री कृष्ण के अनुसार यहाँ युद्ध के लिए पहुँचने पर समस्त लोगो के मस्तिष्क पर जो प्रभाव पड़ेगा उससे उनके मन में एक दुसरे के प्रति प्रेम उत्पन्न होने या दोनों के मध्य सन्धि होने की सम्भावना खत्म हो जाएगी. और वह स्थान कुरुक्षेत्र ही था.

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इस प्रकार महाभारत के युद्ध से सम्बन्धित यह कथा सिद्ध करती है की जिस जगह जैसे संस्कार होते है वहां की भूमि में भी वैसे ही संस्कार अंतर्निहित रहते है. अर्थात शुभ और अशुभ विचार एवं कर्म संस्कार भूमि में देर तक रहते हैं. इसी कारण कहा गया है जिस जगह शुभ विचारो और शुभ कार्यो का समावेश ऐसी भूमि में ही निवास करना उपर्युक्त होता है. आइये हम श्रवण कुमार के जीवन से सम्बंधित एक ऐसी ही घटना का वर्णन आपके समक्ष करते है.

श्रवणकुमार अपने अंधे माता-पिता की सेवा पूरी आस्था ओत निष्ठा से करते थे. वे अपने माता पिता को किसी भी प्रकार का कष्ट नही होने देते थे. चूँकि श्रवण कुमार के माता-पिता अंशे थे और वे कही भी आने जाने में असमर्थ थे. पर एक बार उन्होंने श्रवण कुमार से तीर्थ जाने की इच्छा व्यक्त की. तब श्रवण कुमार ने अपने मारा-पिता को तीर्थ यात्रा करवाने के लिए निश्चय किया. और उन्होंने उनके लिए एक काँवर तैयार की और उन दोनों को उसमें बिठाकर और उन्हें तीर्थ यात्रा करवाने के लिए निकल गए.

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श्रवण कुमार ने बहुत से तीर्थ उन्हें कावर में बिठाकर करवाए किन्तु एक बार रास्ते में उनको ख्याल आया की क्यों न इन्हें पैदल चलाया जाये? और उन्होंने कावर को जमीन पर और उन्हें पैदल चलने के लिए कहा. जब उनके माता पिता चलने तो तो उन्होंने कहा की, -इस भूमि को जल्द से जल्द पार कर लेना चाहिए. और उन्होंने तेजी से चल कर वह भूमि जल्दी ही पर कर ली. वह भूमि निकलने पर श्रवणकुमार अहसास हुआ की उन्होंने माता-पिता की अवज्ञा की है. और वे पश्चाताप करने लगते है. और तब श्रवण कुमार ने माता-पिता के पैर पकड कर माफ़ी मांगी और पुनः कावर में बिठा कर चलने लगे.

तब उनके पिता ने कहा की- हे पुत्र इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है. किसी समय उस भूमि पर मय नामक एक असुर निवास करता था उसने जन्म लेते ही अपने ही पिता-माता को मार डाला था, और अब तक उसके संस्कार उस भूमि में बने हुए हैं इसी से उस क्षेत्र में गुजरते हुए तुम्हें ऐसी बुद्धि आई. और तुमने हमे कावर से उतर दिया था.

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