Maharana Pratap Biography, History, Haldighati Battle, Story of chetak and Death in Hindi| मेवाड़ के महाराजा महाराणा प्रताप का इतिहास, हल्दीघाटी का युद्ध और मृत्यु की कहानी
त्याग, पराक्रम, निरंतर संघर्ष, दृढ़ता के लिए जिस वीर पुरुष को हमेशा याद किया जाता है, वो महाराणा प्रताप है. जब पूरे देश में मुगलों का बोलबाला था. कई राजपूतो ने हारकर या स्वेच्छा से अकबर से दोस्ती कर ली थी, उस कठिन वक़्त में भी महाराणा प्रताप ने अपनी शान और शौर्य को कभी गुलाम नही बनने दिया और राजपूत वीरता की एक मिशाल बनकर उभरे. वीर राणा सांगा के पोते और उदय सिंह के पुत्र महाराणा प्रताप के खून में ही वीरता बसी थी.
महाराणा प्रताप परिचय (Maharana Pratap Biography)
बिंदु(Points) | जानकारी (Information) |
नाम(Name) | महाराणा प्रताप |
पिता(Father) | उदय सिंह |
माता(Mother) | महारानी जयवंताबाई |
जन्म(Birth) | 9 मई 1540 |
जन्म स्थान(Birth Place) | कुंम्भलगढ़ दुर्ग राजस्थान |
मृत्यु (Death) | 19 जनवरी 1597 |
शासन काल (Reign) | 1568- 1597 |
पुत्र (Son) | अमर सिंह |
दादाजी (Grand Father) | राणा सांगा | पत्नी (Wife) | महारानी अजबदे पुनवार |
धर्म (Religion) | हिन्दू |
आरंभिक जीवन (Maharana Pratap Intial Life)
महाराणा प्रताप का जन्म जेष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार को उदयपुर, राजस्थान के राजघराने में हुआ. प्रताप के पिता राणा उदय सिंह और माँ जयवंता बाई थी. महाराणा प्रताप का बचपन का नाम कीका था. वे अपने सभी भाइयों में सबसे बड़े थे. इसके बाबजूद उदय सिंह ने इन्हें अपना उत्तराधिकारी नही चुना. इनकी जगह राजकुमारी धीराबाई के कोख से जन्म लेने वाले जगमाल को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया.
जैसा उदय सिंह ने निर्धारित किया था वैसा ही हुआ. उनकी मृत्यु के पश्चात जगमाल महाराणा बनाया गया. लेकिन कुछ प्रमुख सरदारों को जगमाल के नेतृत्व पर भरोसा नही था. अंततः उन्होंने जगमाल की जगह राणा प्रताप का राजतिलक किया. इसके बाद वो महाराणा प्रताप कहलाए.
अस्त्र-शस्त्र का प्रशिक्षण (Maharana Pratap Teaching)
महाराणा प्रताप बचपन से ही बहुत साहसी और पराक्रमी थे. वो जन्म जात ही नृतत्व की क्षमता से परिपूर्ण थे. बचपन मे खेल खेल में ही वो दलों का गठन कर लेते थे.
उदयसिंह ने बचपन से ही इन्हें तलवार, ढाल चलाने का प्रशिक्षण दिलवाया. वो इन्हें एक कुशल योद्धा बनाना चाहते थे. धीरे-धीरे प्रशिक्षण के साथ ये अस्त्र-शस्त्र चलाने में काफी निपुण हो गए.
महाराणा प्रताप का संघर्ष (Maharana Pratap Stuggle)
मुगल हुकूमत के खिलाफ महाराणा प्रताप पूरी दृढ़ता से आखिरी सांस तक खड़े रहे. लेकिन उन्होंने गुलामी स्वीकार नही की. इस खिलाफत का असर इनके जीवन पर पड़ा.
महाराणा प्रताप के संघर्ष से जुड़े कुछ तथ्य (Maharana Pratap Interesting Facts)
- सन 1567 में चित्तोड़ को अकबर की मुगल सेना ने घेर लिया था. उस वक़्त उदय प्रताप सिंह ने मुग़लों का सामना करने के बजाय चित्तोड़ छोड़ने का निश्चय किया.
- राजकुमार प्रताप सिंह सामना करना चाहते थे, पर बड़ो की यह राय थी कि चित्तोड़ को छोड़ना ही सही होगा.
- सन 1572 में उदय सिंह की मृत्यु हो गई. जिसके बाद प्रताप सिंह को राजा बनाया गया और वो महाराणा प्रताप सिंह कहलाये.
- महाराणा प्रताप राजपूतों के सिसोदिया घराने से थे. वे मेवाड़ के 54वें राजा थे.
- अकबर पूरे चित्तोड़ पर राज करने लगा. पर अकबर की महत्वाकांक्षा थी पूरे भारत पर राज करने की. वही दूसरी ओर महाराणा प्रताप मेवाड़ पर शासन कर रहे थे. बिना मेवाड़ हासिल किए अकबर का सपना अधूरा रह जाता.
- इसके लिए अकबर ने मेवाड़ में 6 राजदूत भेजे, जो महाराणा प्रताप को समर्पण के लिए नही मना पाए. जो आखिरी राजदूत था वह राजा मान सिंह था, वो अकबर का बहनोई था.
- आखिरकार अकबर ने महाराणा प्रताप पर हमला करने का निश्चय किया. अकबर की सेना में 80000 सैनिक थे वही महाराणा प्रताप की राजपूत सेना संख्या में सिर्फ 20000 थी.
- यह युद्ध भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण युद्ध था. यह हल्दी घाटी में लड़ा गया, इसलिए इसे हल्दीघाटी का युद्व कहते है.
- इस युद्ध के बाद अकबर का लगभग पूरे मेवाड़ पर कब्जा हो गया था, बस कुछ अरावली की पहाड़ियों पर अकबर की पहुँच नही थी.
- इतिहासकारों के अनुसार इस युद्ध मे न तो कोई विजय हुआ, न ही किसी की पराजय हुई. क्यों कि अकबर की सेना बहुत विशाल थी. उसके सामने 20000 की सेना थी, इसके बाबजूद वो महाराणा प्रताप को बंदी नही बना पाए थे.
- जुलाई 1576 में महाराणा प्रताप ने मुगलों से गोगुंडा को पुनः प्राप्त किया और कुंम्भलगढ़ को अस्थायी राजधानी घोषित कर दिया. लेकिन अकबर ने व्यक्तिगत रूप से अभियान चला कर कुंम्भलगढ़ पर कब्जा कर लिया और महाराणा प्रताप को पीछे हटना पड़ा.
- इस हार के बाबजूद महाराणा प्रताप ने अपना मनोबल कमजोर नही होने दिया और आखिरकार अपने खोये हुए क्षेत्रो को पुनः प्राप्त किया.
- जिसमे कुंम्भलगढ़, चित्तोड़ के आसपास के क्षेत्र, गोगुंडा, उदयपुर, राणथम्भौर शामिल थे.
हल्दीघाटी का युद्ध (Haldighati Battle)
21 जून 1576 को हुआ हल्दी घाटी का युद्ध न केवल राजस्थान के इतिहास का बल्कि पूरे हिंदुस्तान के लिए एक ऐतिहासिक युद्ध था. इस युद्ध मे महाराणा प्रताप की 20,000 सैनिकों की सेना के सामने अकबर के 80,000 सैनिक थे. अपने अदभुत पराक्रम और बुद्धि कौशल से महाराणा प्रताप ने अकबर को कड़ी टक्कर दी.
लेकिन दुर्भाग्य की बात यह थी कि महाराणा प्रताप का भाई अकबर का साथ दे रहा था. अकबर के लिए पहाड़ियों में युद्ध करना मुश्किल था. जबकि महाराणा प्रताप बचपन से ही उन पहाड़ियों के हर कोने से भली भांति परिचित थे. यह बात इस युद्ध मे इनके लिए बहुत सहायक हुई.
यह भी एक अजीब संयोग था कि महाराणा प्रताप की सेना की अगुवाई अफगानिस्तानी योद्धा हाकिम खां सुर कर रहा था. जबकि मुगलों का सेनापति राजा मानसिंह था. मतलब इस युद्ध मे राजपूत के सामने राजपूत था.
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महाराणा प्रताप का वीर घोड़ा चेतक की कहानी (Story of Maharana Pratap and Chetak)
महाराणा प्रताप की वीरता तो जगजाहिर थी लेकिन वो जिस घोड़े की सवारी करते थे, वो भी वीर और वफादार सिपाही से कम नही था. महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय घोड़ा चेतक एक नीलवर्ण ईरानी मूल का घोड़ा था. उसने मुश्किल परिस्थिति में महाराणा प्रताप के प्राणों की रक्षा की. उसकी वीरता का सबसे बड़ा प्रमाण हल्दीघाटी की युद्ध के दौरान मिला, जब अकबर की विशाल सेना के सामने महाराणा प्रताप की सेना थी.
उस युद्ध मे अकबर की न तो जीत हुई न ही महाराणा प्रताप की हार हुई. लेकिन युद्ध के दौरान महाराणा प्रताप घायल हो गए थे और मुगल उन्हें बंदी बनाना चाहते थे. लेकिन चेतक अपनी तेज रफ्तार और हिम्मत का परिचय देते हुए महाराणा प्रताप को इस मुश्किल से निकालने में कामयाब रहा.
कहा जाता है कि युद्ध के दौरान एक बार चेतक के पाव में तलवार लग गई, लेकिन चेतक बिना रुके लगातार 5 किमी. तक दौड़ता रहा. इस दौरान 1 बरसाती नाला पड़ा, जो करीब 100 मी. लंबा था, उसे एक ही छलांग में पार कर गया और अकबर की सेना को नाले के दूसरी तरफ ही रुकना पड़ा. पर ज्यादा घायल हो जाने की वजह से चेतक कुछ ही दिनों बाद अपने प्राण त्याग देता है.
आज भी हल्दीघाटी में राजसमंद में चेतक की समाधी हैं जिसे दर्शनार्थी उसी श्रद्धा से देखते हैं जैसे प्रताप की मूरत को।
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महाराणा प्रताप की मृत्यु (Maharana Pratap Death)
अपनी मातृभूमि के लिए समर्पित जीवन जीने वाले महाराणा प्रताप का निधन 19 जनवरी 1597 को हुआ, जिसका कारण जंगल मे लगने वाली एक चोट थी. लेकिन अपने मातृभूमि के लिए त्याग और कठिनता का रास्ता चुनने वाले महाराणा प्रताप देशवासियों की यादों में हमेशा जीवित रहेंगे.
महाराणा प्रताप का अंतिम वक़्त (Maharana Pratap Last Moments)
महाराणा प्रताप ने जीवन भर अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए कठोर श्रम और संघर्ष किया. लेकिन फिर भी महाराणा प्रताप चित्तौड़ को वापस नही पा सके. यह बात उन्हें बहुत व्यथित करती थी. वो एक सच्चे राष्ट्रभक्त थे. उनका चिंतन हमेशा देश की सुरक्षा को लेकर होता था. अपने अंतिम वक़्त में उन्हें यही बात परेशान करती थी कि उनके बाद कौन मातृभूमि की रक्षा के लिए इतना संघर्ष करेगा.
उनका पुत्र ‘राणा अमर सिंह’ बहुत ही विलासी प्रवृत्ति का था. अपने आखिरी क्षणों में उन्होंने सरदारों से यह वचन लिया था मेरे प्राण तभी छूटेंगे जब आप यह वचन देंगे कि अपने जीते जी कभी भी मातृभूमि को तुर्कों के हाथों नही सौपेंगे.
अकबर ने महाराणा प्रताप की मृत्यु पर कहा (Akbar on Maharana Pratap Death)
अकबर और महाराणा प्रताप की शत्रुता जगजाहिर थी. पर अकबर की महाराणा प्रताप से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नही थी. ये शत्रुता विचारों की थी. अकबर अपना साम्राज्य बढ़ाना चाहता था, जबकि महाराणा प्रताप अपने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने जान की आहुति देने से भी नही डरते थे. जब अकबर को महाराणा प्रताप की मृत्यु की खबर मिली तो बिल्कुल मौन हो गया था और उसकी आँखों मे आंसू आ गए थे. वह महाराणा प्रताप के गुणों की दिल से प्रशंसा करता था.