[nextpage title=”nextpage”]गंगा नदी भारत की पवित्र नदीयो में से एक है गंगा नदी भारत के अलावा बांग्लादेश में भी बहती है इसकी कुल लम्बाई 2510 km है. यह उत्तरांचल में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी तक बहती है. गंगा नदी जन–जन की आस्था का आधार है. इस धरती पर गंगा नदी के आने से पहले ही पंच गंगाओं का धरती पर अवतरण हो चूका था. जहा पंच गंगाओं का अवतरण हुआ था वो जगह “पंचनद तीर्थ” के नाम से जानी जाती है.
कब और कैसे हुआ पंच गंगाओं अवतरण इस धरती पर?
आदिकाल में ऋषि शालंकायन हुआ करते थे. ऋषि शालंकायन का एक पुत्र हुआ जिसका नाम शिलाद मुनि था, मुनि शिलाद बाल ब्रम्हचारी थे. शिलादमुनि ने अपने वंश को आगे बढाने के लिए भगवान शिव की घोर तपस्या की शिवजी ने स्वयं अयोनिज पुत्र बनकर शिलाद मुनि के यहाँ जन्म लेने का शिलादमुनि को वरदान दिया. शिवजी के वरदान के फलस्वरूप जब शिलाद मुनि यज्ञ के लिए भूमि जोत रहे थे. तब हल भूमि में फँस गया था.
उसी समय वहा पर शिवजी की कृपा हुई और शिलादमुनि को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. शिलाद मुनि उस बालक को अपनी कुटिया में ले गये, मुनि को उस पुत्र से अति आनन्द की प्राप्ति हुई. मुनि ने उस बालक का नाम नंदी रखा. वह बालक बहुत ही तेजस्वी और विशिष्ट था.
शिलाद मुनि ने पाँच वर्ष की अवस्था में नन्दी जी को सांगोपांग वेदों का और शास्त्रों का अध्ययन करा दिया था. नंदी जी ने सात वर्ष की अवस्था में शिवजी की घोर तपस्या प्रारम्भ की, फलस्वरूप तपस्या से खुश होकर शिव जी ने पार्वती सहित प्रकट होकर नन्दी जी को आशीर्वाद दिया था तथा अजर-अमर होने का वरदान दे दिया.
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[nextpage title=”nextpage”]नन्दी जी की तपस्या से शिवजी अतिप्रसन्न हुए उन्होंने अपने गले से कमलों की माला उतार कर नन्दीजी को भेट के रूप में प्रदान की. शिवजी की चमत्कारिक माला जैसे ही नन्दी जी के गले में डाली गयी माला के प्रभाव से नन्दीजी के तीन नेत्र तथा दस भुजायें हो गईं. भगवान वृषभध्वज ने अपनी जटाओं से हार के समान निर्मल जल ग्रहण कर ” नदी हो ” ऐसा कहकर जल को नन्दी जी पर छिडक दिया.
उसी जल से पाँच शुभ गंगाओं का धरती पर अवतरण हो गया
1. जटोदका गंगा
2. त्रिस्रोता गंगा
3. वृषध्वनि गंगा
4. स्वर्णोदिका गंगा
5. जम्बू नदी गंगा
और इस प्रकार पञ्च नदियों का अवतरण हुआ. ये पाँचो नदियाँ ” पंचनद ” नामक पवित्र तीर्थ के नाम से जानी जाती हैं. यह स्थान भगवान शिव का पृष्ठदेश कहलाता है, जो जपेश्वर के समीप आज भी है.
शिवजी के साथ हमेशा उनके गण होते थे माता पार्वती जी ने नन्दी को शिवजी के गणों का अधिपति बना दिया. इस तरह नंदी नंदीश्वर हो गए. शिवजी के गण मनुष्यो की तरह नहीं होते थे ओर न ही वे मानव भाषा का उपयोग करते थे. मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ नंदी का विवाह हुआ. विवाह सम्पन्न हो जाने के बाद शिव जी ने नन्दी जी को अदभुत वरदान दिये.
शिवजी ने नन्दी को वरदान दिया कि, हे ! नन्दी तुम महाबली होंगे, तुम सर्वत्र पूजनीय होंगे, ”जहाँ मैं रहूँगा वहीं तुम रहोगे”, “जहाँ तुम रहोगे वहीं मै रहूँगा”. और आज हम देखते है की जिस जगह शिवजी होते है उनके सम्मुख नन्दी जी विराजमान होते है.
नन्दी शिवजी का वाहन है जो पुरुषार्थ अर्थात परिश्रम का प्रतीक है. भगवान नन्दी जी का संदेश यह है कि जिस तरह वह भगवान शिव का वाहन है, उसी प्रकार हमारा शरीर आत्मा का वाहन है. जिस प्रकार नन्दी की दृष्टि शिव की ओर होती है, उसी तरह प्रत्येक व्यक्ति की दृष्टि भी आत्मा की ओर होनी चाहिये. [/nextpage]