श्रीराम स्नेही सम्प्रदाय या रामद्वारा के संस्थापक राम चरण की कहानी और इतिहास | Ram Charan History, Story, Birth and Death in Hindi
राम चरण भारत में एक अनूठी धार्मिक परंपरा के संस्थापक हैं जिन्हें श्रीराम स्नेही सम्प्रदाय या रामद्वारा कहा जाता है. उन्होंने निर्गुण (पूर्ण) भक्ति का आरंभ और चित्रण किया, हालाँकि वह सगुण भक्ति के विरुद्ध नहीं थे. उन्होंने दिखावे को खत्म करने की कोशिश की. अंध विश्वास, पाखंड और हिंदू धर्म में विद्यमान गलतफहमी और झूठे दिखावे गतिविधियों में शामिल न होने के लिए भगवान के ‘राम’ नाम की पूजा करना पसंद किया.
बिंदु(Points) | जानकारी (Information) |
नाम (Name) | राम चरण |
असल नाम (Real Name) | राम किशन |
जन्म (Birth) | 24 फरवरी 1720 |
मृत्यु (Death) | 1799 |
जन्म स्थान (Birth Place) | टोंक जिला (राजस्थान) |
पिता का नाम (Father Name) | बखत राम विजयवर्गीय |
माँ का नाम(Mother Name) | देवहुति देवी |
गुरु का नाम(Guru/Teacher Name) | कृपा राम महाराज |
राम चरण का प्रारंभिक जीवन (Ram Charan Initial Life)
राम चरण जी का जन्म राजस्थान के टोंक जिले के एक गाँव सोढा में 24 फरवरी 1720 (विक्रम संवत 1776 में मेघ शुक्ल 14) को हुआ था. इनके पिता का नाम बखत राम विजयवर्गीय और उनकी माता का नाम देवहुति देवी था. रामचरण के माता-पिता राजस्थान के मालपुरा के पास बनवारा गाँव में रहते थे. चरण का बचपन का नाम “राम किशन” था.
चरण ने गुलाब कंवर से शादी की और शादी के बाद पटवारी बन गए. कुछ समय बाद जयपुर (आमेर या अम्बर) के राजा जयसिंह द्वितीय ने उन्हें मालपुरा शाखा जयपुर के दीवान के पद की पेशकश की थी.
राम चरण का आध्यात्मिक जीवन (Ram Charan Biography)
वर्ष 1743 में अपने पिता की मृत्यु के बाद राम चरण ने भौतिकवाद में रुचि लेना शुरू कर दी. एक दिन उन्हें भृंगी संत की भविष्यवाणी के बारे में पता चला. उसी रात उन्होंने सपना देखा कि एक संत ने उन्हें एक नदी में डूबने से बचाया. अगले दिन, उन्हें अपने परिवार से अप्रत्यक्ष रूप से हमेशा के लिए घर छोड़ने की अनुमति मिल गई और उन्होंने भगवान को जानने और 1808 बिक्रम संवत में एक आदर्श आध्यात्मिक गुरु की खोज शुरू की.
रामचरण ने दक्षिण की यात्रा शुरू की, अंत में उन्होंने राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा के पास दन्तरा गाँव में संत “कृपा राम” से मिले. वे कृपा राम महाराज के शिष्य बन गए और उनका अनुसरण करने लगे. तपस्या के नौ साल तक वह संत कृपा राम के सानिध्य में रहे. कृपा राम संत दास के शिष्य थे. उन नौ वर्षों के दौरान, राम चरण ने कई चमत्कार किए जो अभी भी स्थानीय लोगों और “राम स्नेही सम्प्रदाय” के बीच प्रसिद्ध हैं. वह अपनी अनोखी निर्गुण भक्ति के लिए भी बहुत लोकप्रिय हुए. उन्होंने कई स्थानों का दौरा किया, अपने अनुभव की व्याख्या की और लोगों को दिखावा, अंध विश्वास, पाखंड और भ्रामक शिक्षाओं को खत्म करने की सलाह दी. जिसके बाद वे भीलवाड़ा गए और तपस्या के लिए उन्होंने मिया चंद की बावरी (स्टेप वेल) नामक एक एकांत स्थान चुना. इस समय तक वह तपस्या के चरम स्तर तक पहुँच चुके थे और निर्वाण के रास्ते पर पहुँच रहे थे.
राम चरण ने ईश्वर को साकार करने के साधन के रूप में निस्वार्थ भक्ति का प्रचार किया. उन्होंने सामान्य रूप से भक्ति को बढ़ावा दिया. सगुण और निर्गुण प्रकार के बीच संघर्ष को खत्म करने की कोशिश की. “वाणी जी” उनके द्वारा रचित कार्यों का संग्रह, ज्ञान, भक्ति और वैराग्य पर केंद्रित है. जिनमें 36250 रचनाएँ हैं. आध्यात्मिक गुरु को स्वामीजी ने अपने जीवन में सर्वोच्च स्थान दिया है, जैसा कि उनके श्लोकों में कहा गया है. छात्र या साधक को विशाल ग्रंथों को पढ़ने से बचने के लिए कहा जाता है और इसके बजाय आत्म-प्राप्ति के सबसे सरल साधन के रूप में राम नाम जप पर ध्यान केंद्रित किया जाता है. उनके अनुसार सर्वोच्च अस्तित्व हर जगह, हर जीव में मौजूद है. स्वामीजी ने विचारों के विश्वात्वाद पाठ का अनुसरण किया. कीड़ों सहित किसी भी जीवित व्यक्ति के लिए अहिंसा एक केंद्रीय सिद्धांत है. अन्य प्राचीन भारतीय ग्रंथों की तुलना में भगवान को सबसे अधिक बार संदर्भित किया जाता है.
राम चरण अंध मूर्तिपूजा के खिलाफ थे, जो उनके समय में प्रचलित था. उनका दर्शन था कि हमें ईश्वर से प्रेम करना चाहिए, न कि केवल दिखावा करना चाहिए. उन्होंने लोगों को समान रूप से लोगों, एक राजा और एक गरीब व्यक्ति के साथ व्यवहार करना सिखाया. इसके अलावा उन्होंने कहा कि हमें जाति या पंथ के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए.
रामचरण जी महाराज ने इस बात पर भी जोर दिया कि विभिन्न स्थानों पर जाने और ईश्वर की खोज करने के बजाय अपने आप को अंदर देखना होगा. महाराज जी का अनुसरण करते हुए किसी के गुरु के उचित और आवश्यक मार्गदर्शन के साथ, आध्यात्मिक साधनाओं में संलग्न होना आवश्यक है.
राम स्नेही सम्प्रदाय का गठन (Ram Snehi Community Establishment)
उसी वर्ष (1817 विक्रम संवत) में, राम चरण महाराज के शिष्य राम जन जी ने “राम स्नेही सम्प्रदाय” (राम स्नेही आध्यात्मिक परंपरा) का गठन किया.
स्वामीजी के विश्वासियों के पूजा स्थल को रामद्वारा कहा जाता है. स्वामीजी के समय से, संगठन का मुख्यालय राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा में है. रामस्नेही सम्प्रदाय वर्तमान में स्वामी जी श्री राम दयाल जी महाराज के नेतृत्व में है.
राम चरण की मृत्यु (Ram Charan Death)
राम चरण की मृत्यु 1799 (वैसाख कृष्ण 5 को विक्रम संवत 1855) में हुई.
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Shree ram charan maharaj ke 1 dost the (jo unse 6yrs chhote the) jinka naam AACHARYA BHIKHAN JI SWAMI tha (Jain monk)
Jain sahitay ke anusaar bataya jaata hai ki ye dono hi kai barsho se ek saath janam le rhe the dharti pr (purpose :saadhu sandh ka uthan krne ke liye or dharm ko kuniti se supath pr laane ke liye)
vidhi ke iss daur m yah bhi baat saamne aai hai ki snjog se dono ki patni ka dehat chhoti ummer m hi ho gya tha or dono mitro ke 1 -1 putriya thi or balyakal m hi dono ke pita ka sawargwaas ho gya tha
in dono ke vicharo m parsaper kaafi achha taal mel tha
dono ka nanihaal ek hi gaav m tha “sodha”.
dono hi sant smaj sudhark the or mana jaata hai inke sarir pr bahut hi adhbhut se chinh paae gye the (like , svastik , dono kaano pr kesh , dhawjakrti , lalat pe aadi rekhae etc etc)
aisa mana jaata hai ki aise vyakito ka 2000 yrs tk naam bahut chlta hai.